बुधवार, 27 फ़रवरी 2019

छुटकी गर्लफ्रेंड 'महक'

#मेरी_छुटकी_गर्लफ्रेंड
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उन दिनों बीते समय की असफलताओ से निकले के लिए एकाकी जीवन को में रँगने की कोशिश कर ही रहा था।क्यों की बीती को बिसारने में मुझे जेसे एक ऊर्जा का आभाष हुआ करता था ।

उस दिन नित्य की तरह अपने कानो में 'हेण्डस्फ्री' लगाये में पार्क में टहलते,कूदते,बतियाते लोगो से दूर नितांत में बैठा हुआ,आँखे बन्द किये 'जगजीत सिंह जी' की स्वरलहरी में खोया हुआ था।की एकाएक किसी के दो नन्हे अपरिचित ठंडे हाथो से मेरे कल्पना सागर में गोते लगाते हुए अंतर्मन को आँखों के माध्यम से स्पर्श किया और कानो में शब्द पड़े "अंकल-अंकल......अंकल..........अंकल्लल्लल्ल...!!" ने तन्द्रा को भंग कर दिया ।
जब पलको को खोल प्रतक्ष्या को देखा तो जो क्रोध तन्द्रा भंग होने पर प्रकट हुआ था वह अग्नि के समक्ष रखे कपूर की भाँती काफूर हो गया।क्योंकि जिसे मेने देखा वो करीव 5 वर्षीय एक बालिका थी और चावल की भाति धवलदन्तवली से बाग़ में खिले #पुष्प की भाँती अपनी आभा से अनुपम क्षटा विखेर रही थी।हलके गुलाबी फ्रॉक में खड़ी बो मोहन की मोहक छवि ने जब मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाकर बोला की "अंकल आप मेरे बोयफ़्रेंड बनोगे?" मेरे मुह पर न चाहते हुए भी हँसी आ गयी और उसकी बातो को दिलचस्पी से सुनने लगा ..!

पता ही न चला कब ये असम्भावित -अप्रत्याशित मुलाक़ात हृदय की उन शुष्क होती भावनाओ को स्पर्श करने लगी थी जिनसे बचने के लिए में नितांत को चुनने लगा था।और फिर ये मुलाकाते जेसे उस समय का अभिन्न अंग बन गयी ।
समय पंख लगाकर उड़ता रहा में दिनप्रतिदिन उस के स्नेहपाश में बंधता रहा।इन दो तीन माहो में बो कितनी बार मुझसे अपने बाल बंधबा चुकी थी और में कितनी ही बार अपने जेबखर्च की कटौति करके उसको लस्सी से लेकर पोहा-जलेबी खिला चुका था किन्तु आश्चर्य ही था जो लड़का स्वम को नहीं जान सका बो छोटी बच्ची उससे बेहतर उसे जान चुकी थी।उन दिनों मेरी भावनाये  उस पिता के सदृश थी जो अपनी बिटिया के लिए सब कुछ छोड़ बस उसकी मुस्कान देखने को आतुर रहता हो !
किन्तु मुझे एक बात अवश्य चुभती थी की इतनी छोटी गुड़िया प्रायः अकेली ही क्यों आती?बड़े ही गैरजिम्मेदार माता-पिता हे जो इस फूल सी बच्ची को सुभह-सुभह अकेले पार्क आने देते हे!और अंतर्मन में तीव्रता से दौड़ते इस प्रश्न का शीघ्र ही मिल गया जब एकाएक उसको चक्कर आया और वह मुर्छित हो गयी .....में अवाक था.....!मुह पर एक अंनजाना भय जेसे किसी अपने को खोने की आभास हुआ हो और उसे अप्रत्याशित रूप से ले भागा नजदीकी क्लीनिक पर।व्यग्रताये चरम पर थी और न क्यों सुख चुकी आँखे बार-बार सजल हो रही थी।
डॉक्टर परिचित थे उस भोली बच्ची से और चेकअप दौरान उनका मोन मुझे अधीर किये जा रहा था।करीब 20 मिनट बाद उन्होंने आँखों से चश्मा और कानो से स्टेथस्कोप निकालते हुए मेरी और  प्रश्नवाचक दृस्टि से देखा और कहा .....!"हा तो मिस्टर ....!"
जी सर मुझे जितेन्द्र सिंह तोमर कहते हे और में इसी कॉलोनी के नजदीकी होस्टल में रहता हु और यहाँ रहकर विज्ञानं तकनीकी विषय से अध्ययन कर रहा हु।यह बच्ची मुझे पिछले 3 माह से फला पार्क में घुल-मिल गयी हे किन्तु आज न जाने क्यों बेठी-बेठी अचेत हो गयी कोई बड़ी दिक्कत तो न हुई हे !

मेरे शब्दों को सुनकर डॉक्टर गम्भीरता पूर्ण बोले "देखिये तोमर जी यह बच्ची हे ही ऐसी की जो एक बार मिला बो इसका हो गया और 'महक' को एक लाइलाज बीमारी हे जो इसे इसकी माँ से आनुवंशिक तोर पर मिली हे।ब्लड केन्सर के चलते प्रति 4 माह बाद इसका ब्लड हमे बदलवाना पड़ता हे और यह मेरी ही बच्ची हे !"

मन में आया की इस डॉक्टर का मुह तोड़ दू किन्तु उसकी चिकित्सीय इक्यूपमेंट बाली टेबल रखी उसी बच्ची की खिलखिलाती फोटो देख में बस जड़वत था।
शायद फिल्मो के बाद रियल लाइफ में इस 'केन्सर' की दरिंदगी से परिचित हुआ था और मन ही मन ईश्वर की श्रद्धा और वास्तविकता को कोस रहा था।'महक'की रगो जाती ड्रिप की हर बून्द के साथ  जेसे में अपनी शिराओं को शुष्क महसूस कर रहा था ।
"तोमर जी कॉफी ..."
मेरी तन्द्रा को तोडा उसके डॉक्टर पिता की आबाज ने जो मेरे समक्ष भाप उड़ाते मग को बड़ा रहे थे और में कही दूर अपनी सोचो में पतवार रहित नैया खेय रहा था ।
कॉफी और उसकी वाष्प मुझे कुछ स्मरण दिला रही 'महक' से पूर्व 'पुष्प' का स्नेह कही धमनियों में पुनः जागृत हो रहा था और वाष्प उड़ाते कप में नयनो का सुखा हुआ नीर कम होती विलेय क्षमता को पूर्ण कर रहा था ।
न उस डॉक्टर के पास प्रश्न थे न मेरे पास प्रश्न तो वार्तालाप कैसे सम्भव होता और में अचेत बिटिया के माथे पर अपनी बात्सल्य अभिव्यक्ति अंकित कर वहां से चला आया ।
सुबह नीयत समय पर में पार्क नहीं महक के घर था किन्तु घर में लगा ताला और क्लीनिक के सामने लगी खाली थडी से चिंतित था।पूछने पर ज्ञात हुआ की डॉक्टर साव यहाँ मात्र अपनी पत्नी की यादो के बजह से रहते थे और अपार धन होते हुए भी अपनों से निर्धन थे।उनका क्लीनिक भी धर्मार्थ था जो मात्र 10 रूपये सेवा शुल्क के नाम पर लोगो का शुल्करहित उपचार किया करते थे।आज बो बेबस थे और न चाहते हुए भी 'बोनमेरो ट्रांसप्लांट' के लिए महक सहित कनाडा वाया मुम्बई को उसी रात निकल गए थे क्योंकि महक को अब मात्र यही एक उपचार या युक्ति साँसे दे सकता था ।

मुझे याद नहीं की मेने महक के उस छोटे से वैनिटीकेस से कितनी बार दो चोटी बाली चोटिया बनाना सीख लिया था!कितनी बार निसन्तान रहकर उस छोटी मूरत से एक विद्यार्थी आयु में ही पिता का अनुभव कर लिया था ।
जब उसके लिए पुरे 60 रूपये खर्च करके तितली की पंख हिलती क्लेचर उसकी बालो में लगाई थी तो अहसास हुआ था की ईश्वर अगर कही हे तो बो इन बाल-गोपालों में!जिनसे मिलकर न धर्म गौण रहता हे न जाति का महत्ब,महत्ब रखता हे निश्छल स्नेह जो मुझे-मेरी उस नन्ही सी 'गर्लफ्रेंड' ने उन तीन माह में बखूबी सिखाया था ।

आज वर्षो बाद भी में उस पार्क के इर्दगिर्द उन झाड़ियो में स्वम को और उस परी को खोजता हूँ।किन्तु न डिसूजा जी का अब क्लीनिक हे न उनकी कोठी बस उसी जगह खड़ी झुल्हे बाली तिपाहि जिस पर मेने अपने अंक में लेकर कितनी बार उसे झुलाया था।और उसने मुझे कितनी बार 'स्मोकिंग इज इंज्यूरिअस टू हेल्थ" कहकर कितनी ही बार कहकर दादी जी की तरह डाटा भी था ......!!

आज सात वर्ष हो गए उसकी मेरी पहली मुलाक़ात को और समय की दुरूह मार ने उसको मेरे अंक से छीन नीले गगन के 'सितारों' में स्थापित कर लिया ...!!
एक अभिभूत पिता से उसकी पुत्री,एक नितांतवादि दार्शनिक प्रेमी से उसकी गर्लफ्रेंड और श्रद्धांवित 'पुष्प ' की 'महक' उससे दूर इन फिजाओ में आज के दिवस घुल गयी ......!

मेरी नन्ही परी में खुदगर्ज हूँ ,में तुम्हारी 'क्रेब' पर 'पुष्प' अर्पण नहीं कर पाउँगा !
इतनी सी इल्तिजा हे इस जीवन में तुम्हारे दो चोटी बालो में पुनः 'पुष्प' सजाऊंगा !!

तुम सदैव याद आओगी मेरी बेटी......!मेरी एक और असफलताओ के रूप में .......
हृदय की अंतरिम गहराइयो से श्रधांजलि 🙏🚩🙏

तुम्हारा बॉयफ्रेंड अंकल
~जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'

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