फेसबुक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
फेसबुक लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 23 अगस्त 2020

प्रेम

परोक्षप्रेम,प्रत्यक्ष मोहभंग
-----------------------------
वह भी एक आम फेसबुकिया था....औरो की तरह रोज 8 से लेकर 20 घण्टे तक दिहाड़ी करने बाला। अपने अंक में समेटे था सेकड़ो झटके,अनगिनत भावनाये ओर युवामन की अशेष आशाओं में कही पुनः जीवन स्थापन के लिए नित्य प्रत्यनशील !
घर से दूर एकांत रहना और अवकाश बाले दिनों में भी टिफिन के साथ कोई किताब लेकर जंगलो,नदी सरोबरो के किनारे फक्कड़ जैसी प्रियता में वह इस दुनिया मे एक विचित्र से कम नही था। सधे शब्दो मे बोलना ओर माटी को शब्द देना जैसे उसे इसी फक्कड़पन का फल था ..!!

वह जब व्याकरणीय त्रुटियों के साथ माटी को शब्द देता तो लोग बलिहारी हुए जाते थे.....लोगो ने जब उसके विषय मे कल्पनाएं गढ़ी तो कल्पनाएं सदा की तरह स्थिति के विपरीत ही बनी....सदा इंसान परोक्ष में बसी कल्पनाओ में ठगा महसूस करता है,ओर जब पूर्वनियोजित धारणा से कही एक हजार गुना अधिक निम्न प्रत्यक्ष होता है! तो जो मानव आकर्षण होता है वह  कुछ अपवादों को छोड़ .....आकर्षण बिंदु से कही दूर भागता है ।
लोग उससे दूर भाग रहे थे और वह जीवन युद्ध मे भाग रहा था .....इधर-उधर,यत्र-तत्र, सर्वत्र! स्वम की प्राणवायु  खोजते हुए क्योंकि उसे आडम्बर पसंद नही थे और समय उसके साथ परिहास कर रहा था ...।
समय ने उसके साथ इतने परिहास किये की उसे उसपर होने बाले परिहास कही सूक्ष्म दिखते ओर वह नए-नए खुशियों के माध्यम में खुश था ।

उसके नीड़ में तृणों के अभाव थे किंतु वह पक्षियों के नीड़ सुरक्षित करके सुख अनुभूत करता था। वह औरो को अपना बनाकर उनकी उपलब्धियों में स्वम से जोड़ लेता था....वह नही जानता था कि "औरो के परितोष स्वम के घर मे नही सजते!"
यंहा तो अपना घर सजाने के लिए 'रद्दी पत्र' भी स्वम ही खरीदने पड़ते है। उसमें किसी से मोह नही लगाया क्यूकी  वह जिससे मोह करता था.....वह इस दुनिया मे तमाम कष्टों के विचरण का माध्यम बन जाता अथवा इस दुनिया से ही विचर जाता। कहि दूर अनन्त में अदृश्य धुंए की कुछ लकीरे उसे आज भी स्मरण है ....स्वम की असफलताओं के प्रतीक बनकर....अपनो से कही दूर रहने का संकेतक प्रतीक बनकर !

वह प्राकृतिक था....है और सदैव रहेगा! उसने न कल आकर्षण के आवरण ओढ़े थे ...न कभी आकर्षण बिंदु बने रहने की अपेक्षाएं की थी। वह तो नग्न तेग जैसा था ...दुधारा,निरीह,निष्ठुर...जिसके फल का स्पर्श सिर्फ घाव दे सकता है और हजारो घाव लिए वह लोगो को घावों से बचाते हुए इस दुनिया को अलविदा कर गया .....आकर्षण की अपेक्षाओं से रहित एक सिहाई का  सरोबर अंततः सुख गया !!!!

---------
जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...