==एक कहानी==
कहीं दूर दराज के गाव में एक मेहनती किसान रहा करते थे .....हर कार्य को पूरी लग्न ,निष्ठा,और सूझ बुझ से करने बाले कर्मठ...... किन्तु उनकी समझ अनुसार फसलो से उचित उत्पादन नहीं मिल पाता या यु कहिये हर कार्य में अत्यधिक सम्भावनाये जगा लेना उनकी स्वभाविक सोच थी ।
प्रारम्भिक तीन वर्षो तक अनवरत उनकी फसलो में औसत से कम उत्पादन हुआ और उनको भयंकर निराशाओं ने जकड़ लिया ......स्तिथ ये बन आई कि किसान हतोत्साहित होकर स्वम की इहलीला समाप्त करने के लिए एक जलप्रपात की और चल पड़े .......।
जेसे ही किसान अथाह जल में कूदने को उद्धृत हुआ की एक वृद्ध साधू महाराज ने आवाज दी.......
रुको वत्स अगर आपको ये दुष्कृत्य करना हे करिये किन्तु मात्र चन्द घड़ियों के लिए आश्रम चलो कुछ दिखाना फिर जो करना हो अवश्य करे में व्यवधान नहीं करूँगा ।
किसान ने सोचा चलो एक अंतिम बार जाते जाते महात्मा जी के साथ कुछ पल गुजार लिए जाए और बिना कुछ विरोध किये सहर्ष साधू जी के साथ हो लिए ।
नजदीक ही एक रमणीक आश्रम की कुटी में तरह तरह की लताये ,पोधे,मखमली,घास,बांस,फलदार जंगली वृक्ष इत्यादि के मनोहारी दृश्य देख किसान ने पूछा "महात्मन् आप कितने भाग्यशाली हे जो इतनी मनमोहक आश्रम में किये गए श्रम का उचित फल प्राप्त कर रहे हे ....अनुभवी साधू की वृद्ध हुई आँखे सब समझ चुकी थी ......किसान को एक बांस के पेड़ो की श्रंखला और घास की तरफ संकेत देके बोले .......
"हे महामानव आप जो ये सुखी घास की आँगन और बांस की सुदृण स्तिथि देख रहे हे दरअसल ये दोनों के बीजरोपण और पोषण एक साथ ही किये गए हे किन्तु प्रथम सप्त माह तक बांस बीज भूमि में ही रहा जबकि घास मात्र २सप्ताह में ही आच्छादित होने लगी में भी आपकी अंतर्द्वन्द में विचार करने लगा था की घास को देखो कितनी शीघ्र हरी भरी हो रही बही वांस का पौधा भी अंकुरित न हो पाया एक इच्छा हुई की बांस को छोड़ घास का ही ख्याल किया जाए ........"
किन्तु सप्तम माह उपरान्त बांस का एक सुदृण नन्हा पौधा निकला जो देखते ही देखते छाड़ियों में विकसित होकर एक बाड़ के रूप में विशालकाय हुआ वही ग्रीष्म के कारण सुकोमल घास शुष्क हो गयी हरियाली की चद्दर पर शुष्कता की वृद्ध अवश्था का प्रकोप सहन न हुआ जिसका कारण जमीन की जड़े उपरगामी थी जो जितनी जल्दी विकसित हुयी किन्तु प्रतिरक्षा तन्त्र निर्वल रहा "".....
आज बांस के सदाबहार वृक्षो में चिर वृद्धि का कारण विदित हुआ था ,आपको बताता हु ,प्रथम सप्त माष प्रसव काल में ही बांस ने अपनी जड़ो की वृद्धि की ना की बाह्य वृद्धि और जब जड़े भार सहन करने लायक हुई फिर अनवरत वृद्धि की .....
साधू की बातो का सार किसान समझ चुका था..... और जलदाह त्याग कर एक बार पुनः आने वाले भविष्य की सुदृण जड़ो का निर्माण करने लगा ........
#कथासार:- जब भी तुम्हें जीवन में संघर्ष करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे किआप आने वाले कल को सबसे बेहतरीन बना सको। किसी दूसरे से अपनी तुलना मत करो।
जितेन्द्र सिंह तोमर "५२ से"
०७/०७/२०१७