===चम्बल एक सिंह अबलोकन ===
भाग -८
★बागी पंचम सिंह चौहान ★
९४ वर्ष की उम्र गठीला बदन सर भवे कान के बाल तक पटसन की माफिख हो चुके सफ़ेद बाल ,कभी कटारिदार बड़ी बड़ी गल मुछो से निकली रौबीली भारी आवाज में शांति शंदेश देता हुआ एक पूर्व बीहड़ी खूंखार डकेत ......
जी हा आप सही पढ़ रहे हे विस्मित मत होइए ये वही चम्बल के पूर्व बागी हे जिनपर कभी १५०से ज्यादा हत्या,२००ज्यादा अपहरण और करीब ५०० से डकैतियों के अपराध विभिन्न चौकियों में पंजीबद्ध हुआ करते थे ।और आज ऊँचे मंच से शाधु वेश में शान्ति सद्भावना का भाईचारे का सन्देश हजारो श्रधालुओ को सूना रहे थे ।
क्या ये वही पूर्व दस्यु हो सकते हे जिन्होनो सिर्फ रायफल,बन्दूक की आवाजो से बीहड़ो की वादियो को दहलाया हो ?
तो आइये पढ़ाये एक डाकू से साधू बनने तक की एक रोमांचक कहानी मेरी कलम की जुवानी ।
इस कहानी का प्रारम्भ चम्बल के सोम्य और अतिउत्साही गाँवों से न होकर बल्कि दूर चम्बल से रक्त सम्बन्ध स्थापित किये उत्तरप्रदेश के जनपद मैनपुरी की चौहानी चौबीसी से जुड़ते हे ।
उत्तरप्रदेश में चौहान चौविसि के आम गाँवों की तरह ही एक संमवृद्ध शाली गाँव ......
गाँव में अंग्रेजी शाशन में प्रद्दत साहुकारी की जलबे और समय समय गाँव के किसानो की जमीनों को हथियाने का फ़िल्मी तरीको से प्रचलन । इसी गाँव के पंचम सिंह एक बलिष्ठ युवा जो स्थानीय क्षेत्र में उच्च विद्यालय न होने के कारण चम्बल की रिश्तेदारी में विद्द्या अर्जन के लिए आते हे ....शनै शनै समय अपने पंख लगा कर उड़ता रहा हे और पंचम सिंह भारतीय सैना में भर्ती हो कर दूर दराज सैन्य प्रशिक्षण के लिए भेज दिए जाते हे ।
लगभग ७वर्षो तक सेना में रहकर विभिन्न क्षेत्रो की तैनाती और कठोर नियमो का पालन जेसे जीवन का अभिन्न अंग बन चूका था ।
एक समय आया और वार्षिक छुट्टियों के साथ गृह आगमन हुआ किन्तु यहाँ परिस्तिथि तनाव पूर्ण देखकर गाँव में ही कुछ दिन बिताने के साथ पटवारी की नोकरी तलाश कर अपने गाँवों में रोजगार तलाश लिया । इसी बीच उनका चम्बल क्षेत्र में आना जाना बना रहता था जिसका एक बहुत बड़ा कारण चम्बल से कई वर्षो तक जुड़ाव था जो बार बार उनको चम्बल की सैर करवा देता ।
जिंदगी सुखमय जल रही थी किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था ...
एक दिन प्रभात बैला से पहले गाँव की प्रभात फेरियो के साथ गाँव उन्निदा ,अलसाया अंगड़ाइयां लेता नयन खोल ही रहा था की गाँव के दबंगो की आमद पंचम सिंह के आँगन में हो गयी ।
लगबग ८लोगो का मुस्टंड समूह जबरदस्ती धमका रहा था ।गालियो के साथ धमकी और १२ बीघे खेत न जोतने की धौंस से पुरे परिवार में हड़कम्प मच गया । हल बैल लेकर खेतो पर पहुचे पंचम सिंह को मरणासन्न स्तिथि में खेतो में छोड़ दवंगो ने लौटते समय घर पर भी खबर दी की पंचम को खेत जोतने की सजा मिल चुकी हे उसे उठा कर क्रियाकर्म के लिए ले आओ .........पुरे गाँव में दहशत तो पहले से व्याप्त थी अब रुदन ,करूण कृदन से एक परिवार में हाहाकार मची हुई थी ।
चारपाई पे रखकर पंचम को गाँव के युवा ले आये साँसे चल रही थी सिर ,मुह से टपकता रक्त और हाथ पैर पीठ पर पड़े हुए नील निशान ,जख्म बहुत जुल्म की दास्तां व्यान कर रहे थे ।
ऊंट गाडी पर रखकर मैनपुरी जिला अस्पताल लाया गया .....उपचार हुआ मलहम लगे और पंचम सिंह का जीवन बच गया ,समय के साथ भौतिक घाव तो भर गए किन्तु मन ,आत्मा पर लगे कहा भरने बाले थे ।स्वम के अपमान और जाती हुई पुश्तैनी विरासत का दर्द ,गाँव बासियो पर होते जुल्मो ने पंचम सिंह को राजा मानसिंह की बनाई चम्बल रियासत की तरफ ले जाने को प्रेरित कर रही थी ....और कही से जुगाड़ करके एक बन्दूक ले आये .....कहते हे की जब हाथ में भगवती और मस्तिष्क में बदले की बलबति होती हे तब तब इंसान निडर होकर स्वम इन्साफ करता हे ।
और एक दिन जब गाँव पंचम सिंह पर हुए जुल्मो भुला दैनिक कार्यो में व्यस्त था पंचम कारतूस के बिल्डोरिया के साथ जख्म पर रक्त का मलहम लगाने खेतो पर जा पहुचे ।अपने खेत पर चलते दबंगो ट्रेक्टर और दबंगो हँसी ठट्ठा आँखे रक्तिम कर गया । खेतो में गूंजी पंचम की रौबीली आवाजे चम्बल में गुजने को आतुर थी ।दुश्मन को ललकार कर रायफल से एक के बाद ०८लोगो के रक्त का तिलक पंचम के भाल पर लग गया और चम्बल को एक नया बागी मिला #पंचम_सिंह_चौहान ......
ट्रेक्टर आग लगा बीहड़ी रास्तो के सहारे पंचम सिंह ने एक नया रूप लिया जिनकी आवाज के साथ गोली मारने की दक्षता किस्से आज भी चर्चित हे ।
समय उड़ता रहा पंचम गिन गिन के बदले लेते रहे ....पुश्तैनी मकान सुनसान हो गया परिवारी जन दूर रिश्तेदारियों में समय काटते रहे और इधर चम्बल में पंचम के किस्से चर्चित होते रहे लगबग ९८अपहरण २६हत्याओ के पंजीबद्ध होने के कारण यूपी, मप्र राज की पुलिस के लिए एक नया सिरदर्द चम्बल में आ चूका था ये आजादी के बाद की बात हे। सुनने में आया हे की गैंदा लाल दीक्षित,रामप्रसाद बिस्मिल ,अस्फाख् उला इत्यादि की क्रांतिकारी गतिविधियों में पंचम सिंह का अहम किरदार था ।
मान सिंह राठौर के साथ मिलकर की अंग्रेज पुलिस बालो की परेड करवा कर गोलियों भुनना एक सोक बन चुका था ।
की बुजुर्गो का कहना हे की पंचम सिंह और गेंदालाल दीक्षित मिलकर क्रान्तिकारियो को धन इत्यादि भी देते थे जो रसूखदारों से लूटा जाता था ।
और एक दिन मुखविर की पिन पॉइंट खबर अनुसार पंचम सिंह गिरोह और पुलिस का आमना सामना बकेबर के जंगलो में हो गया दोनों तरफ अंधाधुन्द फायरिंग से बीहड़ काँप उठा किन्तु किस्मत पंचम के साथ थी पीछे आये मान सिंह गिरोह ने पंचम गिरोह को मृत संजीवनी प्रदान की आप खतरे में पुलिस थी दो पाटो के बीच पिसे गेहू की मांनिद अंग्रेज अधिकारी पलायन करने लगे .....इस भीषण मुठभेड़ में पुलिस प्रशाशन की बहुत किरकिरी हुई और परिणाम शून्य कई सिपाहियो की मोत से भन्नाए अंग्रेज अधिकारी w khobh आतंकित हो उठा और आगरा की तरफ भाग निकला .....
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