बुधवार, 14 नवंबर 2018

साक्ष्य इस जहां के

चमचमाती सड़कों पर बड़े-बड़े होर्डिंगों में हाथ जोड़े धर्माचार्य,
होर्डिंगों के नीचे घिरी जगह में हाथ देकर ग्राहक रोकती वेश्याएं .....
ये एक साथ होना था
मेरे ही वक्त में...........!!!!!

भूखें बच्चों की मौत की खबरों के बीच मस्ती में झूमते,चार्टड जेट से उतरती दुल्हन,
अपराधियों के बच्चों के ऊपर चावल फेंकते जननायक.....
एक ही पेज पर भूख और भूख को साथ होना था.....
ये एक साथ होना था
मेरे ही वक्त में...!!!!!!

कांपतें हुए हाथों से मांगनी थी सड़क किनारे रोटी,
उन्हीं हाथों से राजतिलक होना था.....
भीख मांगना रोटी का,
और भीख देना सत्ता की......!
ये एक साथ ही होना था
मेरे ही वक्त में....!!!!

एक साथ चलनी थी दोनो तस्वीरें....
मंगलयान पर कामयाबी से झूमते हुए!
और पेड़ पर लटकी लाश पर रोने वाले
दोनो पर हुलसते और झुलसते हुए....!
जननायकों को रोना था और गाना था
लेकिन चेहरों पर कई बार धोने पर भी
वो रो रहे है या गा रहे.....!!!!!
मुश्किल था ये पता लगाना

ये एक साथ ही होना था
मेरे ही वक्त में......!😑
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'

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