बुधवार, 22 जनवरी 2020

क्रांति नायक

#क्रांति_ऐ_रोशन

'.. जिंदगी जिंदा-दिली को जान ऐ रोशन
.. वरना कितने ही यहां रोज फना होते हैं..।'

जी हां यह पंक्तिया हे माटी के पूत क्रांति रोशन दीप ठाकुर रोशन सिंह जी क़ी.... सनातनी आर्य विचारो की खान वर्ण से क्षत्रिय  यह वीर था उत्तरप्रदेश के शाहजँहापुर के नवादा गाँव, माँ कौशल्या देवी पिता ठाकुर जंगी सिंह जी के घर २२जनवरी १८९२ को हुआ था ...।

ठाकुर रोशन सिंह ने छह दिसंबर 1927 को इलाहाबाद नैनी जेल की काल कोठरी से अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था..। 
"एक सप्ताह के भीतर ही फांसी होगी। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप मेरे लिए रंज हरगिज न करें। मेरी मौत खुशी का कारण होगी। दुनिया में पैदा होकर मरना जरूर है। दुनिया में बदफैली करके अपने को बदनाम न करें और मरते वक्त ईश्वर को याद रखें, यही दो बातें होनी चाहिए। ईश्वर की कृपा से मेरे साथ यह दोनों बातें हैं। इसलिए मेरी मौत किसी प्रकार अफसोस के लायक नहीं है। दो साल से बाल-बच्चों से अलग रहा हूं। इस बीच ईश्वर भजन का खूब मौका मिला। इससे मेरा मोह छूट गया और कोई वासना बाकी न रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दुनिया की कष्टभरी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी जीने के लिए जा रहा हूं। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि जो आदमी धर्म युद्ध में प्राण देता है उसकी वही गति होती है, जो जंगल में रहकर तपस्या करने वाले महात्मा मुनियों की...।"
पत्र समाप्त करने के पश्चात उसके अंत में उन्होंने अपना यह शेर भी लिखा...जो पोस्ट के प्रारम्भ उल्लेखित हे !

फांसी से पहली की रात ठाकुर रोशन सिंह कुछ घंटे सोए। फिर देर रात से ही ईश्वर भजन करते रहे। प्रात:काल शौच आदि से निवृत्त हो यथानियम स्नान-ध्यान किया। कुछ देर गीता पाठ में लगाया फिर पहरेदार से कहा.. 'चलो.., वह हैरत से देखने लगा यह कोई आदमी है या देवता।

उन्होंने अपनी काल कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से फांसी घर की ओर चल दिए। फांसी के फंदे को चूमा फिर जोर से तीन बार वंदे मातरम का उद्घोष किया और वेद मंत्र का जाप करते हुए फंदे से झूल गए।

इलाहाबाद में नैनी स्थित मलाका जेल के फाटक पर हजारों की संख्या में स्त्री-पुरुष, युवा और वृद्ध एकत्र थे उनके अंतिम दर्शन करने और उनकी अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए। जैसे ही उनका शव जेल कर्मचारी बाहर लाए वहां उपस्थित सभी लोगों ने नारा लगाया '..रोशन सिंह अमर रहें..'। भारी जुलूस की शक्ल में शवयात्रा निकली और गंगा-यमुना के संगम तट पर जाकर रुकी, जहां वैदिक रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया।

फांसी के बाद ठाकुर रोशन सिंह के चेहरे पर एक अद्‍भुत शांति दृष्टिगोचर हो रही थी। मूंछें वैसी की वैसी ही थीं बल्कि गर्व से ज्यादा ही तनी हुई लग रहीं थी। उन्हें मरते दम तक बस एक ही मलाल था कि उन्हें फांसी दे दी गई, कोई बात नहीं। उन्होंने तो जिंदगी का सारा सुख उठा लिया परंतु बिस्मिल, अशफाक और लाहिडी़ जिन्होंने जीवन का एक भी ऐशो-आराम नहीं देखा, उन्हें इस बेरहम बरतानिया सरकार ने फांसी पर क्यों लटकाया?

नैनी जेल के फांसी घर के सामने अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह की आदमकद प्रतिमा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अप्रतिम योगदान का उल्लेख करते हुए लगाई गई है। वर्तमान समय में इस स्थान पर अब एक मेडिकल कॉलेज स्थापित है। मूर्ति के नीचे ठाकुर साहब की कहीं गई यह पंक्तियां भी अंकित हैं... ।
 'जिंदगी जिंदादिली को जान ए रोशन, 
वरना कितने ही यहां रोज फना होते हैं !!

कोटिस नमन करता हूँ आपको क्रांतिवीर 🙏
वन्देमातरम 🚩

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जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र 
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