गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

हम

भूल जाओ यारो, अपने हाथों की लकीरों को
खुद ही बनाना पड़ता है, अपनी तक़दीरों को!

उसका तो फल मिलेगा जो किया है तुमने
मगर दोष देते हो क्यों, अपनी तकदीरों को!

ग़मों का क्या वो न छोड़ते हैं किसी को भी,
चाहे जकड़ें गरीबों को, चाहे पकड़ें अमीरों को!

वो तो बैठा है हर किसी के #दिल में,
मगर सर नवाते है हम, बेज़ुबान तस्वीरों को...!!

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