बुधवार, 27 मार्च 2019

अमर शहीद गाथा

===महावीर जसवन्त सिंह रावत===
         ★गाथा एक महावीर की★

बचपन से सुनते आया हूँ की आत्माये अमर होती हे मरता तो मात्र शरीर हे।पंचमहाभूतो से निर्मित यह शरीर क्या नष्ट होकर भी अपनी गतिविधियों के सजीव माध्यम से देश के प्रति अपनी कर्तव्यता नहीं भूलता !
हा यह कोई दन्तकथा नहीं बल्कि सत्यकहानी हे जिनके कर्मस्थल को 'गढ़' के रूप जाना जाता हे और मृत्यु उपरान्त भी एक 'भारत माँ का लाल' निरतंर सीमाओ पर सजग प्रहरी बन आज भी रायफल उठाये 'सिपाही' से 'मेजर जनरल' तक पदोन्नति पाता हे ..!
विस्मय मत करिये यह किस्सा हे भारत की दूर सीमाओ पर तैनात "जसवंत गढ़" के अमर शाशक मेजर-जनरल(वर्तमान) बाबा जसवंत सिंह रावत जी और उनकी प्रेमिकाएं "शैला-नूरा" का जिन्होंने हजारो-हजार चीनियो को अपनी बुद्धि,बाहुवल और चातुर्य के बलबूते लगातार 3 दिन-रात (72घण्टे) तिल भर बढ़ना छोड़िये मार-मार के लाशो के ढेर में परिवर्तित कर रखा था ....!

पिता गुमानसिंह की देखरेख और माँ लीलादेवी की पावन कोख से 19 अगस्त 1941 ग्राम बाड्यू, पट्टी-खाडली,ब्लाक बीरोंखाल को अवतरित हुए थे।17 वर्ष की अल्पायु से सैना को समर्पित जसवंत जी अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे।उनके चातुर्य और कोशल की बजह वह सहपाठियों से खेलते हुए भी कभी न हारते ते थे यंहा तक की अकेले दम पर पूरी चीनी आर्टिलरी को तहस-नहस करने बाले वह प्रथम गैरराजपत्रित सैनिक भी थे ।

किस्सा उन दिनों का जब जबाहर लाल नेहरू विश्वशांति के पक्षधर बने घूम रहे थे।संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा में मिली स्थायी सदस्यता को 'गुडविल अ ब्रदर' दिखाने के लिए चाइना को बतोर 'गिफ्ट' कर दिया गया और वर्तमान 'जुमलों' की तरह  जुमला हुआ  निकला था "हिन्दी-चीनी,भाई-भाई!"
इसी जुमले को क्रियांवत दिखाने के लिए भारत की उन तमाम आयुद्धशालाओ को 'कप-प्लेट' निर्माण की इकाइयों में बदल दिया गया।शायद मुर्ख नेतृत्व और सत्ताधीशो की मति घास चरने चली गयी थी जेसे आजकल आरक्षण को वोट केलिए 'अंग्रेजो का तम्बू' बनाया जा रहा हे।यह भारत का दुर्भाग्य हे की सत्ता में आते भत्ता के लिए #लेते देश की नीव को खाली करने पर आमादा हे ।
उस समय के मुर्ख गृहमंत्री VK.मेनन पाकिस्तान से समझोता कर ही चुके थे और नेहरू गुडविल क्रियान्वन के इश्क में 'हिन्दी-चीनी,भाई..."! का जुमला आविष्कार कर ही चुके उनको लगा की भारत चहुओर से सुरक्षित हे,हथियारो पर फौज पर खर्च करना मूर्खता हे।ये गैरजरूरी खर्च कम क्या खत्म होना चाहिए।फलतः अरुणाचल से फौज की 'नफरिया' हटा ली गयी हजारो मील भारतमाँ का आँचल माँ के लालो से छीन लिया गया और दुश्मन को आमन्त्रित करती नीतियों के कारण चीन की तरफ से भारतीय सीमाओ को 'चीनी ड्रेगन' निगलने लगा और मुर्ख सत्ताधीस कप्प्लेट निर्माण में मगन हो गए ..!
उस समय चीनी सैना ने बहुत तवाही मचा राखी थी क्यों की भारतीय सैना विहीन सीमाये चीनियो के लिए खुला आमन्त्रण था और वह आये अरुणाचल में बुद्ध मूर्ति के हाथ काट ले गए ..!
जब हालात बेकाबू हो गए तो गढ़वाल रायफल की चौथी बटालियन को तैनात किया गया।इसी बटालियन के महावीर थे जसवंत सिंह रावत....!
तत्कालीन रक्षामंत्री और प्रधानमंत्री की मूर्खताओं के कारण इस बटालियन पर न हथियार थे न उचित रसद!यहां तक की कारतूसों की भी कमी थी।जिसके कारण चीनी हर मोर्चे पर हावी होते आ रहे थे और भारतीय फौजे न हार रही थी,हार तो दुस्ट राजनेतिक हस्तक्षेपो की रही थी।
17 नबम्बर 1962 को चीन की तरह से अरुणाचल की नूरानांग पोस्ट पर चौथा और बड़ा हमला किया गया।रसद और असहले विहीन हो चुकी फौजो को हार मानते हुए पीछे हटने के आदेश दिए गए किन्तु जिन्हें लड़ना होता हे वह सहज नहीं हारते वाक्य को चरितार्थ करते हुए पोस्ट से हते जसवंत जी और उनके दो साथी ...1 लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी,2रायफलमैन गोपाल सिंह गुसाई ..!
इनमे एक अदृश्य महिला शक्ति भी साथ थी।
शैला और नूरा नामक दो वीरांगनाएँ जो प्रेम के साथ समर्पित थी प्रेमी के लिए,मातृभूमि के लिए। चहुओर से गोलिया और भारी आर्टिलरी सेलिंग के बीच इस छोटी सी बटालियन की रसद और बारूद खत्म होने लगी क्योंकि उनके पास कोई अर्जुन का अक्षय तुरीण थोड़े था जो देवकृपा से भरता रहता और नेगी  और वैरागी जी को रसद के लिए बेस पर भेजा गया ..!

अब कठिन मोर्चे  पर हजारो चीनियो के समक्ष थे चीनियो के हिसाब से तीन हजार जबकि सत्यता में जसवंत,शैला,नूरा की त्रिगुणात्मक अद्भुत फौज जो लगातार  65 घण्टो से चीनियो के चने भून रही थी।यह तीन वीरो फौज विभिन्न मोर्चे व उपलब्ध हथियारों के बल पे किसी रेजिमेंट की तरह लड़ रही।चीनि स्तब्ध थे की यह कोनसी बटालियन आ गयी जो हम हजारो को हरा रही हे किन्तु वह शाम भारत के लिए अशुभ थी जब खाना लेके आती नूरा को चीनियो ने छिप के पकड़ लिया और नूरा उनके अत्याचारो को कैसे सह पाती जो की आम नागरिक थी एक नारी थी ..!
चीनियो को आश्चर्य हुआ जब ज्ञात हुआ की पिछले कई दिनों से वह किसी ब्रिगेड से नहीं बल्कि दो लड़की और एक जवान से परास्त हो रहे थे।नूरा को जानकारी उपरान्त वीरगति प्राप्त हुई और उधर शैला-जसवंत की रसद समाप्ति की और थी....बिकट स्तिथि में बची गोलियों से लड़ते हुए शैला भी प्रेम में प्रगति करती हुई वीरगति को प्राप्त हो गयी ..!
अंतिम गोली से महावीर जसवंत सिंह भी जीवित किसी दुश्मन के हाथ आये बगैर परमगति को प्राप्त हो गए ।
अंततः चीनी आये और अतिछुब्धता में महावीर का शीश काट ले गए ....!

जसवंत जी वीरता का प्रमाण तो स्वम चीनी सैना हे जो युद्ध समाप्ति उपरान्त राष्ट्रीय सैनिक सम्मान के साथ महाबीर जसवंत जी की कांसे की बनी हुई मूर्ति कंधो पर लाये थे ।
आज जसवंत की याद में उस पोस्ट पर 'जसवन्तगढ मन्दिर' नूरानांग घाटी और शैला मन्दिर उनके सम्मान में बने हुए हे ।

भारतीय सैना अनुसार वह आज भी जीवित हे और मुस्तैदी से ड्यूटी भी दे रहे।नित्य उनके बूट पोलिस,बिस्तर गिलाफ,वर्दी आदि को धोया जाता हे और उनके घर उनकी सैलरी,छुट्टी परमोसन इत्यादि दिया जाता हे ।
वह छुट्टी जाते हे तो उनकी सीट बुक होती हे एक दस्ता उनको सैनिक सम्मान के साथ विदा और लेने भी जाता हे ।
उस पोस्ट पर तैनात सैनिको के अनुसार जसवंत बाबा भी दिखाई देते हे और किसी भी चीनी गतिबिधि की सुचना भी देते हे ......
नमन भारत के महावीरों को जो मर के भी अमर हो गए और पंचभूतों में सशरीर न होते हुए भी निरन्तर कर्तव्य पथ पर अडिग हे !
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जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'

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