माना की क्षत्रिय जन्मना कर्मणा मृत्यु योग पूर्ण होगा,
कन्धे पर सितारे न सही स्वभार प्रभार तारो से कम होगा !
पल पल खुद से खुद की खुदाई बाली जंग लड़ता हु,
साँस तोड़ती दिनदारी में लोहे से लोहा लह क्षत्रिय बनता हु !
समय समय असमय असमंजस में अकेला खड़ा मिलता हु,
कर्म धर्म रूचि सूचि सी सजी चतुरंगिणी नित युद्ध में मिलता हूँ!
बुरे भले का बोध माता ने बाल्यपन सींचा आज बटवृक्ष्यअड़िग हूँ,
हटी घमण्डी धर्मज्ञ अर्जुनसुत चक्रव्यूह वेदज्ञ अभिमन्यु में जूझगतिज्ञ हूँ!
भीष्म सा अटल शिद्धान्त यदा कदा सरसैया सर का सिरहाना मिला,
में तो फिर कलयुगी नराधम ठहरा जो कराह मिली शत का इकहरा मिला!
समयगति तू सर्त लगा अवगति में कोन किससे तीव्र धाता हे ,
मन्द मन्दर रहु तीव्र निरन्तर विजय वीरगति
दोनों मेरी ही गाथा हे !
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'
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