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बुधवार, 23 सितंबर 2020

तीर्थयात्रा (हास्य)

#भदेस_वार्ता
सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठ 😂😂
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एक गाँव से कुछ बुजुर्ग एकबार तीर्थाटन को निकले ...विधीवत सबकी आरक्षित टिकिट थी और सबकी सीट्स संग-साथ बना रहने के लिए एक ही बोगी में क्रमानुसार नजदीक थी...
चलते-चलते सफर में चर्चाये आम होती हे और सहमति-असहमति,आलोचक-प्रशंशक दो समूह सदैव बनते आये हे,कुछ ऐसा ही वाक्या इधर भी था ।

रामआसरे-
" भैया तीरथ को तो जाय रहे हे पर बड़ी टेंसन में जान डरी हे,कुआ पे दो बीघा चरी और 6 बीघा कछवारि लगाई हे पर जा कदुआ घ्नसमा समवीरा की गैया कहु रोज न चरे!"
यह कहते हुए बुजुर्ग देवता ने धुंए से पीली हो चुकी  मुछो में अंतर्ध्यान हुए होठो के मध्य फटाफट करके 10 नम्बर ख़ेनि सरकाई ही थी की बपरिते बोल पड़े !

"अरे दद्दा जी बात तो एक और बेर कहो,जा सारे घ्नसमा ने सिग हार चराय डारो न तो लुगाई बाँध पाओ और न गैया...भोजाई उ तो दिनरात बाजार में जायके टिकिया-भल्ला में जड्ड देत रहे !"

यह कहते-कहते बपरीते ने बड़ी चुलबुली अदा में वांयी आँख झपकाई ई थी की गुस्से से तमतमाते 'घ्नसमा लाल' तेरही के मालपुआ के जेसे लाल हो उठे ।

"सुनि सारे बप्रीते तू तो सारे दोगला ई रहेगो जाकी बीड़ी पी लई बाकी की लुगाई बन जातु हे,और रही बात गैया की तो ऎसे ई चरेगी !"
"काहू के झाड़ .में दम होय तो गैया रोक के दिखाय .....मारे मुंडा के चाँद भोपाल न बनाई तो हमते उ को घनसमे कहेगो !!"

रमासरे को यह सुनते ही ततैया लग गयी और बपरीते को बगल में हटाके घनसमे के सामने आ बेठे और बोले ।

"काये रे घ्नसमा तेरी गैया काय हमाये खेत में  धसेगी?"
"भें कछु तेरे बाप को लगि गओ हे का, जो जा तरे ते बतरामन कर रहो हे !!"
"ज्यादा वाइसराय न बनि,मारे पनाह के चांद हाल खरोंच जागी!!!"

इतना सुनते ही घ्नसमे के टिकासरे में भूत झोलकिया लग गयी  ..
"सुनो ज्यादा चु चपर न करो अगर कछवारि होगी तो अब गैया जरूर चरेगी,तुम सिग हमाये झुनझुना झराय लियो और कराय दियो फांसी। तुमसे हमाये मुंडन में डरे रहे ..!"

रमासरे कुछ कहते उससे पहले ही बपरीता एक झोला उठा लाया और बड़ी जोर से बोल  उठा ...

"सुनो सिग अभाल ई तोर-तिया करे देत हे, जी हे गओ दद्दा को खेत और अब तुम अपनी गैया धसाय् के देखो अभाल ई भुभरो न फूटे तो कहियो !"

घ्नसमे भी ताव में आ गए और चारो तरफ नजर मारी लेकिन गाय का प्रतीक  जैसा कुछ न मिला तो बपरीते की जेब से गोविन्दबीड़ी का बण्डल निकाल कर गाय बना कर  रख दिया और छाती 56 इंच करते हुए बोल उठा ....

"लेयो तिहाये खेत मे गैया नई पुरो सांड घेर के ऐसे ई चरेगो,काट लियो हमाये कदुआ!"

फिर क्या ...बातो में बतबढ ओर तरण-तारणा आरम्भ हो गया ......दोनों तरफ मुंडा फटाफट खोपड़ियों पर बजने लगे। दोनों तत्वज्ञानी बड़ी श्रद्धा से परस्पर माँ-बहिनो को स्मरण कर रहे थे ।

ऊधम, हाय-पुकार,चिल्ल-पो सुनकर टीटी rpf बाले भी आये ओर तीनों को यह बोलकर झांसी उतार दिया कि ....तुम तीनो को तीर्थ जाने की नही संसद भवन जाने की आवश्यकता है जिसके लिए गाडी उल्टी तरफ जाएगी ...!

मामला रफा-दफा भी हो गया और मुरैना से नासिक जाने बाले यात्री झांसी में एक साथ बैठकर एक ही बीड़ी को पी रहे थे ...!किन्तु बपरीते अपने बीड़ी-बण्डल के पैसे दोनों लोगो से रोते हुए बसूल करना चाह रहे थे ।😀



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जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...