बुधवार, 13 दिसंबर 2017

===चम्बल एक सिंह अबलोकन===भाग 14

    
           ★बाग़ी मोहर सिंह गुजर★
५०-६० का दशक........हालिया मिली स्वतन्त्रता को समेटता हुआ भारत अपने पुनर्सृजन में मगन शने शने ताजे घावो पर बासी मरहम लगाता हुआ निरन्तर उन्नति कैसे हो? जेसे प्रश्नो में विचारशील था।किन्तु भारत का एक अहम भूभाग अभी भी १८५७ की जीवन शैली में जीवनयापन को जिए जा रहा था। हालाँकि बन्दुके पहले कभी विरोध ,अंग्रेजी हुकूमत,अबैध भू अधिकार,स्वाभिमान के लिए निकलती थी पर अब मरने बाले भी अपने थे और मारने बाले भी। बैलगाड़ियों में जूते बेलो की कंठमालाये जीवन राग की तरह बजती तो कभी चम्बल की वादियो में वारुदि सुगंध के अहसास के साथ गरजती।
चम्बल की अब लिखी गयी किस्सागोई में मानसिंह,रुपा,लाखन,माखन-छिद्दा,माधो सिंह,मलखान सिंह ,सुल्ताना,पुतली ,सुवेदार पान सिंह तोमर इत्यादि की कहानियो से जुदा नहीं हे मोहर सिंह की कहानी बही कायथो की पटवारी और बैमान लठैतों की चपलताओ से ही एक सीधे साधे युवक को बन्दूक थमा दी जिसने फिर मानवी लाशो पर चलना ही नियति माना ।
जब जब जुवा पर बागी डकैतो की बात चले और मोहरसिंह का किरदार अपनी अलग छाप छोड़ता हे। तो आइये आज के लेख में मिलते हे एक मुच्छड़ बागी किरदार से ......'मोहर सिंह गुजर'

बिसुलि नदी के कछार में एक छोटा गाँव .जट पूरा-जिला भिंड...
गाँव के पश्चिम में भगवान शंकर का पीले रंग से पुता हुआ मन्दिर-मन्दिर से ही सटा था कभी मोहर सिंह का कच्चा मकान। मकान में लगी सोटो(लकड़ी के पट्ट) से छड़ता हुआ घुन चूर्ण उसकी 20 वर्ष पुरानी कारीगरी को प्रमाणित कर रहा था। एक टीले पर बनी मड़ैया और कुछ पालतू जानबरो के साथ पेत्रिक जमीन का सीना चिर जीवन यापन करना यही तो था उस गाँव की किन्तु समय की धुरी बदल गयी अब गाँव की पहिचान बन चूका था एक नाम 'मोहर'!

मोहर सिंह इसी गांव का रहने वाला एक छोटा सा किसान था। गांव में छोटी सी जमीन थी। जिंदगी मजे से चल रही थी। लेकिन चंबल के इलाके का इतिहास बताता है कि किसानों की जमीनों में फसल के साथ साथ दुश्मनियां भी उगती है। जमीन के कब्जें को मोहर के कुनबे में एक झगड़ा शुरू हुआ। और इसी झगड़े में मोहर सिंह की जमीन का कुछ हिस्सा दूसरे परिवार ने दबा लिया। गांव में झगड़ा हुआ। पुलिस के पास मामला गया। और पुलिस ने उस समय की चंबल में चल रही रवायत के मुताबिक पैसे वाले का साथ दिया। केस चलता रहा। इस मामले में मोहर सिंह गवाह था। 
गांव में मुकदमें में गवाही देना दुश्मनी पालना होता है। जटपुरा में एक दिन मोहर सिंह को उसके मुखालिफों ने पकड़ कर गवाही न देने का दवाब डाला। कसरत और पहलवानी करने के शौंकीन मोहर सिंह ने ये बात ठुकरा दी तो फिर उसके दुश्मनों ने उसकी बुरी तरह पिटाई कर दी। घायल मोहर सिंह ने पुलिस की गुहार लगाई लेकिन थाने में उसकी आवाज सुनने की बजाय उस पर ही केस थोप दिया गया। 
बुरी तरह से अपमानित मोहर सिंह को कोई और रास्ता नहीं सूझा और उसने चंबल की राह पकड़ ली। 1958 में गांव में अपने इसी मंदिर पर मोहर सिंह ने अपने दुश्मनों को धूल में मिला देने की कसम खाई और चंबल में कूद पड़ा।  
मोहर सिंह ने पहला शिकार अपने गांव के दुश्मन को किया। उसके बाद बंदूक के साथ मोहर सिंह जंगलों में घूम रहा था। शुरू में उसने बाकि बागियों के गैंग में शामिल होने की कोशिश की। दो साल तक जंगलों में भटकते हुए मोहर सिंह की किसी गैंग में पटरी नहीं बैठी तो मोहर सिंह ने फैसला कर लिया कि वो खुद का गैंग बनाएंगा और गैंग भी ऐसा जिससे चंबल थर्रा उठे। 
गांव में ताकतवर लोगो से बदला लेने में ना कानून साथ देता है, ना भगवान और न ही अदालत की चौखट। चंबल में हर कमजोर के लिए ताकत हासिल करने का एक ही शॉर्ट कट है और वो है चंबल की डांग में बैठकर राईफलों के सहारे अपने दुश्मनों पर निशाना साधना।  मोहर सिंह की बदूंकें आग उगर रही थी और निशाना बन रहे थे दुश्मन। 
चंबल के मोहर सिंह ने अपना गैंग बनाया तो उस वक्त कई गैंग चंबल में अपना खौंफ बनाएं हुए थे। मानसिंह गैंग की कमान लोकमन दीक्षित उर्फ लुक्का पंडित के हाथों में थी। लाखन, माधों सिंह, हरविलास, छोटे-बटुरीसिंह जैसे गैंग पूरे चंबल में घूम रहे थे। और मोहर सिंह को इन्ही के बीच अपना रास्ता बनाना था। मोहर सिंह ने अपने साथियों के साथ पहले छोटी छोटी वारदात करना शुरू किया। और पुलिस के रिकॉर्ड में उसकी एंट्री शुरू हुई। 
मेहगांव थाने में धारा140/60 के तहत पहला अपराध था जो मोहर सिंह गैंग के खिलाफ पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। 1960 में ही गौहद थाने में दूसरा अपराध दर्ज हुआ(307/60) हत्या के प्रयास का। 

1961 में गौहद में पहला कत्ल का केस दर्ज हुआ। 
और इसके बाद की कहानी कत्लों का एक सिलसिला है।
मोहर सिंह ने पहले तो भिंड और आसपास के इलाके में अपराध किए लेकिन जैसे जैसे गैंग बढ़ने लगा मोहर सिंह ने भी अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया। मोहर सिंह अपने गैंग के अनुशासन को लेकर बेहद सतर्क था। मोहर सिंह का गैंग बढ़ रहा था उधर दूसरी और पुलिस एक एक कर चंबल के दूसरे गैंग का सफाया कर रही थी। मोहर सिंह ने इसका तोड़ निकाल लिया था। मोहर सिंह ने चंबल में ऐलान कर दिया था कि जो कोई भी उनके गैंग की मुखबिरी करेंगा उसका पूरे परिवार को साफ कर दिया जाएंगा। और इस पर उसने कड़ाई से अमल शुरू कर दिया। मुखबिरों को निबटाने में मोहर सिंह बेहद खूंखार हो जाता था। 
मुखबिरों को और उनके परिवार पर मोहर सिंह शिकारी की तरह से टूट पड़ता था। मोहर सिंह के गैंग के ऊपर ज्यादातर मुखबिरों के कत्ल के मामले बन रहे थे। लेकिन चंबल में मोहर सिंह का खौंफ पुलिस और उसके मुखबिरों पर लगातार बढ़ता जा रहा था। और इसका फायदा मिल रहा था मोहर सिंह को। मोहर सिंह का नाम मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में फैल गया था। जहां दूसरे गिरोहों को किसी भी गांव में रूकते वक्त मुखबिरी का डर रहता था वही मोहर सिंह का गैंग बेखटके अपनी बिरादरी के गांवों में ठहरता और पुलिस को खबर होने से पहले ही निकल जाता था।
मोहर सिंह ने अपने गैंग को सबसे बड़ा गैंग बनाने के साथ-साथ कुछ कठोर नियम भी बना दिये थे। मोहर सिंह गैंग में किसी भी महिला डाकू को शामिल करने के खिलाफ था। और इसके साथ ही उसके गैंग को सख्त हिदायत थी कि वो किसी भी लडकी और औरत की और आंख उठाकर न देखे नहीं तो मोहर सिंह उसको खुद सजा देगा। ये बात पुलिस अधिकारियों को आज भी याद है
और इस बात को  साल बाद भी मोहर सिंह याद रखता है कि.........कृमशः😂🙏
(अगली कड़ी शीघ्र ही पोस्ट की जायेगी )
                       जितेंद्र सिंह तोमर'५२से'
                        13/12/2017

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