==चम्बल एक सिंह अबलोकन==
भाग-६
●बागी मलखान सिंह●
दिनांक १८नबम्बर २०१६ ग्वालियर महाराज बाड़ा स्तिथि भारतीय स्टेंट बैंक की शाखा पर एक रोवदार चेहरा,बड़ी बड़ी आँखों एवम् कानो को शपर्ष करती गलमुछे ,कन्धे पर ऑटोमेटिक ३२३बोररायफल,
बगल में सैना के अम्युनेशन जैसा थेला टाँगे शांत भाव से खड़े पूर्व बागी दद्दा मलखान सिंह सभी की चर्चा का विषय बने हुए थे ......!
कभी अपनी रोवदार आवाज से चम्बल के बीहड़ में प्रतिध्वनि को गुंजायमान करने मशहूर चम्बल के राजा मान सिंह द्वारा पुनर्स्थापित की गयी बागियों की मर्यादित परम्परा का पालन करने के अंतिम अनुयायी दद्दा मलखान सिंह सेकड़ो लोगो की तरह अपनी बारी के इन्तेजार में खड़े दिखाई दिए हालांकि पुलिस और जनता के बगैर पंक्तिबद्ध हुए रुपये बलवाने का नम्रता से धन्यवाद देते हुए पंक्तिबद्ध होकर ही पैसे लेने को अडिग रहे ।
फिर क्या परिस्तिथि रही होगी जो एक विनयशील इंसान को कई दशको तक रायफल लिए बीहड़ो में रहना पढ़ा ....मानवी रक्त की होलिया खेलनी पड़ी .....,सेकड़ो अपहरण करने पडे ......?
उपरोक्त सभी प्रश्नो को जानने के लिए हमे जाना होगा करीब ५६ वर्ष पुरानी कहानी पर ....आइये आज आपको सैर कराते हे ,चम्बल की वादियो से .....!
राज्य मप्र०का जिला भिंड उमरी तहसील के अंतर्गत आता हे चम्बल और सिंध सरिताई वादियो में एक आम बीहड़ी गावो की तरह का गाव #बिलाव के आम घरो की तरह एक घर इसी घर में रहने वाले 17 साल के एक लड़के मलखान सिंह ने गांव के जमींदार के खिलाफ आवाज उठाई थी.....गांव में कैलाश पंडित का दबदबा था।
खंगार ठाकुरो के कुलपुरोहित परिवार के पास गांव की ज्यादातर जमीन थी,वर्षो से सरपंची पर भी इसी परिवार का कब्जा था ।
मलखान सिंह भी गांव के ज्यादातर दूसरे लड़कों की तरह पंडित कैलाश के पास ही उठा-बैठा करता था।
किन्तु कई बार वो कैलाश पंडित की बातों का सरेआम विरोध कर देते थे ,और ये बात कैलाश पंडित को चुभने लगी.....रिश्तों में दरार पड़नी शुरू हो गई। मलखान सिंह को मालूम नहीं था कि उनका एक छोटा सा कदम उसकी जिंदगी में बड़ा सा बदलाव कर देगा।
कैलाश पंडित ने पुलिस को इशारा कर दिया। और पुलिस ने एक केस में मलखान को अंदर कर दिया। मलखान सिंह के मुताबिक पुलिस ने एक झूठा केस बनाया था।मलखान कुछ दिन उपरांत जमानत पर जेल से रिहा हुए ..... जमानत पर लौटे मलखान ने अब कुर्ता- पहनना शुरू कर दिया था..... अब वो भरी पंचायत में कैलाश पंडित पर सवाल उठाने लगे।
मामला बन गया था मंदिर की जमीन पर पंडितो का अवेध कब्जे का ,सिंध नदी के किनारे बने एक मंदिर की सौ बीघा जमीन पंडित के लोग बो और काट रहे थे। मलखान सिंह ने पंचायत में इस मंदिर की जमीन को वापस मंदिर को देने के लिए कहा। अब दरार दुश्मनी में बदल रही थी....दुश्मनी के बीज का पौधा शनै शनै पनपने लगा ।
पडिंत कैलाश को ये बात और नागवार गुजरी थानेदार.....को बताया कि मलखान सिंह मशहूर डकैत गिरदारिया का सफाया करा सकता है। पुलिस ने फिर मलखान सिंह को उठा लिया। मलखान मजबूर था उसने थानेदार को झूठा सच्चा पता बताया लेकिन थानेदार को गिरदावरिया हाथ नहीं लगा तो उसने मलखान को सबक सिखाने की सोच ली..... और यही से मलखान की जिंदगी दांव पर लग गई......मलखान सिंह मलखान एक दिन अपने घर में सो रहा था कि पुलिस पार्टी ने रेड डाली.... इससे पहले कि मलखान सिंह कुछ समझ पाएं उसको पुलिस पार्टी ने अपने कब्जें में ले लिया। इसके बाद मलखान को इतना मारा कि मलखान अपने पैरों पर चल नहीं पा रहे थे ......घायल मलखान को इससे बड़ी चोट तब लगी जब पुलिस ने ले जाकर उसे कैलाश पंडित के पैरों में ले जा पटका.......
पुलिस का इरादा मलखान की कहानी को हमेशा के लिए खत्म करने का था.... पुलिस और कैलाश दोनो ही इस कांटे को निकाल देना चाहते थे.....किन्तु गांव वालों के सामने किसी एनकाउंटर में फंसने के डर से पुलिस थाने ले गई.....गांव में राजनीति के चलते दुश्मनी बढ़ रही थी और मलखान की किस्मत उसे चंबल के बीहड़ों में खींच रही थी......दिसम्बर ,जनवरी १९७० के पंचायत चुनाव में मलखान ने भी पंच का चुनाव जीत लिया......अब कैलाश को मलखान से सीधा खतरा होने लगा......सरपंच के चुनाव की लड़ाई में कैलाश पंडित के एक कट्टर दलित समर्थक पंच का कत्ल हो गया..... पुलिस ने एक बार फिर मलखान और उसके साथी को बविभिन्न धाराओ में धर दिया। और इस मामले में मलखान और उसके साथी को उम्र कैद की सजा सुना दी.....
और गांव में इसीबीच दलितों ने मलखान के गुरू जगन्नाथ उर्फ हिटलर को सरेआम मार दिया।होली के दिन हुई इस हत्या से मलखान पूरी तरह से टूट चुके थे । लाश पर फूट फूट कर रोते हुए मलखान ने कसम खाई कि जब तो अपने जगन्नाथ की मौत का बदला नहीं लेलेता वो होली नहीं खेलेगे......मलखान की जिंदगी रोज ब रोज खतरे में थी...... गांव में दुश्मन मलखान को मौत के घाट उतार देना चाहते थे और मलखान रोज डर के साए में सोते ...... इसी बीच मार्च १९७६ में एक रात मलखान सिंह सो रहा था कि उसके घर पर गोलियां चलने लगी.........
मलखान सिंह के पास घर के पीछे बनी हुयी खिड़की खोल कर चम्बल की शरण लेना अंतिम विकल्प था .....उसी का अनुशरण करते हुए घने पर्वतीय बबूलों के कांटो को किस्मत समझ सव नियति लिया और चम्बल के अर्ध सुने बीहड़ो को एक नया किरदार मिला ...... दशकों से चल रही दुश्मनी का सामना करने का फैसला ले लिया •••
समय अपने पासे फेंक चूका था बस अब चाले चलनी शेष थी .....जिसका प्रारम्भ मलखान सिंह द्वारा एक दिवस गाव पहुच कर खरी दोपहर ऐलान किया की पण्डित अब बच सकते हो तो बच के दिखाओ .....गाव में भगदड़ मच चुकी थी किन्तु मलखान का लक्ष्य सन्मुख और स्टेनगन का मुह खुल गया तड़तड़.... तड़तड़ ..तड़तड़ •••कैलाश पण्डित को तीन गोलिया लग चुकी थी ...बाकि बची मैगजीन साथी के छाती में जहर घोल गयी ....गाव में गोली काण्ड से मची भगदड़ बन्द होते घरो के दरवाजे बहुत माजरा बयान कर रहे थे ......
किन्तु कैलाश बच गये एवम् मलखान के पीछे पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी दिनरात बीहड़ो में पुलिस धूल फांकति देखि जाती पुलिस के लिए मलखान सिंह एक छलावा बन चुके ....... मलखान सिंह अच्छी तरह जान चुके थे की उनके लिए समाज गाव के सारे रास्ते बन्द हो चुके हे मात्र चम्बल की गोद का ही सहारा हे चंबल में मलखान के गैंग में सबसे पहले उसके रिश्ते के भाई और दोस्त ही शामिल हुए। हथियार हासिल करने के लिए पकड़ की जाने लगी ..... मलखान ने जंगल में भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलता थे....पहली पकड़ का पैसा मंदिर को ठीक कराने के लिए दान कर दिया गया••••
इधर गांव में मलखान के रिश्तेदार प्रभु की हत्या करदी गई। और पुलिस ने चंबल में नया गैंग पनपने से पहले निबटाने के लिए प्रभु की तेरहवी के दिन ही मलखान के गैंग को ठंडा करने के लिए जाल बिछा दिया। लेकिन मलखान पुलिस के इस जाल से बच निकले ...
पुलिस की नयी रणनीति के तहत चम्बल एक और सजायाफ्ता बागी मोहर सिंह का सहयोग लिया गया किन्तु किस्मत मलखान सिंह के साथ थी पुलिस और मोहरसिंह का मार्गदर्शन निर्मूल रहा ....उसी साल मलखान ने दो दलितों की हत्या कर अपने गुरू की मौत का बदला ले लिया ...
पुलिस हर हथकंडा आजमा रही थी लेकिन मलखान का खौंफ चंबल में बढ़ता जा रहा था. यहां तक कि ५०००० के का इनाम घोसित हो चूका था
तात्कालिक बीहड़ी इतिहास में मलखान सिंह के जेसे आधुनिक असलहो लेस अभी तक कोई गिरोह न था ....१२बोर बन्दूक से लेकर अमेरिकन असाल्ट राइफलों तक से लेस गिरोह अब पुलिस बालो को जाहे जब ललकार देता दनादन मुठभेड करता रहा ।
एक बीहड़ी रास्तो में चलते राहगीरों में एक गिरोह का सदस्य गाव की दुश्मन की जाती हुई बहिन बेटी को अगवा कर लाया ......
मलखान सिंह को बड़ा दुःख हुआ हजार गालिया दी सदस्य को .....
मलखान गाँव की बेटी के पैरो में गिर पड़े और बड़ी ही दुखी आबाज में बोले मेरी दुश्मनी आपके भाईयो से आप से जेसे आप उनकी बहिन बेसे ही मेरी बहिन एक अक्षम अपराध् हो गया इस मुर्ख के कारण आप सादर घर प्रस्थान करे और अगर हो सके तो हमे क्षमादान दे .....कुछ भेंट देकर चरण छूकर विदाई दी ।
तत्क्षण सभी को चेतावनी दी गयी की हम भवानी के उपासक हे और माँ बहिने भवाणी माँ का ही प्रिबिम्ब हे अगर किसी ने दुबारा से ऐसी हरकत की उसकी एक ही सजा होगी ......मौत
कुछ समय उपरान्त गिरोह में पकड़ो की ऐवज में आये पैसो के चलते मतभेद होगया और गिरोह दो भागो बट गया इसी बीच मलखान सिंह वनचेस्टर औटोमेटिक रायफल लेके बाबू गुजर भाग निकला ...करीव ७वर्षो बाद गिरोह ने समल्लित होकर होली त्यौहार मनाया ....
इसके बाद मलखान और उसका टूटा हुआ गैंग फिर से एकत्रित हो चूका था उधर उप्र, मप्र• की पुलिस भी साझा हो कर कार्य कर रही थी की एक दिन चंबल लालपुरा के बीहड़ों में पुलिस के साथ पहला बड़ा एनकाउंटर हुआ। घंटों तक पुलिस के साथ सीधी गोली बारी करके भी गैंग बिना किसी नुकसान के बच निकला।पुलिस समझ चुकी थी कि चंबल में एक बार फिर एक डाकू का जिन्न बोतल से बाहर चुका है।
एक महीने के भीतर ही सिलुआ घाट में एक और बड़ा अपहरण कर गैंग ने पुलिस को सीधी चुनौती दी......परिणति ये हुई की पुलिस ने फिर से मलखान को चंबल में जा घेरा। लेकिन मलखान चतुराई से अपने गैंग को लेकर झांसी जिले के समथर के जंगलों से साफ लेकर निकल गये।
अब पुलिस को सिर्फ मलखान दिखाई दे रहा था और मलखान चंबल में खुला खेल खेल रहा थे।
एक बार फिर से तीन रॉज्यो की पुलिस ने जाल बिछाया पहले चक्कननगर राजाखेड़ा किन्तु बगैर किसी क्षति के इस गैंग न इन मुठभेड़ों का जबाब पुलिस को और ज्यादा पकड़ कर फिरोती बसूल के दिया ...अब चम्बल में मलखान सिंह का सिक्का चलने लगा था और नया सम्बोधन जुडा "दद्दा मलखान सिंह"
किन्तु जिस कारण मलखान सिंन्ह इन बीहड़ो में भटके बो कारण यानी कैलाश पण्डित सपरिवार गॉव से पलायन कर कही अभेद सुरक्षा में भूमिगत थे .....ये बात रह रह कर सालती रही और विचलित करती रही किन्तु जालौन उप्र की अभेद सुरक्षा को धता बता कर गिरोह के ही एक सदस्य ने कैलाश पण्डित को गोली मार दी ।
समय पंख लगा कर उड़ता रहा और बीहड़ी जीवन की भागम भाग जिंदगी से नाता तोड़ समाज के साथ कदम ताल मिलाने के लिए करीव ३दशक तक ३राज्यो की पुलिश का रक्त चाप बढ़ाने बाले चम्बल के बागीयो परम्परा के अंतिम अनुयायी दद्दा मलखान सिंह ने बुजुर्गो की सहमति अनुसार १५जूलाई १९८३ को भिंड में आयोजित की गयी एक बहुत बड़ी जन सभा के समक्ष तत्कालीन मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह की उपस्तिथि में .........माँ दुर्गा की चित्र के चरणों असाल्ट रायफल रखकर आत्मसमर्पण कर दिया ।
और आजकल एक समाज सेवक की भूमिका निभा रहे हे ।
विशेष -: कथानक स्वाद्यन एवम् बुजुर्गो से सुने किस्साओ पर आधारित हे ।
#सर्वाधिकार_सुरक्षित
सलग्नं चित्र सहयोगियों से साभार
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