रविवार, 24 दिसंबर 2017

कथा कूप

★कथा कूप★'अभिव्यक्ति'

एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे।
उधर से एक संत गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है?
उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? संत ने कहा- हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगाक्या?
मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं।यहां पत्थर तोड़ते-तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा।

साधु आगे बढ़े।
एक दूसरा मजदूर मिला। संत ने पूछा- यहां क्या बनेगा?
मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने।चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के रूप में 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है।

साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा?
मजदूर ने कहा- मंदिर।इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं।
मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूंतो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाईपड़ता है। मैं आनंद में हूं।कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं।

मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं।बीच-बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया।
साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है।

#शब्दसार
आप जो भी काम करें उसमें आनंद ढूंढ लें। काम स्वतः ही आनंदमय हो जाएगा। गीता में भीकहा गया है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो, अगर कर्म अच्छे हैं तो फल स्वतः ही मिल जाएगें।
                      शुभ मंगल प्रभातम्

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