===कथा कूप===
किसी जंगल में एक बड़ा सा तालाब था उसमें सैकड़ों मेंढ़क रहते थे। तालाब में कोई राजा नहीं था। दिन पर दिन अनुशासनहीनता बढ़ती जाती थी और स्थिति को नियंत्रण में करने वाला कोई नहीं था।
उसे ठीक करने का कोई यंत्र तंत्र मंत्र दिखाई नहीं देता था। नई पीढ़ी उत्तरदायित्व हीन थी। जो थोड़े बहुत होशियार मेंढ़क निकलते थे वे पढ़-लिखकर अपना तालाब सुधारने की बजाय दूसरे तालाबों में चैन से जा बसते थे।
हार कर कुछ बूढ़े मेंढ़कों ने घोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया और उनसे आग्रह किया कि तालाब के लिये कोई राजा भेज दें। जिससे उनके तालाब में सुख चैन स्थापित हो सके।
शिव जी ने प्रसन्न होकर नंदी( शिव का वाहन) को उनकी देखभाल के लिए भेज दिया।नंदी तालाब के किनारे इधर उधर घूमता, पहरेदारी करता लेकिन न वह उनकी भाषा समझता था न उनकी भावनामई को आवश्यकताएं। नंदी के खुर से कुचलकर अक्सर कोई न कोई मेंढ़क मर जाता। समस्या दूर होने की बजाय और बढ़ गई थी। पहले तो केवल झगड़े झंझट होते थे लेकिन अब तो मौतें भी होने लगीं।
फिर से कुछ बूढ़े मेंढकों ने तपस्या से शिवजी को प्रसन्न किया और राजा को बदल देने की प्रार्थना की। शिव जी ने उनकी बात का सम्मान करते हुए नंदी को वापस बुला लिया औरअपने गले के सर्प को राजा बनाकर भेज दिया।
फिर क्या था वह पहरेदारी करते समय एक दो मेंढ़क चट कर जाता, मेंढ़क उसके भोजन जो थे। मेंढ़क बुरी तरह से परेशानी में घिर गएे।
फिर से मेंढ़कों ने घबराकर अपनी तपस्या से भोलेशंकर को पुनः प्रसन्न किया। शिव भी थे तो भोलेबाबा ही, सो जल्दी से प्रकट हो गए। मेंढ़कों ने कहा, "आपका भेजा हुआ कोई भी राजा हमारे तालाब में व्यवस्था नहीं बना पाया। समझ में नहीं आता कि हमारे कष्ट कैसेदूर होंगे!कोई यंत्र या मंत्र काम नहीं करता। आप ही बताएं हम क्या करें?
'इस बार शिव जी जरा गंभीर हो गए। थोड़ा रुक कर बोले, "यंत्र मंत्र छोड़ो और स्वतंत्र स्थापित करो। मैं तुम्हें यही शिक्षा देना चाहता था। तुम्हें क्या चाहिए और तुम्हारे लिए क्या उपयोगी वह केवल तुम्हीं अच्छी तरह समझ सकते हो।किसी भी तंत्र में बाहर से भेजा गया कोई भी विदेशी शासन या नियम चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों न हो तुम्हारे लिये अच्छा नहीं हो सकता। इसलिये अपना स्वाभिमान जागृत करो,संगठित बनो, अपना तंत्र बनाओ और उसे लागू करो। अपनी आवश्यकताएं समझो, गलतियों से सीखो। मांगने से सब कुछ प्राप्त नहीं होता, अपने परिश्रम का मूल्य समझो और समझदारी से अपना तंत्र विकसित करो।"
#शब्दसार
लघुकथा का आशय यह है कि हमें अपने विवेक और बुद्धि का उपयोग करते हुए काम करना चाहिए। किसी पर आश्रित रहकर यदि काम करते हैं तो हानि ही उठानी पड़ती है।
(बाकि जो हैए सो हैए ही)
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