#नारी_अशेष_नर_अवशेष
अजीव रिवाज हे हम एक दिवस को भक्त अगले दिवस कसाई बन जाते हे,
राह जाती नारी नितम्बो पे नजर और चौराहो पर माल-माल सवाई कह जाते हे!
कितना आडम्बर रचोगे दोस्त जिंदगी अभिनय अनुभव के खाते हे,
अपनी को माँ ममता की खान दूजी को झगड़ो में रांड बेहयाई बक जाते है!
मातृरस स्त्रोतो पे आकर्षण दृस्टि तो बाल्यकाल में भी पड़ती थी,
तब उनमे नयन सुख नहीं उदरछुदा की मातृत्व दृष्टि ही क्यों रूकती थी!
आज भौतिक वृद्धि के साथ क्या बुद्धि का हिरास्य होने लगा हे,
नर तू मर ने के लिये क्यों माता से समाता पियास्य होने लगा हे !
मर्यादा में रहकर सरिता नित नव तेरे किनारो साथ सृजन करती हे,
मर्यादा विहीन जलराशि तो नर किनारो जड़ समेत समतल करती हे!
माँ बहिन बेटी तिरिरूपो की ममता को तू नित शीश झुकाता हे,
नर-नारी अर्धांगिनी के स्वरूप में नर तू अर्द्ध रूप घमण्ड दिखाता हे!
ससुराल संस्कार मर्यादा लाज वश नारियत्व अदृश्य हो जाता हे,
नारितेज मायके देखो तेरा अंश अमुक का दूल्हा,बेटा रह
जाता हे!
#नारी_तू_नारायणी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें