जब हमारी कलमे अपने शरीर के रस से सराबोर होकर चलती हे,और उस मसि से उद्धृत हुए शब्दो में लिखे भाव माता के साथ मातृभाव समेटे हुए वहते हे।तो यह टँकन और लेखन,बोधन,श्रवण,बक्तव्य, का माध्यम एक समान धार में बिंधकर 'हिन्दी' बन जाता हे ।
14 सिप्टेम्बर सिर्फ भारत के लिए हिंन्दी दिवस हे जबकि आज 10 जनबरी को 'विश्व हिन्दी दिवस' के रूप स्मरण किया जाता हे। जिसका प्रारम्भ और आधिकारिक घोषणा का श्रेय जाता हे। अपने उद्धबोधनो में कभी भी सही से हिन्दी उच्चारण न कर पाने बाले पूर्व प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह को....!!
जी हा आप सही पढ़ रहे हे आज ही के दिन 2006 को मनमोहन सिंह द्वारा इसकी आधिकारिक घोषणा की गयी थी और समस्त विश्व के देशो ने इसी सहर्ष स्वीकार किया था ।
आज भारत की राष्ट्रीय भाषा विश्व के लगभग 15 देशो में बोली,पढ़ाई व सिखाई जाती हे।फिर भारत की दण्ड संहिता में 'इंडियन पीनल कोड',ताजीराजे-ए-हिन्द" जेसे शब्द आज भी हमे सेकडो वर्षो दासता की कहानी स्मरण करने के लिए क्यों दोहराये जाते हे?
आंग्लभाषा के बाद विश्व की सबसे अधिक समझी जाने बाली इस वैद(मूल संस्कृत) को हम भारतीयो ने उपहासित कर रखा हे। अन्यथा इसमें 5 उपभाषाएँ व 17 बोलियो का संगम हे। जिसमे अनन्त शब्दों का महासागर हे। विश्व के साहित्य जनक भगवान वैद्व्यास जी महाराज व लेखक आदिगणेश जी से लेकर आज तक के शब्दऋषियो तक अद्भुत ज्ञान सराबोर हे ।
देवनागरी लिपि ही नहीं अपितु वह समाधि हे जिसमे रमने के बाद शाधक मुक्तिबोधन तक की यात्रा में सर्वश्रेष्ठ सुख अनुभूत करता हे ।
रोज भाषा में अनगिनत शब्दों को स्वम्भू राजनेतिक प्रचार-प्रसारित करने बाली पक्ष और बिपक्ष की धूर्त मीडिया को शायद स्मरण न हो किन्तु गूगल ने हिंदी साहित्य विसारद श्री प्रेमचन्द जी और भाषा प्रथम तीन वर्णों का 'डूडल' बना बखूबी स्मरण किया हे ।
हिन्दी से मेरा पहला प्रेम तो "माँ" और उनके द्वारा गायी जाती 'लोरियों' से हो गया था। जो कुछ कमी थी वह सावन की मल्हारों,होली फागों के साथ स्नेहबन्धो ने पूर्ण कर दिया हे ।
हमारे बृज की तो हर माँ-बहिन हिन्दी की कवित्री हे। वह आँगन बुहारने से चाकी चलाते हुए भी अनगढ़ पदों को रच लेती हे,फिर चाहे बांकेबिहारी की बाललीला हो या प्रीतम बिछोह हिन्दी की सरसता हिलोरे मारती हे ।
वैद्ग्रंथो में चन्द्र बिंदी (ऊँ),माता ललाट पर शुशोभित कंकु बिंदी और देवभाषा हिन्दी के हम सदैव ऋणी हे और ऋणी रहेंगे .....!!!
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जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र
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