शुक्रवार, 22 मार्च 2019

Miss you papa ji

★पिताजी आप बहुत याद आओगे★
‌         ___🙏🚩🙏___

बो कल-परसो से बार-बार कलाई घड़ी देख मुस्कुराते हुये मुझसे प्रश्न कर रहे थे "बेटा आज दिनांक क्या हुई और तिथि क्या हे?" अपरान्ह 12 और रात्रि 9 जेसे उन्होंने तय कर रखे थे,मुझसे प्रश्न करने को!उनका इतना शानिध्य,स्नेह,बात्सल्य ,पोषण,शिष्यत्व,मार्गदर्शन प्राप्त करके भी में अंजान रहा इस रहश्य पूर्ण प्रश्न से !
वर्षो से देखता आया हूँ कि प्रत्येक होली पर वह सबसे पहले धूल,राख ही मलते थे अपने चेहरे पर !
एक बार मेने यूँही कोतूहलवस पूछ लिया था की 'पापा जी आप अगर क्षमा करे तो एक बात पूंछू !'
जल में मिटटी का छोटा सा कण डालने पर जो वर्त्ताकार तरंग बनती हे ठीक उसी की तरह उनके चेहरे पर एक मनमोहक और आकर्षक मुस्कुराहट प्रकट हुई और कहने " जीतू तुम प्रश्न करने से पहले भर्मित क्यों रहते हो?आखिर तुम्हारे प्रश्न ही तो हे जो मुझे कुछ न कुछ स्मरण दिलाते रहते हे और तुम्हारी इन जिज्ञासाओं में मुझे मेरा अतीत चित्रपट की तरह सजीव दिखता हे।सदैव निः संकोच होकर पूछा करो !"

देखो ! वर्षांत और पुनर्सृजन की बैला होती हे होली,यहां हमे अपने जन्म अर्थात मिटटी से जुड़ने और 'ख़ाक' मिलने को कदापि विस्मरण नहीं करना चाहिए।इस कारणवर्ष में प्रतिवर्ष मिटटी और राख दोनों ललाट पर लगाकर अपनी जीवन और मृत्यु दोनों नमन करता हूँ ।"
उनके एक-एक शब्द का गुढ़ अर्थ हे,एक-एक कार्य में न जाने कितने भाव निहित जिन्हें में इतना सामीप्य प्राप्त करके भी न समझ पाया,सम्भवतः में जुगनू उन भास्कर की दिव्य रश्मियों के कैसे समझता जो मात्र उनका अंश हूँ और वह परिपूर्ण तेजपुंज थे ।
जब काफी छोटा था शायद वर्षो में वय होगी कोई 6-7 वर्ष....!उन्हें न जाने क्या हुआ की वर्षो से छूटी 'हल की मुठ' पुनः याद आ गयी।'जरार पशु मेले' को किसी बगैर तैयारी के निकल गए और उधर वो अकेले नहीं दो खूबसूरत बैलो की जोड़ी साथ लाये।एक तकनीकी अभियन्ता की शायद वह प्रथम प्रौन्नति होगी जब 'कलिसाज'  आधुनिक और तीव्र कृषक से मन्थर गतिक कृषि को प्राथमिकता दिया होगा और उनकी देखा-देखि हमारे लगभग बैल रहित हो चुके साढ़े पांच सहस्त्रीय बीघे से ज्यादा भूमिबाले 'ठिकाने' में पुनः लगभग दशको बाद 'बैलो की घुँघरूओ' की मधुर ध्वनि गुंजार कर उठी थी ।

पिताजी में एक बिलक्षण गुण था।वह इस इस दुनिया में अपनी अलग ही सम्बोधन संज्ञाएँ रखा करते थे।यहां तक की बैलो को भी उन्होनो नाम दिया था......भोली-गोपी..!!
मेने देखा हे उनकी एक पुकार पर "भोली-गोपी" को हल लेकर भागते हुए!मेने देखा उनके हाथो में बेलो के लिए कभी भी 'पैना"(चाबुक) न ले जाते हुए!मेने देखा उनको खाना खाने से पूर्व "भोली-गोपी" को अपने खाने का चौथाई भाग खिलाते हुये!मेने देखा उन्हें मूक पशुओ से बाते करते हुये पशुओ की मूक भावनाओ को समझते हुये !

उनकी गली-मोहल्ले के सभी आवारा कुत्तो से गजब की दोस्ती थी।वह जब भी यात्राओ से लोट कर आते तो कुत्तो का झुण्ड जेसे उन्हें देख पूँछ हिलाकर,जमीन पर लोट कर उनका अभिनन्दन किया करते थे !
एक बार मेने उनसे पूछा था 'पापा आप इन पशुओ को कैसे नियंत्रित कर लिया करते हे,इनसे इतना प्रेम आपको क्यों हे ?
ऐसे जिज्ञासाएँ रखकर मुझे,मेरे आदर्श-गुरु का मन्द-मन्द मुस्कुराना न जाने क्यों किसी दूसरी दुनिया में ले जाता था,में आजतक समझ ही नहीं पाया हूँ ।
मेरी जिज्ञासा पर उनका संछिप्त किन्तु अथाह उत्तर था,"ईश्वर अंश जीव अविनासी !"........
बेटा मुझे इनकी तृप्ति और प्रेम ऐश्वर्य प्रेम दिखता हे जो पशु आप सभी के लिये पाशविक हे वही मेरे ऐश्वरीक हे जो मुझे ठीक तुम्हारी तरह ही स्नेह करते हे !
‌जिंदगी का मेरा पहला अनुभव था जब मेने पिता पुत्र,पति-पत्नी,भाई-बहिन, माता-पुत्र में निहित स्नेह से अलग हटकर 'प्रेम' को साक्षात देखा था !
‌इतने बड़े और 'चम्बल के तामसिक जल' से अभिसिंचित इस गाँव में उनके सभी प्रेमी हे।गोधूलि बैला के समय उनके अंतिम दर्शनार्थ गाँव भर का हुजूम और हर एक गांवबाले की नम होती आँखे उनकी असंभावित विदाई सबको विस्मय में डाले हुए थी।जो आता एक ही बात कहता कि 'अभी प्रातः ही उन्होंने उसे झाड़ा था एक गलती पर !"
‌रेडियो बीबीसी और मोटी-मोटी किताबो में उनको प्रहरों तक देखा था मेने खोये हुए।आधुनिक संचार और गणक यंत्रो पर वह कभी विशवास नहीं रखते थे किन्तु मशीने जेसे उनकी उँगलियों के इशारो पर नृत्य कर उठती थी।चम्बल की ऐतिहासिक भूमि के कण-कण की उनकी जानकारी थी....उन्होंने ही तो मुझे मेग्नीफाइड के ग्लास के माध्यम से इस रज में निहित राधा-मोहन स्वरूप श्याम और गौर वर्ण 'रजकण'से परिचित कराया था !
में विस्मय में हूँ लगातार साडे तीन वर्षो से केन्सर को पराजित प्रमाण करने बाले आप ‌दिनाक 17/03/2019 शायं 4:30 को आप "ॐ नमो भगवते....." जपते हुए सारे ठिकाने को शोक का अटिसञ्छिप्त समय देकरO इस माया लोक से उस दिव्यलोक की यात्रा को कैसे निकल गए ....!
‌आपके शिष्यत्व...मार्गदर्शन का में सदैव ऋणी रहूँगा पापा जी ....
‌आपके पदपंकजो की धूल....
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‌             जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'

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