मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

राजेश

तुझे मेने बचपन से देखा था...वही पुरविया बोली में लपेटा हुआ हंसमुख चेहरा..किसी भी नकल उतारने में जेसे तुझे महारथ हासिल थी। साले तू तो मुझसे वर्षो छोटा था...तुझे मेने नंगा घूमता देखा था पर कभी समझ नही पाया तुझे..! तू जितना जमीन के ऊपर था उससे कहि ज्यादा जमीन के नीचे भी था ..!!
तुझे सही से जाना जब तू दिल्ली और में दादरा-नगर हवेली की योजनो दुरी होकर भी घण्टो गप्पे मारा करते थे और मुझे तब पता हुआ की तुझे अपने भौतिक परिवर्तनों के कारण बढ़ते आकर्षण विषयो पर बात करने में बड़ा मजा आता था। में स्वप्न में भी अनुमान नही कर सकता था की मुझसे इतना छोटा होते हुए भी तू इतना मुखर था ...!
लगभग एक वर्ष तक तू मेंरे साथ भी रहा...एक सिगरेट से लेकर तुझे मेरा हर सीक्रेट तक पता था और उन्ही बातो को केंद्र में रखकर तू परिहास ही परिहास में मुझे कितना सुकून देता था....!!
जब बीमार हुआ तू मेरे साथ मेरा तीमारदार था निस्वार्थ प्रेम के वशीभूत तूने अपना वह दिन और रात दोनों मेरी सेवा में गुजार दिए थे ....माथे की पट्टी से लेकर ड्रिप बड़ल्वाने पर तूने जो हॉस्पिटल में हंगामा बरपा दिया था ...कैसे भूलूंगा.......कैसे भूलूंगा की तू डेढ़ पाव हड्डी,एक भोले से लड़के की आँखों में मेने ड्रिप की नली मेंआये खून से कहि सौगुना ज्यादा लहू था ।

कमीने वो तेरा मुझसे हक से पैसे छिनना कैसे भूलूंगा और कैसे भूलूंगा 

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