रविवार, 25 नवंबर 2018

परमवीर यदुनाथ सिंह

                   ★एक शब्द श्रधांजलि★
                 ===नायक यदुनाथ सिंह===

शाहजहाँपुर उप्र के खजूरी गाँव में एक किसान परिवार हुआ करता था !श्री बीरबल सिंह जी का ...जिनकी आठवी सन्तान के रूप में २१ नबम्बर १९०६ को जन्म (अवतरण कहना अधिक उचित होगा ) हुआ महावीर हनुमान के अनन्य भक्त और हनुमान की तरह जीवन जीने बाले यदुनाथ सिंह का ...
बचपन से ही पढ़ने में कम रूचि और खेलने में निमग्न रहने की अभिरुचि पता ही नहीं चला कब प्राथमिक से हायर सेकेण्डरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।गाँव के हर व्यक्ति के साथ घुलना और और सदैव दुसरो की सेवा में ततपर रहना उनके जीवन की सरसता थी।अपनी हनुमान भक्ति की बजह से उनके साथ एक नाम और जुड़ गया था 'महाबीर' !
अपने आराध्य की तरह हे यदुनाथ सिंह जी भी कुंवारे ही रहे उन्होंने ने विवाह नहीं किया शायद उनकी अर्धांगिनी दूर हिमालय की वादिया थी,जिनके हिम् आच्यादित धवल धरा पर खमोस मुहब्बत "सर्वत्र विजय" के आदर्स वाक्य में निहित थी ।
21 नवम्बर 1941 को बो समय भी आया जब यदुनाथ सिंह को मनचाहा काम मिल गया। उस समय वह मात्र 26 वर्ष के थे और उन्होंने फौज में प्रवेश किया।
"राजपूत रेजिमेंट" अंतर्गत उनका चुनाव हुआ और अपने कोशल और साहस-वीरता के बलबूते यदुनाथ जी  को जुलाई 1947 में लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली और इस तरह 6 जनवरी 1948 को वह 'टैनधार' में अपनी टुकड़ी की अगुवाई कर रहे थे और इस जोश में थे कि वह नौशेरा तक दुश्मन को नहीं पहुँचने देंगे।

उस दिन नायक यदुनाथ सिंह मोर्चे पर केवल 9 लोगों की टुकड़ी के साथ डटे हुए थे कि दुश्मन ने धावा बोल दिया। यदुनाथ अपनी टुकड़ी के लीडर थे। उन्होंने अपनी टुकड़ी की जमावट ऐसी तैयार की, कि हमलावरों को हार कर पीछे हटना पड़ा। 

भारत-पाक युद्ध 1947
एक बार मात खाने के बाद दुश्मन ने दुबारा हौसला बनाया और पहले से ज्यादा तेजी से हमला कर दिया। इस हमले में यदुनाथ के चार सिपाही बुरी तरह घायल हो गये। लेकिन यदुनाथ का हौसला बुलंद था। दुश्मन बौखलाया हुआ था, हिंदुस्तान की फौजों की अलग अलग मोर्चों पर कामयाबी ने पाकिस्तानी सैनिकों को परेशान किया हुआ था। उनका मनोबल तथा आत्मविश्वास वापस लाने के लिए पाकिस्तानी टुकड़ियों से उनके नायक दूरदराज के इलाकों में हमला करवा रहे थे। उन्होंने 6 हजार सैनिकों की फौज के साथ 2 पंजाब बटालियन से 23/24 दिसम्बर 1947 को झांगर से पीछे हटा लिया गया था। और अब यह लग रहा कि दुश्मन का अगला निशाना नौशेरा होगा। उसके लिए ब्रिगेडियर उस्मान हर संभव तैयारी कर लेना चाहते थे। नौशेरा के उत्तरी छोर पर पहाड़ी ठिकाना कोट था, जिस पर दुश्मन जमा हुआ था। नौशेरा की हिफाजत के लिए यह ज़रूरी था कि कोट पर कब्जा कर लिया जाए।
1 फरवरी 1948 को भारत की 50 पैरा ब्रिगेड ने रात को हमला किया और नौशेरा पर अपना कब्जा मजबूत कर लिया। इस संग्राम में दुश्मन को जान तथा गोला बारूद का बड़ा नुकसान उठाना पड़ा और हार कर पाकिस्तानी फौज पीछे हट गयी किन्तु उनके दुश्मनो की मंशा ही कुछ और थी ।
6 फरबरी  1948  उस दीन प्रात: घना कोहरा के कारण घोर अंधकार और ठंड भी थी l पाकिस्तानी  सैनिक
सैन्धार गाँव के आसपास के घने जंगलों में से अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए हमारी ओर रेंग रहे थे l उनकी मशीन-गन लगातार गोलियाँ दाग रहे थे l लगातार अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलते रहने के कारण हमारे सैनिक चौकी के भीतर ही घीर गये थे l मोर्चा से बाहर वे सिर उठा कर स्थिति का आंकलन भी नही कर सकते थे l
नौशेरा की रक्षा के लिए, दुश्मनों को यहाँ  सैन्धार गाँव में ही रोकना अत्यावश्यक था l         इस भारतीय चौकी को भीषण आक्रमण का सामना करना था l क्योंकी यह सबसे अगली चौकी थी, और सिर्फ नौ सैनिकों को ही इसकी सुरक्षा करनी थी l इस चौकी की कमान यदुनाथ सिंह के हाँथो में थी l पांच सौ पाकिस्तानी सैनिकों और जन-जातियों ने कई बारभारतीय मोर्चाबंदी को तोड़ने का प्रयत्न कर चुके थे l इस बार वो आगे बद रहे थे,
यदुनाथ सिंह ने अपने साथियोँ को चतुरता से व्यवस्तिथ किया l सैनिको को उत्साहित किया और कहा " हम अपनी अंतिम साँस तक लड़ेंगे l उनके चार सैनिक पहले ही घायल हो चुके थे l फ़िर भी उनके सैनिकों ने, पाकिस्तान के इस आक्रमण को विफल कर दिया l दुश्मन लौट गए l परंतु पाकिस्तान के सैनिको और जन-जातियों  लोग फ़िर लौट आए इस बार उनमे अधिक शक्ति से आक्र्माण किया l पाकिस्तानी सैनिक समझ चुके थे कि, उनका सामना सैनिक से नही बल्कि भारतीय सैनिक से होगा, जिनके अदम्य साहस और द्रिढ-संकल्प के सामने उनकी  अधिक संख्या पर भारी पड़ती है l
हुआ भी वही, एक बार फ़िर , उन्होने दुश्मन के आक्रमण को  विफल कर दिया l इस युद्ध के दौरान नायक यदुनाथ सिंह के साहस और संकल्प शक्ति ने उनके साथियोँ का उत्साहित किया l जज़्बा ऐसा की घायल  सैनिकों ने भी सहायता की l उस समय तक उनके सभी सहयोगी सैनिक या तो घायल हो चुके थे या वीरगति को प्राप्त हो गए थे lपाकिस्तान का तीसरा और अंतिम आक्रमण जब हुआ , उस समय तक  नायक यदुनाथसिंह के पास कोई नही बचा था, जो उनकी सहायता उन्होने धैर्य नही छोड़ा  उनके घाव और दर्द भी उनके  देश भक्ति और दृण-इच्छा शक्ति को नही डीगा सकी l वे अपना स्टेन-गन ले कर अपनी चौकी के बाहर  निकल आए l उस समय पाकिस्तान केसैनिक हमारी चौकी से मात्र 15 गज़ की दूरी पर थे l  खुले मैदान मे शेर की तरह दहाड़ाते हुए दुश्मनो पर अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए बढने लगे l पाकिस्तान के सैनिक,
यदुनाथ सिंह की भयानाक गोली-बारी का सामना नही कर सके l  पीछे लौट गए l यदुनाथ सिंह पुरी तरह जख्मी हो चुके थे l उनके  सिर और सीने में दो गोलियाँ लग चुकी थी l
वे युद्धस्थल पर ही गिर पड़े और उन्होने अंतिम साँस ली ....वे  वीरगति को प्राप्त हुए l
यह वीरगति सारे भारतवर्ष में "परमवीर यदुनाथ सिंह" के रूप सदैव यु ही स्मरण आती रहेगी और मरमिटने  के इस जज्बे को ही भारतीय सैना "सर्वत्र विजय" के आदर्श वाक्य में दोहराती रहेगी .....
जय हिन्द ..
जय जवान ....
----------------

जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...