सोमवार, 18 दिसंबर 2017

==चम्बल एक सिंह अवलोकन==भाग ७

===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
                      भाग-७
     ●छिद्दा,माखन की युगल जोड़ी●
चम्बल पार खेड़ा राठौर निवासी राजा की उपाधि प्राप्त ददुआ मान सिंह राठौर ......
भदावर के डॉक्टर,मास्टर,और फिर जादूगर कहलाये मशहूर बागी माधो सिंह भदोरिया......
दोस्ती का दूसरा रूप  दुश्मनी में बदलति लाखन सिंह की मरणासन्न स्तिथि बदला लेने की अद्भुत क्षमता .........
बही अपने स्वर्ण युक्त पेरो से देश के लिए करीव ८तमगे दिलाने वाले सूबेदार पानसिंह तोमर की जीवन में सिर्फ दौड़ना लिखा था .......
दद्दा मलखान सिंह का अन्याय के विरुद्ध रायफल उठाने का दृश्यावलोकन करती इस श्रंखला की अपनी लेखनी आज आ पहुची सिकरवारि के खारो में ......

#साहिव_सलाम" के चिरपरिचित वाक्य के कारण प्रशिद्ध
यहा कें दो बागी मित्रो की अतुलनीय मित्रता का किस्सा आज आपके समक्ष
वही चिरपरिचित ऊँचे बड़े टीले  दूर क्षितीज में हल्की धुंध के वीच चम्बल किनारे स्वर्णिम अतीत को याद कराती और नारी शक्ति के त्याग की गाथा का प्रमाण  "सती मैया " मन्दिर यही स्तिथि सिकवारी का एक छोटा ठिकाना #नन्दगांगोलि ......

प्रातः काल की बैला आनन्द के आषाढ़ का माह कोयल कुक तो पपीहे की पीहू पीहू .....मोर का नृत्य के बीच कन्धे पर हल रखे करीव 20 वर्षीय नोजवान अपनी बैल जोड़ी के बिच कोई लोकगीत गुनगुनाता हुआ मस्त चाल चला जा रहा हे दूर के खेत पर ........हल चलाने ..     .सृजन करने....कृषि कर्म करने किन्तु नियति को कुछ और मंजूर था ।

"काये रे मखना तू मानो नाय फिर आय गओ खेत पे हमने नाही करि हती की नहीं ....?" के शब्द एकाएक नवयुवा के कर्णो में पिघले हुए शीशे की मानिंद उतरते चले गए ।

"अरे भज्जा जी खेतु तो दादे पुखरण रीति ते  हमहि जोते आय रहे हे तिहाओ कब हे गयो" ....माखन के क्रोध भरे शब्द
एकाएक सामने बाले दवंग की त्योरियों में बल बढाते गए और क्रोधतिरेक में या धन का घमण्ड और अपनी ऊँची पहुच पुलिस पटवारी का मेल का दम्भ बन्दूक टाँगे दवंग को बल देता गया  ....

बात ही बात में एक अकेले युवा को लट्ठ,डंडो के जख्म बढ़ते रहे ......बैल की जोड़ी मालिक की करून कृदन देख सुन  रंभाती रही किन्तु सुनसान खेतो पर कोन था जो सहयोग करे ....अथवा बचाव करे ...?
हमलावरों द्वारा लगातार जख्म पड़ते रहे दूर चम्बल ,कुँवारी नदी के वादियो एक बगावत का बीजारोपण होता रहा ।

लगभग मरनासन्न स्तिथि में बेले के नारे खोल जुअट के सहारे माखन को लटका कर बाँध गाव की तरफ बेल हांक दिए जाते हे ........जेसे ही बेल घर के सन्मुख पहुचते हे की हाहाकार मच जाता हे चारो तरफ ग्राम वासियो का जमावड़ा रुदन क्रोध बदले की भावना आँखों से टपकती हुयी ऊँगली के पोरो में आकर सूखती रही ।

५०के दशक में अभी भी भारतीय पुलिस भारतीय न हो पाई थी उनमे अभी भी ईस्ट इंण्डिन संक्रमनता के विषाणु व्याप्त थे ।
तहकीकात और न्याय की बजाय देवगढ़ थाने पर ही एक क्षेत्रीय चिकित्सक द्वारा मलहम पट्टी उपरान्त खेत दवंग को देकर मुक्ति पा लेने जैसा तुगलकी आदेश ....सूना दिया गया ....!!
न चाहते हुए भी विवस होकर मातृभूमि जबरदस्ती छीन लिए जाने का दर्द और बदला लेने की पृवती सबल होती गयी
और कुछ समय बाद गाँववासियों पर होते अत्याचार के कारण रह रह कर माखन सिंह सिकरवार की आँखों में अंगार वर्षाने लगा कहते हे की जव अति की पराकाष्ठा हो जाती हे तब तब रौद्रता प्राकट्य होता हे ।

आखिर घर की औरतो से दशहरे पे भेंट में मिली चुडिंया माखन सिंह को ललकार उठी और प्रारम्भ हुआ जुल्म पर जुल्म होने का ,आग को आग में जलने जैसा विचित्र खेल जिसमे शामिल हुए माखन के अभिन्न मित्र छिद्दा सिंह की सहभागिता ने विकट रूप ले लिया था ।

कभी कुल्हाड़ी से दुश्मन को टुकड़े टुकड़े कर बीहड़  निकले माखन सिंह के पास आज सेमिआटोमेटिक रायफल का भरोसा था तो छिद्दा जेसे यार का मजबूत कन्धा एक एक करके बदले लिए जाते रहे फिर चाहे पटवारी को उलटा टांग बीहड़ में मिर्चीयो का धुँआ दिया गया हो या तत्कालीन  प्रभारी को दौड़ा दौड़ा कर शिकार करने की बेदर्दी से लिए गए बदले .......
वीहड़ी जीवन में पकड़े होना आम बात हे सबलगढ़ के सेठ की चर्चित डेढ़ लाख फिरोती ने प्रशाशन की नजर माखन ,छिद्दा की जोड़ी को एनिमी नम्बर ५ पांच बना दिया ।

उप्र०मप्र०राज० की पुलिस तिकड़ी बीहड़ो की ख़ाक छानती रही किन्तु माखन का धैर्य और छिद्दा की चपलता४५ बागियों का गिरोह कभी राजस्थान,कभी मप्र०तो कभी उप्र में काण्ड करता रहा ।

इसी बीच एक दिन भीषण मुठभेड़ हुई सुभह से शाम किन्तु दोनों और से गरजती बन्दुके गरजती रही डाकुओ का अम्युनेसन खत्म होने की कगार पर निकलने का कोई रास्ता नहीं चहु और भदावर क्षेत्र में घिरा गिरोह ईश्वर को याद करने लगा .........
एक एक के छिद्दा सिंह ने सभी से अपने सर की शपथ ली की आज माखन कोई कुछ न बताएगा और सब निकल जाएंगे  अपने भाई की बात मांनेगे ।
इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता छिद्दा की रायफल गरजने लगी अकेले ही मोर्चे पर भाग भाग तावड तोड़ फायरिंग करता हुआ पुलिस को ललकारता रहा और पुलिस पूरा गिरोह एक  जगह समझ केवल छिद्दा की चाल में फंस गयी गिरोह जमीन के सहारे रेंगता हुआ एक खार से होते हुए गायव हो चूका था ।

माखन को जब पता चला की छिद्दा "साहव सलामत" ..........प्रतिउत्तर दीर्घ मोन .......!!
और उन्हें समझते देर न लगी की आज छिद्दा ने सबकी सलामति के लिए मित्रता का सर्वोपरि वलिदान कर  दिया हे .......तत्क्षण शपथ ली की छिद्दा तेरे वलिदान का बदला लिए बगैर न जाऊँगा इस दुनिया से ।

छिद्दा जेसे मित्र और रघुवीर जेसे भाई को वीहडो में खोकर माखन ने अपना बदला लेने के लिए मास्टर  माधो सिंह भदोरिया का साथ चुना और एक दिन  छिद्दा ,रघुवीर सिंह के एनकाउंटर उपरान्त उत्साह में आई पुलिस पार्टी के सभी १५ को अधिकारियो समेत कुवारी के बीहड़ो में माधो सिंह के सहयोग से आमने सामने की गोली बारी में मार कर बदला पूरा किया ।

१६ अप्रैल १९७२ जोरा गांधी आश्रम में माधो सिंह और लगभग ५४७बागियों  के साथ माखन सिंह सिकरवार ने भी आत्मसमपर्ण कर दिया था ।
१९८२ तक जेल में रहने के बाद समाज की मुख्य धारा से जुड़कर ,समाज सैवा और दस्यु उन्मूलन में माधो सिंह के साथ सहभागी रहे  माखन सिंह २१, मई १९९८ शिकारपुर रेलवे स्टेशन के पास संदिग्ध परिस्तिथियों में मृत पाये गए ।

"साहिव सलाम " के ताकिया कलाम से  प्रशिद्ध बागी ,डाकू,मित्र ,दस्यु उन्मूलन के सहभागी माखन सिंह अंतोतगत्वा गति को प्राप्त हुए ।

विशेष -: लेख की रोचकता के लिए चलचित्र "मुझे जीने दो " का सांकेतिक चित्र ,मात्र रोचकता के लिए संज्ञान में ले जिसका इस किस्से से कोई सम्बन्ध नहीं हे ।
(दिनांक 17 जुलाई 2017 --13:47 फेसबुक बाल पर प्रथम)

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