बुधवार, 26 दिसंबर 2018

तेरा नाम रह गया

बात खुशबुओं की चली और नाम तेरा याद आया,
बो क्या दिन थे जब तूने सुगन्धा बन महकाया !

कांपते लवो पे रिसते गमो पे जानेबाले क्या नमक लगाया,
मीठी चुभन हृदय नमन फिर तूने उन्ही बूंदों में भिगाया !

तूने जो झुकी पलको से कभी कभी मुझे फिर बुलाया,
डोर डोर डरी जीवन नैया कभी कभी तुफानो  में सैलाव आया!

पल पल जीवन का हर पल बस तुम्हारा दर्शगीर हे,
क्यों चले गए अकेले पीछे छूटी तुम्हार अश्को में तशवीर हे !

अकेले चलने बाले कहता था की तन्हा घुटन सी होती हे,
यु तन्हा सफर करने की बात न हुई थी तू यादो होती हे!

अब तो बस किस्से हे और अल्फाजो में तुम्हे बुनना आता हे,
शायद तेरी विदाई का अन्तिम पल जिंदगी से चुनना न आता हे!

जब भी कलम से तुझे लिखने की बारी आती जाती हे,
सच कहता हूं तेरे प्रतिरूप में तेरी रूह तू याद आती है!

तू जिस राह से राहगीर बन मुझसे अंतरिम मिली थी,
आज तक उसी राह पर खड़ा हूँ तू नहीं छाया मिली थी!

मेरे बजूद ए अक्स में जब तलक तेरी सादगी घुली रहेगी,
मेरे अक्स में तू और हर अक्सनशीं में खुदाई बनी रहेगी!

बस आखरी पलो में आखिरी कलम मुकाम रह गया,
सिहाई कम कलम में कांपते होंठो पे तेरानाम रह गया!!!!!!

~

जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

रविवार, 2 दिसंबर 2018

शादी एक चने का झाड़

             ===चने का झाड़===
                    _________
जिंदगी गाहे-बगाहे कभी न कभी 'चने के झाड़ पे चढने-चढाने का कार्य बड़े मनोयोग से करती-करबाती हे,फिर चाहे विवाह से पूर्व ससुरालियों के लिया गया साक्षात्कार हो अथवा सालियों द्वारा जूते चुराई की रश्म में जेब हल्की और मन में उपजे घलघोटु विचार ही क्यों न हो ....!
जिंदगी विवाह से पूर्व बड़ी सुखमय और स्वतन्त्र गुजरती हे किन्तु 90 प्रतिशत पारंपरिक विधि से कुवारों की 'सिंगल सुपर फ़ास्ट' गाड़ी में सिंगल प्लाई से लेकर 42 प्लाई तक के टायर लगा दिए जाते हे।
10 %प्रेम विवाह के विषयो में बन्दा खुद ही जानबूझकर 'झोटे कुंए' में छलांग लगाता हे तो 90 प्रतिशत बालो को इस कुंए में धक्का देने के लिए पूरी बरात साथ होती हे ।
असल 'मुसीबत के समय कोई साथ नहीं देता' बाली कहावत तो तब चरितार्थ होती हे जब सब बिपप्ति(जयमाल फोटो सेशन)के समय पीछे से खड़े होकर अपने सगे बाले दोनों हाथो से रोकते हुए सेे मोनशब्दों कह रहे हो....
"अरे रुको बेटा....खूब उड़ लिए अब तुम्हे बिना ग्रीस-मोबिआइल बाली टायर से हम जोड़ दिए।अब जिंनंगी भर खीचते रहो फिर चाहे तुम्हारे पसीने छूटे या फिर पजामे फूटे रहना तो अब इन्ही के साथ पड़ेगा।"

जिस तरह 'ईद हलाली' से पूर्व बकरे की आवभगत की जाती हे ठीक उसी तरह 'मुह बनाती बाइक'-नो बजकर बीस मिनट' देवी जागरण का उद्घोस करती कार भी मुह चिढ़ाती प्रतीत होती हे।जो मिली तो आपकी 'मालअर्पण' विधान के लिए होती किन्तु सर्वाअधिकार सुरक्षित देवी जी के होते हे।कितने भी कपड़े मारो फ्यूल रिफलिंग कराओ पर देवी जी के आदेश बिना पी...पी से ,पों...पों तक न पाएंगे ।

साले दोस्त भी कम नहीं होते झाड़ पे चढ़ाने में,पहले तो कोई अनुभव साझा नहीं करेंगे और दूल्हे की जेब कतर कर उसी की बोतल से ऐसे बेंड के साथ लहराएंगे जेसे 'खुद का चुकिया फिट होने के बाद पड़ोसी की लाइट जाने पर' खुद को परम् आत्मसन्तुटी से पूर्ण कर लिए हो ...!
असल में विवाह ही ऐसा 'चने का झाड़' हे जिसमे इंसान चढ़ता तो हल्दी पोतकर हे किन्तु उतरते उतरते बच्चों को हल्दी पुतवा ही देता हे ।

दरअसल विवाह एक जरूरी संस्कार हे किन्तु विवाह की गाडी में ससुराल पक्ष्य से भोंपा बजाकर प्राप्त हुआ 'टायर की प्लाई' ससुरालियों को भली भाति पता होती हे किन्तु उन्हें न जाने क्या मजाक सूझता हे की ट्रेक्टर के टायर के साथ नैनो का टायर जोत देते हे और बड़े द्रवित मन से कहेंगे की"हमारी बेटी बड़ी ही रेडियल हे इसमें क्रोध रूपी हवा का कोई उपयोग न किया गया हे।"
किन्तु जब टायर को गृहस्थी रूपी पहिये पर चढ़ाया जाता हे तो मालूम होता हे की 'घिसी हुई गुट्टी' पर ठण्डी रवडिंग करके 'खटारा को बडीहारा' बना दिया गया हे और कुछ समय बाद 'दूल्हा रूपी हब' को रसगुल्ला बताकर 'दहिबड़ा' टिका दिया गया हे जिसे न बदल सकते हे और नाही निगल सकते हे ।
रोज रोज कॉस्मेटिक्स रूपी पंचर और ब्रस्ट को समतल करती टिकरिया खरीदवाते खरीदबाते पता नहीं चलता की कब बालो ने 'कैशक्रान्ति' कर टपकना प्रारम्भ कर दिया और उधर 'रोटी कम मुह ज्यादा बनाते' टायर पर चर्वी रूपी रबडिकरन होना प्रारम्भ हो चुका होता हे।दूल्हे मिया की बात न करो 4 प्लाई टायर को 64 प्लाई देखते देखते उन्हें महसूस नहीं हो पाता की कब 'झड़े पंख बाले मुर्गे' जेसी अवस्था आ गयी होती हे ।

असल ससुराल में सुखद अनुभूति तो विरले लोगो को ही प्राप्त होती हे जो असल में दूल्हे का साडू होते हे।ससुराल मंडप के नीचे जब दूल्हे की नजर छुटकियो पर जाती हे तब एक ही भाव आता हे की काश इस रसगुल्ले को जीवन के डोंगे में रख पाता ...!किन्तु उन्हें फूल फेंक मारती प्रतीत होती छुटकियो की नजर कही और निशाना कही अलग लगता हे।अब हर किसी को इस जीवन में अपना मुड़ खुद ही मुड़ने को थोड़े मिलता हे ।

ससुराल में सबसे ज्यादा लाड करने बाली सासु माँ प्रायः यह सोचकर इतना मातृत्व आप पर लुटाती हे की जरा इस अबोध को कुछ ज्यादा स्नेह कर लू जो हमारे घर की 'बला' को न जाने कैसे-कैसे यत्न करके झेल रहा हे !
ससुर जी जब भी समक्ष बेठे होंगे तो उनकी असीम अनुभवी आँखे मूक होकर बाचाल हो जाती हे और मानो झपकते हुए कह रही हो
"लाडले आपको मुझे दोस न देना चाहिए क्योंकि बबुल के पेड़ से पकोड़े मिलने की मंशा रखना मूर्खो की कल्पना हे,इसमें हमारा कोई खोट नहीं आज से दशको वर्ष पूर्व मुझे मेरे ससुरालियो द्वारा ठीक इसी तरह एक 'नीलम सायकल' का लोभ दिखाकर ठगा गया था।जब खेत ही खरप्तबार से युक्त हो तो आड़ी फसल के लिए किसान जिम्मेबार नहीं होता ।"
"बैटा अब इतने दिनों तक हमने आपकी सासु माँ को झेला तो उसी कम्पनी के विशुद्ध खामिया युक्त प्रोडक्ट को आप भी सप्रेम झेल हमे आनन्दित कीजिये ...!"
आखिर जीवन के अतिउल्लास युक्त 'चने के झाड़ पर चढ़ने' सभी विभूतियो को मेरी आत्मीय सांत्वनाये ......चने के झाड़ो पर चढ़ते रहिये और अपनी किये एक गलती पर ताउम्र सोचते रहिये।अभी यह लिख ही रहा था की पर्दे के पीछे से आबाज आई "अजी सुनते हो गैस सिलिंडर खत्म हो चुका हे,जाइए रिफलिंग सिलेंडर कन्धे पे जाइए पेट्रोल महंगा हो गया तो गाडी मेने अपने भाई को दे दी हे ताकि बो टेंक भरवा लाये!"
आंय....!! साला कल ही तो फूल करा के रखी थी ...!यह सोच मेने माथा पीट लिया ..😊
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           जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

जीने के फ़न्डे

#ज्ञानदंडा
अगर पाना है कुछ, तो रोना जारी रखिये,
अपने चेहरे पे, दिखावे की लाचारी रखिये!

मक़सद हो जाये पूरा तो बदल लो चोला,
वरना तो अपनी, ये हिक़मतें जारी रखिये!

ज़िन्दगी जीना है तो सीख लो कुछ प्रपंच,
आँखों में कभी पानी, कभी चिंगारी रखिये!

एक जैसा आचरण सदा अच्छा नहीं होता,
कभी जुबान हलकी, तो कभी भारी रखिये!

जितना झुकोगे लोग तो झुकाते ही जाएंगे,
ज़रुरत पड़ने पे, अपनी बात करारी रखिये!

कोई आ जाये तुम्हारे दर पे मदद पाने को,
कैसे दिखानी है मजबूरी, पूरी तैयारी रखिये!

इस दुनिया में जीना भी एक कला है श्रीमन्,
मतलब की दुश्मनी, मतलब की यारी रखिये!!!!

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रविवार, 25 नवंबर 2018

परमवीर यदुनाथ सिंह

                   ★एक शब्द श्रधांजलि★
                 ===नायक यदुनाथ सिंह===

शाहजहाँपुर उप्र के खजूरी गाँव में एक किसान परिवार हुआ करता था !श्री बीरबल सिंह जी का ...जिनकी आठवी सन्तान के रूप में २१ नबम्बर १९०६ को जन्म (अवतरण कहना अधिक उचित होगा ) हुआ महावीर हनुमान के अनन्य भक्त और हनुमान की तरह जीवन जीने बाले यदुनाथ सिंह का ...
बचपन से ही पढ़ने में कम रूचि और खेलने में निमग्न रहने की अभिरुचि पता ही नहीं चला कब प्राथमिक से हायर सेकेण्डरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।गाँव के हर व्यक्ति के साथ घुलना और और सदैव दुसरो की सेवा में ततपर रहना उनके जीवन की सरसता थी।अपनी हनुमान भक्ति की बजह से उनके साथ एक नाम और जुड़ गया था 'महाबीर' !
अपने आराध्य की तरह हे यदुनाथ सिंह जी भी कुंवारे ही रहे उन्होंने ने विवाह नहीं किया शायद उनकी अर्धांगिनी दूर हिमालय की वादिया थी,जिनके हिम् आच्यादित धवल धरा पर खमोस मुहब्बत "सर्वत्र विजय" के आदर्स वाक्य में निहित थी ।
21 नवम्बर 1941 को बो समय भी आया जब यदुनाथ सिंह को मनचाहा काम मिल गया। उस समय वह मात्र 26 वर्ष के थे और उन्होंने फौज में प्रवेश किया।
"राजपूत रेजिमेंट" अंतर्गत उनका चुनाव हुआ और अपने कोशल और साहस-वीरता के बलबूते यदुनाथ जी  को जुलाई 1947 में लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली और इस तरह 6 जनवरी 1948 को वह 'टैनधार' में अपनी टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे और इस जोश में थे कि वह नौशेरा तक दुश्मन को नहीं पहुँचने देंगे।

उस दिन नायक यदुनाथ सिंह मोर्चे पर केवल 9 लोगों की टुकड़ी के साथ डटे हुए थे कि दुश्मन ने धावा बोल दिया। यदुनाथ अपनी टुकड़ी के लीडर थे। उन्होंने अपनी टुकड़ी की जमावट ऐसी तैयार की, कि हमलावरों को हार कर पीछे हटना पड़ा। 

भारत-पाक युद्ध 1947
एक बार मात खाने के बाद दुश्मन ने दुबारा हौसला बनाया और पहले से ज्यादा तेजी से हमला कर दिया। इस हमले में यदुनाथ के चार सिपाही बुरी तरह घायल हो गये। लेकिन यदुनाथ का हौसला बुलंद था। दुश्मन बौखलाया हुआ था, हिंदुस्तान की फौजों की अलग अलग मोर्चों पर कामयाबी ने पाकिस्तानी सैनिकों को परेशान किया हुआ था। उनका मनोबल तथा आत्मविश्वास वापस लाने के लिए पाकिस्तानी टुकड़ियों से उनके नायक दूरदराज के इलाकों में हमला करवा रहे थे। उन्होंने 6 हजार सैनिकों की फौज के साथ 2 पंजाब बटालियन से 23/24 दिसम्बर 1947 को झांगर से पीछे हटा लिया गया था। और अब यह लग रहा कि दुश्मन का अगला निशाना नौशेरा होगा। उसके लिए ब्रिगेडियर उस्मान हर संभव तैयारी कर लेना चाहते थे। नौशेरा के उत्तरी छोर पर पहाड़ी ठिकाना कोट था, जिस पर दुश्मन जमा हुआ था। नौशेरा की हिफाजत के लिए यह ज़रूरी था कि कोट पर कब्जा कर लिया जाए।
1 फरवरी 1948 को भारत की 50 पैरा ब्रिगेड ने रात को हमला किया और नौशेरा पर अपना कब्जा मजबूत कर लिया। इस संग्राम में दुश्मन को जान तथा गोला बारूद का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और हार कर पाकिस्तानी फौज पीछे हट गयी किन्तु उनके दुश्मनो की मंशा ही कुछ और थी ।
6 फरबरी  1948  उस दीन प्रात: घना कोहरा के कारण घोर अंधकार और ठंड भी थी l पाकिस्तानी  सैनिक
सैन्धार गाँव के आसपास के घने जंगलों में से अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए हमारी ओर रेंग रहे थे l उनकी मशीन-गन लगातार गोलियाँ दाग रहे थे l लगातार अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलते रहने के कारण हमारे सैनिक चौकी के भीतर ही घीर गये थे l मोर्चा से बाहर वे सिर उठा कर स्थिति का आंकलन भी नही कर सकते थे l
नौशेरा की रक्षा के लिए, दुश्मनों को यहाँ  सैन्धार गाँव में ही रोकना अत्यावश्यक था l         इस भारतीय चौकी को भीषण आक्रमण का सामना करना था l क्योंकी यह सबसे अगली चौकी थी, और सिर्फ नौ सैनिकों को ही इसकी सुरक्षा करनी थी l इस चौकी की कमान यदुनाथ सिंह के हाँथो में थी l पांच सौ पाकिस्तानी सैनिकों और जन-जातियों ने कई बारभारतीय मोर्चाबंदी को तोड़ने का प्रयत्न कर चुके थे l इस बार वो आगे बद रहे थे,
यदुनाथ सिंह ने अपने साथियोँ को चतुरता से व्यवस्तिथ किया l सैनिको को उत्साहित किया और कहा " हम अपनी अंतिम साँस तक लड़ेंगे l उनके चार सैनिक पहले ही घायल हो चुके थे l फ़िर भी उनके सैनिकों ने, पाकिस्तान के इस आक्रमण को विफल कर दिया l दुश्मन लौट गए l परंतु पाकिस्तान के सैनिको और जन-जातियों  लोग फ़िर लौट आए इस बार उनमे अधिक शक्ति से आक्र्माण किया l पाकिस्तानी सैनिक समझ चुके थे कि, उनका सामना सैनिक से नही बल्कि भारतीय सैनिक से होगा, जिनके अदम्य साहस और द्रिढ-संकल्प के सामने उनकी  अधिक संख्या पर भारी पड़ती है l
हुआ भी वही, एक बार फ़िर , उन्होने दुश्मन के आक्रमण को  विफल कर दिया l इस युद्ध के दौरान नायक यदुनाथ सिंह के साहस और संकल्प शक्ति ने उनके साथियोँ का उत्साहित किया l जज़्बा ऐसा की घायल  सैनिकों ने भी सहायता की l उस समय तक उनके सभी सहयोगी सैनिक या तो घायल हो चुके थे या वीरगति को प्राप्त हो गए थे lपाकिस्तान का तीसरा और अंतिम आक्रमण जब हुआ , उस समय तक  नायक यदुनाथसिंह के पास कोई नही बचा था, जो उनकी सहायता उन्होने धैर्य नही छोड़ा  उनके घाव और दर्द भी उनके  देश भक्ति और दृण-इच्छा शक्ति को नही डीगा सकी l वे अपना स्टेन-गन ले कर अपनी चौकी के बाहर  निकल आए l उस समय पाकिस्तान केसैनिक हमारी चौकी से मात्र 15 गज़ की दूरी पर थे l  खुले मैदान मे शेर की तरह दहाड़ाते हुए दुश्मनो पर अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए बढने लगे l पाकिस्तान के सैनिक,
यदुनाथ सिंह की भयानाक गोली-बारी का सामना नही कर सके l  पीछे लौट गए l यदुनाथ सिंह पुरी तरह जख्मी हो चुके थे l उनके  सिर और सीने में दो गोलियाँ लग चुकी थी l
वे युद्धस्थल पर ही गिर पड़े और उन्होने अंतिम साँस ली ....वे  वीरगति को प्राप्त हुए l
यह वीरगति सारे भारतवर्ष में "परमवीर यदुनाथ सिंह" के रूप सदैव यु ही स्मरण आती रहेगी और मरमिटने  के इस जज्बे को ही भारतीय सैना "सर्वत्र विजय" के आदर्श वाक्य में दोहराती रहेगी .....
जय हिन्द ..
जय जवान ....
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'



गुरुवार, 22 नवंबर 2018

मेरे गीत'मेरी रणभूमि'

माना की क्षत्रिय जन्मना कर्मणा मृत्यु योग पूर्ण होगा,
कन्धे पर सितारे न सही स्वभार प्रभार तारो से कम होगा !

पल पल खुद से खुद की खुदाई बाली जंग लड़ता हु,
साँस तोड़ती दिनदारी में लोहे से लोहा लह क्षत्रिय बनता हु !

समय समय असमय असमंजस में अकेला खड़ा मिलता हु,
कर्म धर्म रूचि सूचि सी सजी चतुरंगिणी नित युद्ध में मिलता हूँ!

बुरे भले का बोध माता ने बाल्यपन सींचा आज बटवृक्ष्यअड़िग हूँ,
हटी घमण्डी धर्मज्ञ अर्जुनसुत चक्रव्यूह वेदज्ञ अभिमन्यु में जूझगतिज्ञ हूँ!

भीष्म सा अटल शिद्धान्त यदा कदा सरसैया सर का सिरहाना मिला,
में तो फिर कलयुगी नराधम ठहरा जो कराह मिली शत का इकहरा मिला!

समयगति तू सर्त लगा अवगति में कोन किससे तीव्र धाता हे ,
मन्द मन्दर रहु तीव्र निरन्तर विजय वीरगति
दोनों मेरी ही गाथा हे !

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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

मंगलवार, 20 नवंबर 2018

सहालग (हास्य व्यंग)

           ★सहालग★          (हास्य-व्यंग)

"उठो देव-बैठो देव" से लेकर 'कान पकड़ उठा बैठक 'करने की स्तिथि तक आने को "सहालग" कहते हे।  अर्थात 'देवोत्थानी एकादशी से देवशयनी एकादशी मध्य का समय ...!
पता ही नहीं चलता कब कोनसे फूफा ओसारे की टूटी खाट पर पड़े पड़े राजपाल यादव से अर्जुन रामपाल बनने की कोशिश में जॉनी लीवर बने नजर आ जाए !

कुवारों-कुंवारियों के सावन के सोमबार से नवरात्रि तक किये अनगिनत उपवासो का फल कब प्रतिफल बन 'फलदान' का समय ले आये!भोजाइया दवे होंठो से ननद-देवरो को टटोलने लगती हे की 'द्वार रुकाई-काजल लगाई जेसी नेग भरी रश्मो में क्या मांग रखेंगी !
अब आधुनिक समय हे जियो के साथ वीडियो व्हाट्सऐप वीडियो पर विवाह से पूर्व ही भविष्य के युगलों में 33 psi दबाब से ट्युव ब्रस्ट होने तक की योजनाये क्रियांवन होने लगी हे ।
एकाएक लड़को का रुझान 'करामाती पेय' की दुकानों से सौंदर्य प्रसाधन की दुकानों की तरफ बड़ जाता हे।कोई कोई तो देशी 'नीबू नमक'-'मुल्तानी मिटटी' के उप्टन लगाकर घरवालो के लिए "भोंपा से पहले ही झोंटा" दिखने लगते हे ।
लड़कियो के फेसबुक अकाउंट एकाएक दिल्फ्टी शायरियों को त्याग 'महादेव भक्ति' की ओर उन्नत्ति की बढ़ने लगते हे।अब उन्हें बालो, चालो,फेसपेको,व्यूतिटिप्सो को सर्च करते हुए देखा जा सकता हे।हालांकि दिन रात मोबाइल बार्तालापो में रत रहकर सप्ताह में एक बार ही स्नान कर पाती हे।जो सारे गांव शहर में तितली बन स्वतन्त्र विचरण किया करती थी विवाह से पूर्व 'धुप से दुश्मनी' बना लेती की कही आगामी निखार की जगह "सुन्न भूरि" न हो जाए !

सहालग के समय में जहां घरवालो पर आर्थिक दबाब बनता हे बही हलवाइयों के क्लछो,डोंगो,पतीलो,चमचो की काया का पुनर्जन्म हो जाता हे।टेंट बालो का नास्ता कम भाव ज्यादा बड़ जाता हे और दूधियों के दूध में दूध कम पानी ज्यादा पाया जाता हे ।

एक से दशक पुरानी हुई भोजाई रूपी हबेलियो पर एकाएक पुन दुल्हन सा दिखने का संक्रमण दिखेगा जिसे एशियन पेंट से पुताई कर बन-ठन किया जाएगा किन्तु पेट की बड़ी हुई चर्वी और साढे तीन पसली से डेड पसली पर आये  फिगर को शायद ही कोई युक्ति पूर्ण कर पाये !बड़े भाइयो बड़ी बुरी हालत होती हे इस सहालग में रूठे फ़ूफा से लेकर रूठी बीबियो की मनोती मुंनब्बल करते करते उन्हें पता ही नहीं चलता की कब दर्जी मास्टर ने पतलून का साइज छोटा सिल दिया या शेरवानी को मुशक महाराज सुभह के नाश्ते में रोशदान बना गए !

सहालग में असली आनन्द तो जो दूल्हा दुल्हन से छोटे होते हे उनका होता हे।दुल्हन की बहिनो के मन में दूल्हे को फूल फेंक कैसे मारा जाए जो दूल्हे के भाई की मुंडी से टकराये की जुगाड़ में समय निकलता हे तो दूल्हे के भाई काले सूट बाली को ताड़ूँगा या पिले बाली को ताड़ूँगा में बीत जाता हे।हालाँकि घुड़चढ़ी में करामाती पेय के साथ तालमेल बनाते हुए  ऐसे नागिन बनते हे की पहने हुए ब्लेजर का और नाली में भेद फोरेंसिक लेव भी न कर पाये हालाँकि नाचते हुए दूल्हे को धक्का दे खुद घोड़ी की  लगाम और रकाव थामने की तमन्ना थी ।

किसी किसी वारात् में फूफा के बाद कोई रुठने बाला व्यक्ति होता तो बह होते हे दूल्हे के बहिनोइ जिन्हें उनकी ससुराल बालो ने 'रसगुल्ला दिखाकर दहिबढ़ा' टिका दिया था हालाँकि बरात के खजांची भी यही होते हे और अपना दायित्व निभाते निभाते खुन्दक निकालते हे राइफल पर पूरा बिलडोरिया  फूँक खुद को प्राप्त रसगुल्ले और दहीबड़े का घाटा पूरा करने की कोशिश करते हुए देखे जाते हे ।

लड़कियो बालो की तरफ से कुछ लड़के ऐसे भी निस्वार्थ  सेवाभावी होते हे जो दौड़ दौड़ कर पानी से लेकर आसमानी पानी तक की व्यवस्था में लगे रहते हे। वास्तविकता में बो विवाह रूपी टूर्नामेंट के नॉकआउट से लेकर सेमीफाइनल तक प्रतियोगिता में रेफरी द्वारा मण्डप रूपी स्टेडियम से बाहर कर दिए गए होते हे।हालाँकि वारात् के स्वागत से लेकर दुल्हन बिदाई तक टकटकी बाँध दूल्हे की तरफ ऐसे देखते रहते की कह रहे हो "बेटा सेमीफाइनल तक हम भी खूब लोफ्टेट शॉट लगाये थे पर बाउंड्री बाल पर अंकल द्वारा कोट इन बोल्ड हो गए थे!,जाओ ले जाओ हमारी 'ख़ुशी' को ईश्वर करे तुम ससुरे दिन रात चोका-बर्तन करो,अब कुछ दिन बाद मामा बनने का इन्तेजार हम न करेंगे-अबकी सहालग में हम भी विवाह करेंगे!"

तो मित्रो इस उठो देव बेठो देव से कान पकड़ उठा बैठक करने की सहालग रूपी सौगात पर बफर में ऐंठन भरी पूड़ियों जेसी शुभकामनाये .....
और नागिन डांस से तिगनी नाच तक की शुभकामनाओ युक्त सांत्वनाये ।

दुल्हन बही जो पीया मन भाये साथ में एक साली दहेज में आये,
जो बेठे जीजा की मुंडी पे कहे नचने को भौजी तानपुरा बजाए ।।
😊😊😊
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

बुधवार, 14 नवंबर 2018

साक्ष्य इस जहां के

चमचमाती सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंगों में हाथ जोड़े धर्माचार्य,
होर्डिंगों के नीचे घिरी जगह में हाथ देकर ग्राहक रोकती वेश्याएं .....
ये एक साथ होना था
मेरे ही वक्त में...........!!!!!

भूखें बच्चों की मौत की खबरों के बीच मस्ती में झूमते,चार्टड जेट से उतरती दुल्हन,
अपराधियों के बच्चों के ऊपर चावल फेंकते जननायक.....
एक ही पेज पर भूख और भूख को साथ होना था.....
ये एक साथ होना था
मेरे ही वक्त में...!!!!!!

कांपतें हुए हाथों से मांगनी थी सड़क किनारे रोटी,
उन्हीं हाथों से राजतिलक होना था.....
भीख मांगना रोटी का,
और भीख देना सत्ता की......!
ये एक साथ ही होना था
मेरे ही वक्त में....!!!!

एक साथ चलनी थी दोनो तस्वीरें....
मंगलयान पर कामयाबी से झूमते हुए!
और पेड़ पर लटकी लाश पर रोने वाले
दोनो पर हुलसते और झुलसते हुए....!
जननायकों को रोना था और गाना था
लेकिन चेहरों पर कई बार धोने पर भी
वो रो रहे है या गा रहे.....!!!!!
मुश्किल था ये पता लगाना

ये एक साथ ही होना था
मेरे ही वक्त में......!😑
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

शनिवार, 3 नवंबर 2018

स्मरणीका में गजक

          ==='गजक' पुनः लुभाती हुई==

गजक और गुझिया में एक अद्भुत और अनदेखा सम्बन्ध हे और बो इनके प्रथक-पृथक स्वाद के होते हुए भी भारतीय ज्योतिस अनुसार "कुम्भ" राशि का होना।जेसे संगिनी और संगिनी अनुजा दोनों एक साथ आई हो घर के आँगन में।एक अपनी मर्यादा में सिमटी हुई सी और दूसरी अपनी स्वंत्रता के आभार में गली,कूचे,मोहल्ले,परिवार में तितली की तरह उन्मुक्त विचरण करती हुई अनायास ही थके हारे बुजुर्गो को आकर्षण में बांध अपनी  मनमोहक सदावहार खुशबु से बत्सल्य बोध-स्मरण करती हुई  .....!
एक का आगमन जहां जीवन में अतीव सुखद पलो में आगमन ...और चिरस्थाई होकर रह गयी चम्बल के उस पार!समेटे हुए भविष्य की तमाम सृजनताओ के मध्य अपनी मध्यस्तओ के चिरस्थायित्व को ....!

गजक आती हे भार्यानुजा की तरह....समय के साथ और एक आकर्षण,नूतन,नवेलापन,अल्हड़ता,उन्मुक्तता,के बीच केशरिया होती सर्सो के पुष्पो के मध्य  ...जेसे पीले परिधानों की चुनरिया रख-रखी हो माथे पर ....!
गजक का आगमन लाता हे एकल युवाओ के लिए परिग्रणीक तमाम आशाये और खिले हुए आभामण्डल पर समानयोग की तमाम कल्पनायें ....! तमाम कल्पनाओ के मध्य मधुर युगल सहयात्रियों सी अपार सम्भावनाये वही गुझीया बेठी रहती हे एक अनुभवी विवाहिता की तरह सदाबहार .....सिमटी-लाज से दोहरी होती हुई और जानती हे की छुटको का आकर्षण छुटकुओ के लिए ही हे न......युगल बन्ध का दायित्व तो उसी को पूर्ण करना हे ।

गजक के आते ही जेसे गुझिया का चिर आकर्षण जेसे पतझट की तरह कुछ शुष्क  हुआ क्योंकि नवांगतुक  मोह ही कुछ और होता हे।गुझिया परिपक्व हे समझती हे की इसी गजक के नए नबेले आकर्षण में छिपा आगामी भविष्य का सृजन,मान-मर्यादाओ का आलम्बन और मनमुक्तता से,लाड से देखती हे अपने समक्ष्य नवयुगलों की सहभागिता में एक कागज के आधार पर  गजक की मधुर मध्यस्तता.....दो युगलों के मध्य स्नेह का अंकुर डालते हुए ....छुदाअग्नि की तृप्ता के साथ साथ नयनाभिराम अदृश्य स्नेह अमृत का वर्षण करते हुए ......
मनमोहक मुस्कराहट के मध्य भविष्य की सृजन युक्ति को परिपक्व होते हुए ....
दो अभिर्नजनाओ को निकट और निकट सन्निकट आते हुए ....!

गजक आजकल बुजुर्गो की जेवो में कुर्ते की महक बनती जा रही और नन्हे-मुन्नों की कभी भी न पूर्ण होने बाली आकांक्षा भी ....।
बत्तु में आज गुझिया नहीं गजक की प्रधानता हे।बो पितामह को देखते ही चिल्लाते दौड़ते हे की "बाबा बत्तु लाये..?" और अपनी मनमाफिक बत्तु पाकर नाचने लगते हे जेसे लीलाधर श्रीकृष्ण जी पुनः माखन मिश्री प्राप्त करके "ठुमक-ठुमक नाचे कन्हैया नन्दबाबा के दुआर" का पुनः चलचित्रिकरन हो गया हो ।
बही दूर अपनी मर्यादाओ में लिपटी गुझिया अपनी उपेक्षाओं में भी बत्सल्यबोध करती निहाल हुई जाती हे और अंक में भर लाडले के केशो में उंगलियो की कंघी कर माथा चूम मातृयित्व का अथाह सागर बन जाती हे ......

वादियो का ही मेरा सागर हे वादियो सा विशाल भी
कुछ ठहर मुसाफिर दरख्तो की छाँव में  देख मेरा गाँव भी ।।

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           जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...