=== लोक कृति ===
●आनन्द मयी ऊर्जा का आषाढ़●
ज्येष्ठ माष के अंतिम दिवसो में लू का वेग शीतलता ,हरियाली,कृषि उत्साह और आनन्दी उत्सव से परिपूर्ण एक शीतल ,मनोहारी माष का प्राकट्य होता हे "आनन्द का आषाढ़" ।
माह की प्रारम्भिक तिथियों से एक उत्सव सा दृश्य बनता जाता हे जिनमे पाणिग्रहण संस्कारो के साथ इन कृषक उत्सवो का समावेश एक अद्वितीत हो जाता हे ।
तृतीय तिथि के "हरायते"(कृषि कार्य का प्रारम्भिक उत्सव)पर सामूहिक रूप से बैलो ,खेतो के विधिवत पूजन ,मिटटी के बर्तनों के नीचे मिटटी की ढेली रखकर कृषक माताओ द्वारा वर्षण काल माहो का पूर्व अवलोकन की अद्भुत मान्यता से संजोता हुआ ,गुप्त मातृ पक्षय् की अटूट श्रद्धा ,वर अमावश्या पर लोक गीतों की मनोहारी श्रवण कराती मनुष्य के चिर कालिक सनातन संस्कृति से जुड़े रहने का दृश्य सजीव करता हे ।
बैेलो के गले में बंधे घुंघरुओं की मधुर झनकार लिए सरल सोम्य त्यौहार की इस श्रंखला कभी आषाढ़ी मेलो का एक अपना विशेष महत्व हुआ करता था ।
वही मधुर मिलन के पाणिग्रहण संस्कारो से सुसज्जित उल्लास पर देवशयनी एकादशी को ,आगामी ४माह तक पुनः विचार खोज खबर के लिए विराम दिया जाता रहा हे
किन्तु समय के दुष्चक्र में फंसकर आधे त्यौहार हम भूल बैठे .....मात्र कुछ त्यौहार ही आज मनाये क्या सिर्फ सामाजिक मंचो पर बधाई देकर ,लिखकर पूर्ण समझे जाने लगे ।
आसाढ़ वदी पूर्णिमा को सम्पूर्ण देश विभिन्न तरीको से हर्षो उल्लास के साथ एक माहि उत्सव को एक दिवस में संकुचित कर चूका हे ।
आधुनिक होते किसान पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत के अकूत भण्डार आनन्दी आषाढ़ का महत्व भूल चुके हे ।
अब न बैेलो के घुंघरू गुंजार होते हे और न मेलो की अठखेलिया में बच्चों की किलकारीया सुनाई देती हे ।
कभी हल कन्धे पर रखकर किसान दाऊ बलराम की सदृश होता था ,आज तेज विहीन होकर निर्बल निठल्ला किस्मत को कोस रहा हे ।
अद्भुत ऊर्जा के भण्डार आसाढ़ माह की उत्सव मई बैला में एक बार डूबकर देखिये ,पूर्ण वर्ष के उत्साह ऊर्जा संचार का आधार हमको आषाढ़ में दृश्य हो जाएगा ।
संस्कृति विहीन परिवार,समाज ,देश चिरायु नहीं होते ।
गुरुपूर्णिमा की हार्दिक बधाइयों व् आनंदमयी आषाढ़ कीे अद्भुत ऊर्जाओं साथ !
आपका ही ,
जितेन्द्र सिंह तोमर "५२से"
(आषाढ़ी पूजन चित्र आराधना चौहान जी कर कमलो से साभार )
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