#नेह..
जब नेह पर अशेष भावनाओं का सम्मान व समान एकीकार स्वरूप 'स' का अर्द्धभाग संयुक्त होता है।वहाँ ठाठे मारते सागर की तरह,विकार रहित 'स्नेह' प्राप्त होता है।असीम सम्भावनाओ और अद्वैत भावनाओं का ऐसा मंथन जिसमे कुछ प्राप्त करने के भाव से अधिक कुछ खोने की परिकल्पना अधिक प्रभावी होती है। जहां कुछ प्राप्त करने भाव जागृत हुआ वह लक्ष्य अधिक प्रतीत होता है,प्रेम का अर्द्धनकार युक्त-संयुक्त भाव ही कुछ खोने का स्वरूप है ।
स्नेह जब भाषाई सभ्यता में परिवर्तित होकर उर्दू से होकर गुजरती है ,तब यह मीठी जुवां की गजल बनकर बह उठती है।गजल उम्दा लफ्जों व खूबसूरत अहसांसो वह दरिया है जो यकायक अहसांसो में नफासत के साथ साँसों का हमसफ़र बनकर लरज उठती है ।
जैसे किसी ने श्वसन के वेग को फेंफड़ों में खीचकर रोक लिया हो और श्वसनतंत्र दृश्यनुभूत भाग एकाएक अधिक आकर्षक हो उठा हो!
जैसे किसी ने, सप्तस्वर ऊँचाई से गिरते जलप्रपात के जल को अधर में दिव्यता से अस्थिर को स्थिरता में परिणीत कर दिया हो!
जैसे किसी ने,उन्मुक्त गगन में विहार करते पखेरूओं कि गति को सम्मोहित करके कलरव के साथ कुंडली की तरह गौलाकर कर दिया हो!
प्रेम में प्रायः एक विचित्र और विलक्षण अनुभति-अनुभूत करने का अनुभव हुआ है।
'शून्य में एकटक अशेष प्राप्तता के साथ अप्रत्यक्ष का प्रत्यक्ष हो उठना।'
सम्मोहन का इतना विलक्षण प्रभाव होता है कि सामने कब-कौन-क्या हो गया अनुभूत ही नही होता। खुले नयनों जागृत अवस्था मे स्वप्न की सुंदरता तलाशना ही प्यार है ।
इश्क में सीमायें,बन्धन,स्तर इत्यादि अपना परिमाप खो बैठते हैं।इसकी अनुभूति जितनी सुखद व लालायित करने बाली है,वहीं इसकी अभिव्यक्ति उतनी ही दुस्कर है ।इश्क करिये..जीवन का अद्भुत अनुभव है किंतु इसको प्राप्तता या लक्ष्य बना लेना इसकी क्षीणता है ।
प्रस्तुत पंक्तियों में 'सायरा जंहा' के सैरों में लफ्जों के साथ चेहरे पर आते अहसासों को लफ्जो के दरमियाँ महसूस करिये ,इश्क की खूबसूरती में 'चार चांद लगना' शायद इसी को कहते होंगे!!
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सोचा था ए साहिबान मुहब्बत के दौर से निकल जाएंगे,
फिर से दोहरा के मुहब्बत को फिर न कभी आजमाएंगे!
अहसासों का दरिया दहक उठा यादों के शोले पाकर,
इश्क हमशक्ली के चेहरों से नकाब सभी उतर पाएंगे !!
इश्क असफल रस्सी में पड़े बल जैसे तबस्सुम शाम,
शायद जलकर भी बलरस्सी बनकर बिखर जाएंगे!!
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JVS.
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