टूटे ख्वाबो के बिखरने से सजे हुए अरमान थे तुम,
बिखरी आशाओ के आश लगाये मेहरबान थे तुम।
सर पे सजाना चाहा था तुमको बो सम्मान थे तुम,
कुछ सधे सम्भलते कदम रख रहे हो बन्दा परवर।
कही न कही कभी कभी न कभी मुझे देखते हो ,
अब बेतकल्ल्उफि से खुद को खुदाई रखते हो।
नुपुर सी ध्वनि नीरजवृत्त दृगदृस्टि सदृश हो तुम,
सम समान आत्मा आत्मनिधान कृष्ट् बहुदृश् हो तुम।
स्पर्श अभिप्राय नहीं कदापि समभाज्य विधान हो तुम,
बिबर से शिखर तक पुनः पाये अप्राप्य श्रद्धान हो तुम।
सोचता हु 'इति श्री शिद्धयम' मान प्रस्थान कर दू ,
पुनः विस्मरण न कर सकु ऐसा ध्यान दृष्टान हो तुम........
🚩🌷🚩
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें