सोमवार, 24 जुलाई 2017

क्रांति नायक भाग २

===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
           ●क्रांति नायक●
                     भाग-२
"सरफ़रोशी की तम्मन्ना अव हमारे दिल में हे " का उद्घोष करते हँसते हँसते फांसी के फंदे को चूमते महान क्रांति नायक से आज कोन परिचित नहीं हे .....?
१९ दिसम्बर १९२८ की प्रभात बैला में एक सिंह अंगड़ाई लेता हुआ फांसी स्तम्भ की रस्सी को चूमने के लिए बेताव हुआ ऐसे जा रहा हे जेसे फांसीघर न हो ममता का दुलार बार बार अपने अबोध शावक को दुलारने के लिए ,वात्सल्य मयी गोद आँचल फैला कर बुला रही हो ......आ मेरे लाल आज हाथो से तेरे भाल को सहला दू ,अपने हाथो से से तुझे बो ममता का अमृत दू जो सबको नसीव नहीं होता ...!
भारत माँ का लाल भी अठखेलिया करता जंजीर ,बेडियो से सुसज्जित ऐसे जाता हुआ प्रतीत होता हे जेसे मिटटी खाने की बाल पृवती पर श्रीकृष्ण जी को ओखलो से बन्धन किया गया था ।
काला कपड़ा मुह पर डालता चांडाल अंत्रात्मा में द्रवित हे ,हाथो को पीठ पीछे लपेटा जा रहा हे मानो पुन:जन्म से पहले ही मातृत्व सूत्र लिपटा दिया हो ......हत्था खीचा गया और एक लाल माँ के  वात्सल्यी आँचल में सदा के लिए छुप गया ..........

काकोरी काण्ड के नायक पं०रामप्रसाद "बिस्मिल जी .......तात्कालिक निवास शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश ,पैत्रिक निवास ठिकाना बरवाई(रुअर,बरबाई)जिला मुरैना मप्र० चम्बल के हरिताभ आभा से आच्छादित तोमरघार "२० सो" क्षेत्र ।
मूल नाम रामप्रसाद सिंह तोमर का जन्म ११ जून १८९७ ईस्वी को शाहजहापुर उप्र० के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था ।
वाल्य् काल के शिक्षण काल में "उ"न पढ़ने के हठी लक्षण के कारण शीघ्र ही उनके शिक्षक पिता जी उर्दू ,हिंदी ,के साथ पढ़ाने लगे ....पड़ोसी एक विद्वान ब्राह्मण के सांनिंद्य से प्रभावित होकर विधिवत पूजा अरचना के गुणी हुए और अपनी धार्मिक प्रवति रामानंदी तिलक से शोभित ललाट के कारण "पण्डित" विश्लेषण की उपाधि से आम जन मानस में विख्यात होते गए ........बहुभाषा ज्ञान होने की बजह और साहित्य लेखन की अनूठी प्रतिभा अंग्रेजो के द्वारा भारतीयो पर होते क्रूर अत्याचार  ने उनकी अंतरात्मा को झंझोड़ दिया और एक उपनाम उन्होंने अपने साथ जोड लिया "बिस्मिल " ।

समय पंख लगा के उड़ता रहा किशोर अवस्था से युवावस्था की तरह बढ़ते कदम 'क्रांति यज्ञ' की और बढ़ गए ......धुर आर्य समाज की मान्यताओ के समर्थक बिस्मिल जी को असफाक उल्ला खान जेसा आत्मीय बन्धु भी इसी क्रांति यज्ञ की वेदी में स्वाहा....उच्चारित करते हुए मिले दो शरीर एक आत्मा कहि जाने वाली मित्रता की अद्भुत मिशाल जोश साहस के रथो पे सवार होकर पण्डित गेंदा लाल दीक्षित जी ,चन्दशेखर आजाद,ठाकुर रोशन सिंह जी,राजेन्द्र सिंह 'लाहिड़ी' जेसे दिग्गजों की क्रांति सैना में आ जुड़े ।
अपने स्वलिखित साहित्य से प्राप्त धनराशि का उपयोग अस्त्र खरीदने में करते हुए क्रांति का जयघोस होता रहा ........१९२२ के असयोग आंदोलन से हतास हुए करन्तिकारियो ने अपने नूतन दल का गठन किया जिसके नाम "हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिअसन रखा गया जिसके अंतर्गत गुप्त तरीके से क्रांति ज्वाला निरन्तर क्रांति साहित्य के सहारे प्रज्वलवित की जाती रही ।
एक बार सान्याल जी और एन्य अनुभवी नायको को केशरिया साहित्य के साथ ग्रिफ्तार कर लिया अव सभी के सामने अनुभवी लोगो कमी और आर्थिक संकट तो पहले से ही था मुह बाए खड़ी थी ।

०९ अगस्त १९२५ को शाहजहा पुर से लखनऊ जाने बाली गाडी को लूटने का का खाका तैयार किया गया जिसमे बिस्मिल,अस्फाख्,रोशन सिंह ,रामकृष्ण खत्री,सचिंद्र नाथ,आजाद जेसे वीरो ने इस कार्य को अंजाम दिया काकोरी स्टेशन से पहले ही पहले बेठे हुए क्रान्तिकारियो ने जंजीर खींच दी पहले से मोर्चे पे तैनात लोगो के तमनच्चे अंग्रेजो को सुलाने लगे .....अस्फाख् ने गार्ड के पास से बक्सा खींच ताला तोड़ लगभग ४००० नगद लूट लिए ...........रक्षात्मक गोलीवारि करते हुए सभी योद्धा सकुशल अंग्रजो को चुनोती दे चुके थे ।
अंग्रेजी हुकूमत में इस खबर की बजह से पुती कालिख को साफ़ करने के लिए लगभग ४८ सपूतो को किंतु मुख्य नायक किसी के हाथ न आये ....
दिल्ली में अपने एक मित्र के यहाँ रहने  की खबर मुखबिरों ने गोरो तक पहुचा दी और बिस्मिल जी को बन्दी बना लिया गया इसी बाकी सभी २८क्रान्तिकारियो को भी पकड़ लिया इस मामले की देखरेख एक अंग्रेज जज हेमिल्टन कर रहा था जिसने कुछ क्रान्तिकारियो को तोड़ कर सरकारी गवाह बना सजा मुक्त करवा लिया ।
पैरवी चलती रही देशप्रेमी अधिवकताओं की दलील अनसुनी होती रही और सरकारी बकील जगनारायण "मुल्ला" लगातार आरोप शिद्ध करता रहा ।
जिसमें २देश द्रोहियो को सरकारी गवाह,सेठ चम्पालाल की बीमारी ,और दो लोगो स्पष्ट प्रमाण न होने की बजह से सेशन कोर्ट से सजा मुक्त रखा बाकी सचिंद्र सान्याल,हरगोविंद भी सजा मुक्त रहे .....कुल १८लोगो पर अभियोजन चला और विभिन्नं धाराओ के अंतर्गत सबको सजा सूना दी गयी ।
१८ दिसम्बर १९२७ रोशन सिंह जी
१९ दिसम्बर को अस्फाख् और बिस्मिल जी
२० दिसम्बर को राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी जी
इस मात्र भूमि मिटटी की सर्वोपरि त्याग करते हुए दिव्य ज्योति में विलीन हो गए ।
आजाद जी सदैव आजाद ही रहे और कई दुस्ट अंग्रेजो का संघार करते हुए मातृ गोद में चिर निद्रा में लीन होगये ।

मरते असफाक विस्मिल अत्याचार से,
सेकड़ो होंगे पैदा इनकी रक्त धार से ।।
            वंदे मातरम् ,जय भवानी
(लेख विस्तृत न करके संछिप्त करना पड़ा  हे )

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