सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

एक वर्ष पूर्व

रश्म ओ गारित हर एक मंजर दिखाई देता हे ,
मुझको जलता हुआ मेरा घर दिखाई देता हे !

जीवन निकलाखुशियो का कैदखाना बुनते-बुनते
देखा टूटा हुआ फुस का आशियाना दिखाई देता हे !

हर शै यहा चेहरे पर नया चेहरा लगाये खड़ी हे
रूहानियत फिर मासूमियत का खरीदार दिखाई देता हे!

शामे ख्वाव के तृणआशियाने उजड़े जा रहे हे दोस्त ,
क्या करना और क्या कर बेठे में खोया दिखाई देता हे !

उड़ते हुए धुएं सी थी जेहन में मंजिले कभी अशेष ,
आज बेरंग बादल सा गगन में भटकता दिखाई देता हे !

सोचा था उन्मुक्त गगन सी गरिमा बन यशोभित होंगे
आज खड़ा चौराहे की तरह एक राह दिखाई देता हे !

   

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