रविवार, 18 फ़रवरी 2024

गज़ल

रश्म ओ गारित हर एक मंजर दिखाई देता है,
मुझको जलता हुआ मेरा घर दिखाई देता है !

जीवन निकला खुशियो का कैदखाना बुनते-बुनते,
देखा टूटा हुआ फूंस का आशियाना दिखाई देता है !

हर शै यहाँ चेहरे पर नया चेहरा लगाये खड़ी है,
फिर से कोई मासूमियत का खरीदार दिखाई देता है!

शामे ख्वाव के तृणआशियाने उजड़े जा रहे हैं दोस्त ,
क्या करना और क्या कर बेठे में खोया दिखाई देता है !

उड़ते हुए धुएं सी थी जेहन में मंजिले कभी अशेष ,
आज बेरंग बादल सा गगन में भटकता दिखाई देता है !

सोचा था उन्मुक्त गगन सी गरिमा बन यशोभित होंगे 
आज खड़ा चौराहे की तरह एक राह दिखाई देता है !

फ़क्त सजाने को जिन्दगी,एक मन्ज़र सजाया था,
कत्ल ओ गारत यहाँ हर एक मन्ज़र दिखाई देता है !!

   
      ~JVS•

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