सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

बदल गया इंसान

अमृत बता कर लोगों को, वो ज़हर बेच सकता है,
अपनी जागीर बता कर, वो समंदर बेच सकता है !

उसकी नसों में खून बहता है मक्कारियां बन कर,
वो अपना ही बता कर, औरों का घर बेच सकता है !

न जाने क्या हुआ है इंसान के ईमान को दोस्तो,
कि अपने नाम से किसी का, वो हुनर बेच सकता है !

ज़माने में कोई तो गिर चुका है इतना दोस्तो कि
ज़रा से ऐश की खातिर, वो हमसफ़र बेच सकता है !

रोग ए हवस ने अब घेर रखा है आदमी को दोस्त ,
ज़रा से नफ़े के लिए, अपनों का सर बेच सकता है !

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