---भारत का अंतिम जौहर/शाका---
-------घासेड़ा का युद्ध------
---25 राजपूतो ने किया 25 हजार मुगल-जाट फौज का मुकाबला---
भारत का अंतिम जौहर/शाका हरियाणा की धरती पर हुआ जिसमे 25 राजपूतो ने 25 हजार सैनिकों की मुगल-जाट संयुक्त फौज का मुकाबला करते हुए 1500 जाट-मुगलो को मार गिराया।
गुड़गाव में प्रतिहार राजपूत वंश की शाखा राघव वंश के राजपूत निवास करते हैं। इन्ही में ढाना गांव के हाथी सिंह(हठी सिंह)राजपूत औरंगजेब के समय बड़े बागी हुआ करते थे। मेवात से लेकर दिल्ली तक मुगल शासन उनकी बगावत से परेशान था। इससे निबटने के लिए मुगल प्रशासन ने उनसे संधि करना बेहतर समझा और एक मेव लुटेरे सांवलिया की गर्दन काट के लाने के इनाम के बदले हठी सिंह को मेवात के घासेड़ा में नूह मालब समेत 12 गांव की जागीर देने की पेशकश की। हठी सिंह के पुत्र राव बहादुर सिंह राघव बेहद वीर और योग्य हुए जिन्होंने अपनी जागीर का विस्तार घासेड़ा के अलावा, कोटला, सोहना और इन्दोर परगनो तक कर लिया जिनसे जनश्रुतियो के अनुसार करीब 52 लाख का राजस्व प्राप्त होता था। अपनी योग्यता के बल पर वो कोल(अलीगढ़) के फौजदार भी बन गए।
वही भरतपुर के जाट सूरजमल की मुगल वजीर सफदरजंग से दोस्ती जगजाहिर थी। सूरजमल वजीर सफदरजंग के साथ मुगल बादशाह के दरबार में पेश हुआ जहाँ उसे बादशाह से 'कुंवर बहादुर राजेन्द्र' और उसके पिता बदन सिंह को 'राजा महेन्द्र' की उपाधि प्राप्त हुई। सूरजमल को वजीर की अनुशंसा पर बादशाह से मथुरा की फौजदारी और खालसा जमीन पर शाही जागीर प्राप्त हुई।
इसी समय सूरजमल और वजीर सफदरजंग में राजपूत राव बहादुर सिंह राघव को सबक सिखाने को लेकर मंत्रणा हुई। दोनो ही राव बहादुर सिंह राघव के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित थे। वजीर सफदरजंग मराठो के खिलाफ मोर्चे में बहादुर सिंह राघव द्वारा साथ ना देने के कारण उनसे शत्रुता रखता था और सूरजमल मेवात और ब्रज क्षेत्र में बहादुर सिंह राघव की बढ़ती ताकत को ईर्ष्या से देखता था।
परिणामस्वरूप मुगल वजीर सफदरजंग ने शाही फरमान निकलवा कर सूरजमल को राव बहादुर सिंह पर हमला कर उन्हें मारने या गिरफ्तार करने का आदेश देकर दिल्ली से बड़ी फौज देकर रवाना किया। सूरजमल भारी फौज लेकर कोल(अलीगढ़) पहुँचा और वहां कब्जा कर लिया। सूरजमल का बेटा जवाहर सिंह भी भरतपुर से बड़ी जाट फौज लेकर आ मिला। उस समय राव बहादुर सिंह कुछ साथियों के साथ जमुना के खादर में शिकार खेलने गए थे। सूरजमल ने षडयंत्र के तहत राव बहादुर सिंह को पुरानी मित्रता के नाम पर संधि के बहाने अपने शिविर में बुलाया। बहादुर सिंह मित्रता के भरोसे पर सिर्फ 4 सहयोगियों के साथ सूरजमल के शिविर में गए। वहां सूरजमल ने राव बहादुर सिंह से उनकी प्रसिद्ध तलवार को देखने की इच्छा जाहिर की। सूरजमल ने तलवार लेकर अपने सहयोगीयो को पकड़ा दी। बहादुर सिंह को सूरजमल की मंशा पर संदेह हुआ और उन्होंने वहां से निकलना ठीक समझा।
राव बहादुर सिंह वहां से किसी तरह निकल के अपनी पैतृक जागीर घासेड़ा में आए और गढ़ी(छोटा किला) में मोर्चाबंदी कर ली। उनके साथ उनके परिवार के 24 पुरूष और अन्य महिलाएं एवं बच्चे थे। मुगल सेनापति सूरजमल के पास 20 हजार जाट और मुगलो की सेना थी, साथ में मुगल वजीर सफदरजंग 5 हजार मुगल सेना और दर्जनों तोप लेकर उससे आ मिला और उन्होंने घासेड़ा की गढ़ी को घेर लिया। उत्तर की दिशा से सफदरजंग के साथ जवाहर सिंह, दक्षिण की दिशा से बक्शी मोहन राम, सुल्तान और वीर नारायण, रिज़र्व फौज का नेतृव बालू राम जाट को दिया और सूरजमल खुद ने 5 हजार सैनिक और तोपो को लेकर अपने मामा सुखराम और मीर मुहम्मद पनाह के साथ पूर्वी दिशा में मोर्चाबंदी की।
3 महीने तक विशाल मुगल-जाट फौज मात्र 25 राजपूतो द्वारा रक्षित गढ़ी(छोटे किले) को घेर कर हमला करती रही लेकिन तब भी सूरजमल की विशाल सेना गढ़ी में घुस नही पाई। इस बीच राव बहादुर सिंह के भाई जालिम सिंह और पुत्र अजीत सिंह घायल हो गए। युद्ध को इतना लंबा खिंचते देख सूरजमल ने संधि का प्रस्ताव भेजा जिसकी शर्तो को राव बहादुर सिंह राघव ने मानने से इनकार कर दिया। इसी बीच जालिम सिंह की मृत्यु हो गई। कुछ दिन बाद सूरजमल ने दोबारा संधि प्रस्ताव भेजा लेकिन हठी राव बहादुर सिंह ने दोबारा इसे ठुकरा दिया।
17 अप्रैल 1753 की रात को सूरजमल ने चारो तरफ से भीषण हमला करने का आदेश दिया, अगले दिन भीषण गोलाबारी और लड़ाई में मीर मुहम्मद पनाह समेत 1500 मुगल-जाट सैनिक मारे गए लेकिन तब भी मुगल फौज गढ़ी(किले) में नही घुस पाई। इसके बाद राव बहादुर सिंह ने शाका-जौहर करने का निश्चय किया। उनके परिवार की महिलाओं ने बारूद में आग लगाकर खुद को उड़ा लिया। राव बहादुर सिंह अपने पुत्र अजीत सिंह और 24 अन्य परिवारजनों और सहयोगियों के साथ शाका करने के लिए गढ़ी से बाहर निकले और बहादुरी के साथ आखिरी दम तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह मंजर देख कर मुगल-जाट फौज का दिल दहल गया। मुगल सेनापति सूरजमल ने घासेड़ा पर कब्जा जरूर कर लिया लेकिन वहां उसे राख के अलावा कुछ भी प्राप्त नही हुआ।
सूरजमल का दरबारी कवि सूदन इस युद्ध का चश्मदीद था और उसने सूरजमल की जीवनी सुजान चरित में राव बहादुर सिंह और उनके सहयोगी राजपूतो की बहादुरी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। यह भारतीय इतिहास का आखरी प्रमुख जौहर/शाका माना जाता है। इतिहास में ऐसे उदाहरण भी शायद ही कही हो जहाँ 25 लोगो ने अपने से हजार गुना बड़ी, सुसज्जित, हर तरीके से ताकतवर एवं सुविधा सम्पन्न फौज का एक छोटे से किले में कई महीनों तक मुकाबला किया और मात्र 25 लोगो ने 1500 लोगो को मार गिराया हो। सूरजमल और उसके मुगल सहयोगियों को ये अंदाजा बिलकुल भी नही था कि राव बहादुर सिंह और उनके अन्य राजपूत सहयोगी अपने आत्मसम्मान और इज्जत की रक्षा के लिए इस हद तक जा सकते हैं। 18वी सदी के संक्रमण काल में जब अव्यवस्था का फायदा उठाकर अनेक लूटेरे वर्ग उत्तर भारत की राजनीति में उभर आए थे और राजनीती बहादुरी और स्वाभिमान के बजाए लूट और धोखे के इर्द गिर्द सिमट गई थी, पुरानी स्वाभिमानी, इज्जतदार और बहादुर वर्ग इस लूट, फरेब और भ्रष्टाचार के तंत्र में किनारे हो चुकी थे, ऐसे समय राव बहादुर सिंह के नेतृत्व में मुट्ठीभर राजपूतो ने राजपुत्रो की शताब्दियों पुरानी आत्मबलिदान की परंपरा का प्रदर्शन कर उस समय की राजनीति में हलचल पैदा करने का काम किया।
संदर्भ-
1. सुजान चरित, सूदन
2. तारीख ए अहमदशाही
3. गुड़गांव गज़ेटियर
4. दी फॉल ऑफ मुगल एम्पायर, जे एन सरकार