सोमवार, 13 जनवरी 2020

पितामह भीष्म

====पितामह भीष्म====
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दुर्योधन के द्वारा बार-बार उकसाने पर पितामह भीष्म वचन देते हे कि कल युद्ध निर्णायक होगा और  कल गंगापुत्र भीष्म के सरो का कोई तोड़ न रहेगा !
पाण्डव खेमे में चिंता चरम पर हे कि अगर पितामह चाहे तो कल ही युद्ध समाप्त हो जाएगा,उनके समक्ष कोई न टिकेगा! किन्तु योगेश्वर नेत्रबन्द किये मोहक मुस्कान बिखेर रहे हे। कल की कोई चिंता न हो..! द्रोपदी पुकारती हे "केशव आपका मोन कब खुलेगा?"
"हम चिंतित हे की अगर पितामह मनोयोग से युद्ध करते हे फिर पांडवो की विजय नही पराजय होगी,और आपका सूत्रधार बनना व्यर्थ जायेगा भैया ..!"
केशव ने नयन खोले और द्रोपदी को सम्बोधित करते हुए दिग्दर्शक बोल उठे..जेसे किसी ने एकाएक जलतरंग को छेड़ दिया हो ..!
"हे कल्याणी! चिंतित न होइये क्यों न आज पितामह के शिविर में जाकर आप उन्हें आभास हुए बगैर शन्ध्या वन्दन उपरांत प्रणाम कर आइये और पितामह की काट पितामह से पूछ ली जाए ..!"

कुरुक्षेत्र का वह शिविर जंहा प्रतिदिन तेज और त्याग श्वेतकणिकाएं एक अद्भुत आभामण्डल प्रकट करती थी। पितामह पद्मासन में ध्यानमग्न हे और शिविर के बाहर कन्हैया द्रोपदी की पादुकाएं पीताम्बर में लपेटे चोरो की तरह खड़े हे। योगेश्वर पहले से समझा चुके थे की चरणवन्दन करते हुए कंगन की खनक अवश्य हो ...!
जेसे ही पितामह का संध्या वन्दन ध्यान पूर्ण होने को हुआ और योगेश्वर ने संकेत किया कि भृतकुल बधु भरतकुल श्रेष्ठ पितामह के पदपंकजो में किंकिंकर ध्वनि साथ शीश रख चुकी थी। पितामह सब जानते थे और बन्द नेत्रो से ही आशीष में दोनों कर उठाते हुए बोल पड़े "अखण्ड सौभाग्यवती भवः पुत्री..!"
किन्तु जब चक्षु खोले तो द्रोपदी .....!!
कल्याणी बोल पड़ी पितामह क्षमा करिये आपके इस 'अखण्डसोभाग्य' वर पर कदाचित प्रशन कर सकती हूँ?
पितामह मुस्काये जेसे रहष्य और रहस्योद्घाटन के मध्य की खाई दायें-वाये मन्थर गति से फैलते होठो के मध्य जड़वत हो गयी हो...!
"पुत्री ..! भोजन और भजन के उपरान्त प्राप्त हुए आशीष कभी निष्फल नहीं जाते हे !" 
"मुझे उस माखनचोर की उपस्तिथि का आभाष हो रहा हे! कहा हो माखन चोर ?"
यह सूना और मुरलीधर पीताम्बर से अनुजा पादुका लपेटे भक्त के समक्ष आ खड़े हुए !
भक्त की आँखों में स्नेह के आंसू थे और भगवन के नेत्रो में दुनिया भर के स्नेह की नमी !!
पितामह सहसा बोल उठे " कुलबधु मेरा बध तभी सम्भव हे जब में धनुष नीचे ढाल दू और शशत्र तभी ढालूँगा जब कुरुक्षेत्र में मेरे समक्ष कोई स्त्री आ जाए !"
"पूर्वजन्म की अम्बा अथवा तात्कालिक शिखण्डी वही हे जो मुझे अश्त्र-शश्त्र न धारण किये रहने की स्तिथि पर ले आएगा,जाओ और धर्मयुद्ध विजय के मध्य खड़े इस भीष्म को मुक्त करो !"

प्रातः नियत समय पर पितामह और प्रपोत्र परस्पर प्रत्यक्ष थे....दीर्घ शंखनाद से दशो दिशाएं गूंज उठी,श्रीकृष्ण सारथि अर्जुन रथी ऐसे प्रतीत होते हे जेसे दो भास्कर एकसाथ युद्ध को निकले हो और पितामह स्वरूप दिग्बृह्मांड़ सामने भीषण युद्ध हुआ और साधारण से लेकर दिव्यास्त्र तक प्रयोग किन्तु पितामह ने  प्रपाश्त्र कदापि आह्वाहनित न किया क्योंकि वह जानते हे की उनका वलिदान ही धर्म की विजयनीव रखेगा...!!
शिखण्डी ध्वजा के समीप खड़ा हे और पितामह शशत्र त्याग चुके हे। अब बस गाण्डीव से निकले वाण और पार्थ के नेत्रो से झरते आंसू दिख रहे हे। प्रत्येक वक्ष विभेदन करता वान पितामह के श्रीमुख से 'यशश्वी भवः वत्स,विजयी भवः पार्थ!" का स्नेह आशीष देता हे और कभी अनभर प्रपोत्र को स्नेह देने बाले पितामह आज अपने सबसे लाडले के द्वारा वाणों की सर सैंया पर लेट चुके हे !
दोनों दल हाथ जोड़े खड़े हे। कोई मलमल का सिरहाना लेने गया कोई कुछ पर पितामह कह उठे अरे मुझे सरो की सैंया देने बाले पार्थ के हाथो से सिरहाना चाहिए और  गाण्डीव से निकले दो वाण सिरहाना वन गए,एक वाण माँ गंगा को प्रकट कर वृद्ध पितामह को जलपान कराने लगा ..!

इक्छामृत्यु वर प्राप्त पितामह,अपने गुरु पराजित करने बाले देववृत आज बाणो की पीडाश्रयी सैंया लेटे हे और १८ दिवसीय,१८अक्षोहणि,१८ महारथी इस प्रथम विश्वयुद्ध को देख रहे हे। प्रतिदिन इस पितामह रूपी महात्मा स्वर्ग लेने के लिए देवताओ के दल आते हे किन्तु उन्हें सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा हे और मकरसंक्रांति पर्व के दिवस भरतकुल नन्दन देववृत 'भीष्म' युगों-युगों दोहराई जाने बाली कुरुकुल की महागाथा बनकर #महाप्रयाण कर गए ...!!
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आइये इस मकर संक्रांति पर कुरुकुल गौरवसिरोमणि पितामह भीष्म को मैया योगेश्वरी के समक्ष स्मरण करे और इस भरतवंश (पाण्डु वंश) गुप्तगंगा दर्शन के साक्षी बन 'तँवरगढ़ ऐसाह' पर पितामह देववृत भीष्म को स्मरण कर श्रद्धांजलि अर्पित करे !

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कुँ. जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
      तंवरघार एकता मंच 
     स्टेट चम्बल मुरैना मप्र

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