सोमवार, 24 जुलाई 2017

क्रांति नायक भाग २

===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
           ●क्रांति नायक●
                     भाग-२
"सरफ़रोशी की तम्मन्ना अव हमारे दिल में हे " का उद्घोष करते हँसते हँसते फांसी के फंदे को चूमते महान क्रांति नायक से आज कोन परिचित नहीं हे .....?
१९ दिसम्बर १९२८ की प्रभात बैला में एक सिंह अंगड़ाई लेता हुआ फांसी स्तम्भ की रस्सी को चूमने के लिए बेताव हुआ ऐसे जा रहा हे जेसे फांसीघर न हो ममता का दुलार बार बार अपने अबोध शावक को दुलारने के लिए ,वात्सल्य मयी गोद आँचल फैला कर बुला रही हो ......आ मेरे लाल आज हाथो से तेरे भाल को सहला दू ,अपने हाथो से से तुझे बो ममता का अमृत दू जो सबको नसीव नहीं होता ...!
भारत माँ का लाल भी अठखेलिया करता जंजीर ,बेडियो से सुसज्जित ऐसे जाता हुआ प्रतीत होता हे जेसे मिटटी खाने की बाल पृवती पर श्रीकृष्ण जी को ओखलो से बन्धन किया गया था ।
काला कपड़ा मुह पर डालता चांडाल अंत्रात्मा में द्रवित हे ,हाथो को पीठ पीछे लपेटा जा रहा हे मानो पुन:जन्म से पहले ही मातृत्व सूत्र लिपटा दिया हो ......हत्था खीचा गया और एक लाल माँ के  वात्सल्यी आँचल में सदा के लिए छुप गया ..........

काकोरी काण्ड के नायक पं०रामप्रसाद "बिस्मिल जी .......तात्कालिक निवास शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश ,पैत्रिक निवास ठिकाना बरवाई(रुअर,बरबाई)जिला मुरैना मप्र० चम्बल के हरिताभ आभा से आच्छादित तोमरघार "२० सो" क्षेत्र ।
मूल नाम रामप्रसाद सिंह तोमर का जन्म ११ जून १८९७ ईस्वी को शाहजहापुर उप्र० के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था ।
वाल्य् काल के शिक्षण काल में "उ"न पढ़ने के हठी लक्षण के कारण शीघ्र ही उनके शिक्षक पिता जी उर्दू ,हिंदी ,के साथ पढ़ाने लगे ....पड़ोसी एक विद्वान ब्राह्मण के सांनिंद्य से प्रभावित होकर विधिवत पूजा अरचना के गुणी हुए और अपनी धार्मिक प्रवति रामानंदी तिलक से शोभित ललाट के कारण "पण्डित" विश्लेषण की उपाधि से आम जन मानस में विख्यात होते गए ........बहुभाषा ज्ञान होने की बजह और साहित्य लेखन की अनूठी प्रतिभा अंग्रेजो के द्वारा भारतीयो पर होते क्रूर अत्याचार  ने उनकी अंतरात्मा को झंझोड़ दिया और एक उपनाम उन्होंने अपने साथ जोड लिया "बिस्मिल " ।

समय पंख लगा के उड़ता रहा किशोर अवस्था से युवावस्था की तरह बढ़ते कदम 'क्रांति यज्ञ' की और बढ़ गए ......धुर आर्य समाज की मान्यताओ के समर्थक बिस्मिल जी को असफाक उल्ला खान जेसा आत्मीय बन्धु भी इसी क्रांति यज्ञ की वेदी में स्वाहा....उच्चारित करते हुए मिले दो शरीर एक आत्मा कहि जाने वाली मित्रता की अद्भुत मिशाल जोश साहस के रथो पे सवार होकर पण्डित गेंदा लाल दीक्षित जी ,चन्दशेखर आजाद,ठाकुर रोशन सिंह जी,राजेन्द्र सिंह 'लाहिड़ी' जेसे दिग्गजों की क्रांति सैना में आ जुड़े ।
अपने स्वलिखित साहित्य से प्राप्त धनराशि का उपयोग अस्त्र खरीदने में करते हुए क्रांति का जयघोस होता रहा ........१९२२ के असयोग आंदोलन से हतास हुए करन्तिकारियो ने अपने नूतन दल का गठन किया जिसके नाम "हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिअसन रखा गया जिसके अंतर्गत गुप्त तरीके से क्रांति ज्वाला निरन्तर क्रांति साहित्य के सहारे प्रज्वलवित की जाती रही ।
एक बार सान्याल जी और एन्य अनुभवी नायको को केशरिया साहित्य के साथ ग्रिफ्तार कर लिया अव सभी के सामने अनुभवी लोगो कमी और आर्थिक संकट तो पहले से ही था मुह बाए खड़ी थी ।

०९ अगस्त १९२५ को शाहजहा पुर से लखनऊ जाने बाली गाडी को लूटने का का खाका तैयार किया गया जिसमे बिस्मिल,अस्फाख्,रोशन सिंह ,रामकृष्ण खत्री,सचिंद्र नाथ,आजाद जेसे वीरो ने इस कार्य को अंजाम दिया काकोरी स्टेशन से पहले ही पहले बेठे हुए क्रान्तिकारियो ने जंजीर खींच दी पहले से मोर्चे पे तैनात लोगो के तमनच्चे अंग्रेजो को सुलाने लगे .....अस्फाख् ने गार्ड के पास से बक्सा खींच ताला तोड़ लगभग ४००० नगद लूट लिए ...........रक्षात्मक गोलीवारि करते हुए सभी योद्धा सकुशल अंग्रजो को चुनोती दे चुके थे ।
अंग्रेजी हुकूमत में इस खबर की बजह से पुती कालिख को साफ़ करने के लिए लगभग ४८ सपूतो को किंतु मुख्य नायक किसी के हाथ न आये ....
दिल्ली में अपने एक मित्र के यहाँ रहने  की खबर मुखबिरों ने गोरो तक पहुचा दी और बिस्मिल जी को बन्दी बना लिया गया इसी बाकी सभी २८क्रान्तिकारियो को भी पकड़ लिया इस मामले की देखरेख एक अंग्रेज जज हेमिल्टन कर रहा था जिसने कुछ क्रान्तिकारियो को तोड़ कर सरकारी गवाह बना सजा मुक्त करवा लिया ।
पैरवी चलती रही देशप्रेमी अधिवकताओं की दलील अनसुनी होती रही और सरकारी बकील जगनारायण "मुल्ला" लगातार आरोप शिद्ध करता रहा ।
जिसमें २देश द्रोहियो को सरकारी गवाह,सेठ चम्पालाल की बीमारी ,और दो लोगो स्पष्ट प्रमाण न होने की बजह से सेशन कोर्ट से सजा मुक्त रखा बाकी सचिंद्र सान्याल,हरगोविंद भी सजा मुक्त रहे .....कुल १८लोगो पर अभियोजन चला और विभिन्नं धाराओ के अंतर्गत सबको सजा सूना दी गयी ।
१८ दिसम्बर १९२७ रोशन सिंह जी
१९ दिसम्बर को अस्फाख् और बिस्मिल जी
२० दिसम्बर को राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी जी
इस मात्र भूमि मिटटी की सर्वोपरि त्याग करते हुए दिव्य ज्योति में विलीन हो गए ।
आजाद जी सदैव आजाद ही रहे और कई दुस्ट अंग्रेजो का संघार करते हुए मातृ गोद में चिर निद्रा में लीन होगये ।

मरते असफाक विस्मिल अत्याचार से,
सेकड़ो होंगे पैदा इनकी रक्त धार से ।।
            वंदे मातरम् ,जय भवानी
(लेख विस्तृत न करके संछिप्त करना पड़ा  हे )

★डायरी के पन्नों से ★

★#डायरी_के_पन्नों_से★

आसाम फोरेस्ट रेंज का बो नियुक्ति पत्र आज भी याद हे जव किस्मत ने अपना सर्वश्रेष्ठ सहयोग किया था ........एक खाकी रंग का लिफाफा लिए एक मित्र अतिप्रश्नन अवस्था में लगबग इस तरह आ मेरी तरफ भागा आ जेसे कई दिनों की पॉवर कटिंग के बाद एकाएक आने पर बच्चे प्रशन्न होकर खुश होते हे ........

आते ही गले लिपट कर "लेओ अब पार्टी देवे को टाइम आय गओ हे तिहाई बहुत समय की मेहनत रंग लायी जे देखो फोरेस्टर की बिकेन्सी पे तुम सिलेक्ट होइ गए " में कुछ पलो के लिए जड़ हो चुका था ।
'अरे भैया यही हो की कहु दूसरी दुनिया में '? बोलते हुए झि झोड़ दिया ......चेतन हुआ शरीर ......
अति उताबला होकर अंदर रखा नियुक्ति पत्र एक साँस पड़ते ही .....उछल ही पड़ा था में अरे बाह लाला तुम मेरी जिंदगी की बो कड़ी हो जिसने प्रगति की पहली खबर लाये हो खुश रहो भैया कहते हुए आँखों से ख़ुशी के प्रमाण स्वरूप अश्रुधारा बह निकली .......

करीब एक सप्ताह बाद अंकपत्र ,और जरूरी प्रमाण पत्रो के सत्यापन के लिए डिब्रुगढ़ फारेस्ट ऑफिस में पहुचना था ।
एक अनजान क्षेत्र,जयवायु,भाषा विचार ,और भौगोलिक स्तिथि की कल्पनायें  रह रह मस्तिष्क में चलचित्र की भाति चलायमान होकर पुरे सप्ताह नींद में भी न सो पाने की विलक्षण अनुभवता का आभास कराती रही .....

बो दिन भी आया जब निकलना था सपनो के प्रदेश के लिए इटावा स्टेशन से नियत समय पर ट्रेन पकड़ी सुयोग से जनरल बोगी में सीट मिली और हम अपने साथ लाये  और केरी बेग को हैंगर से लटका कर में निश्चिन्त होकर खिड़की से प्रकृति की चाल रहित चलायमान दृश्यों को देखता रहा .....इसी स्तिथि न जाने कब आँख लगी .....कितने ही स्टेशन निकल चुके थे जब आँख खुली तो मुगल सराय स्टेसन पर रेलवे वेंडरों की कर्कश आवाजे सुनाई दी ........गर्म समोसे....गर्म चाय....ताजे फल .......
मुझे कुछ लेना था ही नही पानी के अलावा ं एक पानी बोतल खरीद ली क्यों की दोपहर का समय लगभग नजदीक और प्रवल होती खाने की इच्छा ....घर से लाया खाना सर्दी के मौषम की बजह से सुरक्षित था खाना खा कर एक पुरानी बुक "रूहो के मेले" की 2 कहानिया पढ ली और जमहाइयो का जोर फिर से सोने के लिए संकेत देने लगा ।

नियति समय से करीव एक दिन पहले में डिब्रुगढ़ के प्राकृतिक सौंदर्यता से मोहित हो उठा यथा सम्भव एक रम लिया और नित्य कर्मो से निवृत होकर घूमने निकल पड़ा किन्तु यहां एक भारी चूक हुई जल्द बाजी में केरी बेग के अंदर रखा एक हैंड बेग जरुरति सामान और कुछ मैप और डॉक्यूमेंट की फ़ाइल लिए घूमने निकल पढ़ा किन्तु जुवान होते हुए भी अवाक रहा ......यहाँ हिंदी स्टेशन पर ही समझ आती थी लोगो को मार्केट में हिंदी की समझ के कम ही व्यक्ति मिले ......शाम को
अनमने मन से बापस लॉज लोट ही रहा की ........हाथ में .....एक हाथ में जोरदार दर्द की लहर दोढ़ गयी बैग गिर कर छिटक गया ......की पीठ भी वार हुआ .....खुद को संभल पाता या कुछ समझ पाता उससे पहले घुटने में एक राड का जख्म खून लेख कर कपडो का रंग बदल चुका था ।
किन्तु कभी कभी मरणात्न्तक स्तिथि में शक्ति संचार तीव्रता से होता हे .....एकाएक पड़ी पत्थर की टुकड़ी हाथ में आई और विजली की भाति उनके चेहरों पर घात करती रही नाक मुह भोह ओठ फुड़वा कर हमलावर भाग खड़े हुए किन्तु हमले का उद्देश्य बो हैंडबेग ले भागे साथ में ...........

अव रोना आ रहा था 100 नम्बर डायल किया करीव 25 मिनट बाद पुलिस आई और जरूरी कार्य वाही के सिविल हॉस्पिटल में भर्ती किया गया उपचार पट्टी टाँके लिए जाते रहे और हम किस्मत साथ होते हुए भी समय मार में पड़कर .स्वम को कोसते रहे ...
.सुभह हॉस्पिटल से जबरदस्ती निकल आये पेअर की चोट रह रह कर चलने नहीं दे रही थी कैसे भी करके चेक आउट किया और पहुचते हे फारेस्ट ऑफिस हिंदी अंग्रेजी मिश्रित भाषा के साथ एक युवा जिसके शरीर पर जख्मो प्रतिबिम्ब बना हो रिपोर्ट करता हे "सॉरी सर कल शाम कुछ लोगो छीना छपटी के लिए मुझे इंजर्ड  के साथ मेरा डोक्युमेटी बेग ले गए आगर आप 2 सप्ताह का समय दे में दुवारा से डॉक्यूमेंट बनबा लूंगा प्लीज सर हेल्प अस "

ऑफिस में बैठे अधिकारी द्वारा बड़े ही दुखी स्वर में बोला गया की "मुझे बड़ा दुःख हुआ की आपके साथ ये दुर्घटना हुई बट मिस्टर तोमर एक सप्ताह वाद ट्रेनिग केम्प रिपोर्ट करना हे आज ओरिजिनल दुक्युमेंट कलेक्ट की आखिरी डेट थी और अगर आप कल तक  डॉक्यूमेंट ला सकते हे तो में आज की सारी फाइल लाक करके इमरजेंसी बताके 24 घण्टे की हेल्प कर सकता हु "
पुलिस को फोन लगाया गया उत्तर  की आशा सिफर  रही और में बापीसी हजारो किलोमीटर की यात्रा करने को दुखी मन से डिब्रुगढ़ रेलवे स्टेशन की बेंच नम्बर 24पर डायरी को लिखता रहा ।
                         
                         जितेन्द्र सिंह तोमर
21/दिसम्बर/2009
डिब्रुगढ़

==चम्बल एक सिंह अबलोकन==

==चम्बल एक सिंह अबलोकन==
                              भाग-६
               ●बागी मलखान सिंह●
दिनांक १८नबम्बर २०१६ ग्वालियर  महाराज बाड़ा स्तिथि भारतीय स्टेंट बैंक की शाखा पर एक रोवदार चेहरा,बड़ी बड़ी आँखों एवम् कानो को शपर्ष करती गलमुछे ,कन्धे पर ऑटोमेटिक ३२३बोररायफल,
बगल में सैना के अम्युनेशन जैसा थेला टाँगे शांत भाव से खड़े पूर्व बागी दद्दा मलखान सिंह सभी की चर्चा का विषय बने हुए थे ......!

कभी अपनी रोवदार आवाज से चम्बल के बीहड़ में प्रतिध्वनि को गुंजायमान करने मशहूर चम्बल के  राजा मान सिंह द्वारा पुनर्स्थापित की गयी बागियों की मर्यादित परम्परा का पालन करने के अंतिम अनुयायी दद्दा मलखान सिंह सेकड़ो लोगो की तरह अपनी बारी के इन्तेजार में खड़े दिखाई दिए हालांकि पुलिस और जनता के बगैर पंक्तिबद्ध हुए रुपये बलवाने का नम्रता से धन्यवाद देते हुए पंक्तिबद्ध होकर ही पैसे लेने को अडिग रहे ।

फिर क्या परिस्तिथि रही होगी जो एक विनयशील इंसान को कई दशको तक रायफल लिए बीहड़ो में रहना पढ़ा ....मानवी रक्त की होलिया खेलनी पड़ी .....,सेकड़ो अपहरण करने पडे  ......?

उपरोक्त सभी प्रश्नो को जानने के लिए हमे जाना होगा करीब ५६ वर्ष पुरानी कहानी पर ....आइये आज आपको सैर कराते हे ,चम्बल की वादियो से .....!

राज्य मप्र०का जिला भिंड उमरी तहसील के अंतर्गत आता हे चम्बल और सिंध सरिताई वादियो में एक आम बीहड़ी गावो की तरह का गाव #बिलाव  के आम घरो की तरह एक घर इसी घर में रहने वाले 17 साल के एक लड़के मलखान सिंह ने गांव के जमींदार के खिलाफ आवाज उठाई थी.....गांव में कैलाश पंडित का दबदबा था।

खंगार ठाकुरो के कुलपुरोहित परिवार के पास गांव की ज्यादातर जमीन थी,वर्षो से सरपंची पर भी इसी परिवार का कब्जा था ।
मलखान सिंह भी गांव के ज्यादातर दूसरे लड़कों की तरह पंडित कैलाश के पास ही उठा-बैठा करता था।
किन्तु कई बार वो कैलाश पंडित की बातों का सरेआम विरोध कर देते थे ,और ये बात कैलाश पंडित को चुभने लगी.....रिश्तों में दरार पड़नी शुरू हो गई। मलखान सिंह को मालूम नहीं था कि उनका एक छोटा सा कदम उसकी जिंदगी में बड़ा सा बदलाव कर देगा।

कैलाश पंडित ने पुलिस को इशारा कर दिया। और पुलिस ने एक केस में मलखान को अंदर कर दिया। मलखान सिंह  के मुताबिक पुलिस ने एक झूठा केस बनाया था।मलखान कुछ दिन उपरांत जमानत पर जेल से रिहा हुए ..... जमानत पर लौटे मलखान ने अब कुर्ता- पहनना शुरू कर दिया था..... अब वो भरी पंचायत में कैलाश पंडित पर सवाल उठाने लगे।

मामला बन गया था मंदिर की जमीन पर  पंडितो  का अवेध कब्जे का   ,सिंध नदी के किनारे बने एक  मंदिर की सौ बीघा जमीन पंडित के लोग बो और काट रहे थे।  मलखान सिंह ने पंचायत में इस मंदिर की जमीन को वापस मंदिर को देने के लिए कहा। अब दरार दुश्मनी में बदल रही थी....दुश्मनी के बीज का पौधा शनै शनै पनपने लगा ।
‌ 
पडिंत कैलाश को ये बात और नागवार गुजरी थानेदार.....को बताया कि मलखान सिंह मशहूर डकैत गिरदारिया का सफाया करा सकता है। पुलिस ने फिर मलखान सिंह को उठा लिया। मलखान मजबूर था उसने थानेदार को झूठा सच्चा पता बताया लेकिन थानेदार को गिरदावरिया हाथ नहीं लगा तो उसने मलखान को सबक सिखाने की सोच ली..... और यही से मलखान की जिंदगी दांव पर लग गई......मलखान सिंह मलखान एक दिन अपने घर में सो रहा था कि पुलिस पार्टी ने रेड डाली.... इससे पहले कि मलखान सिंह कुछ समझ पाएं उसको पुलिस पार्टी ने अपने कब्जें में ले लिया। इसके बाद मलखान को इतना मारा कि मलखान अपने पैरों पर चल नहीं पा रहे थे ......घायल मलखान को इससे बड़ी चोट तब लगी जब पुलिस ने ले जाकर उसे कैलाश पंडित के पैरों में ले जा पटका.......

पुलिस का इरादा मलखान की कहानी को हमेशा के लिए खत्म करने का था.... पुलिस और कैलाश दोनो ही इस कांटे को निकाल देना चाहते थे.....किन्तु  गांव वालों के सामने किसी एनकाउंटर में फंसने के डर से पुलिस थाने ले गई.....गांव में राजनीति के चलते दुश्मनी बढ़ रही थी और मलखान की किस्मत उसे चंबल के बीहड़ों में खींच रही थी......दिसम्बर ,जनवरी  १९७० के पंचायत चुनाव में  मलखान ने भी पंच का चुनाव जीत लिया......अब कैलाश को मलखान से सीधा खतरा होने लगा......सरपंच के चुनाव की लड़ाई में कैलाश पंडित के एक कट्टर दलित समर्थक पंच का कत्ल हो गया..... पुलिस ने एक बार फिर मलखान और उसके साथी को बविभिन्न धाराओ में धर   दिया। और इस मामले में मलखान और उसके साथी को उम्र कैद की सजा सुना दी.....

और गांव में इसीबीच  दलितों ने मलखान के गुरू जगन्नाथ उर्फ हिटलर को  सरेआम मार दिया।होली के दिन हुई इस हत्या से मलखान पूरी तरह से टूट चुके थे । लाश पर फूट फूट कर रोते हुए मलखान ने कसम खाई कि जब तो अपने जगन्नाथ की मौत का बदला नहीं लेलेता वो होली नहीं खेलेगे......मलखान की जिंदगी रोज ब रोज खतरे में थी...... गांव में दुश्मन मलखान को मौत के घाट उतार देना चाहते थे और मलखान रोज डर के साए में सोते ...... इसी बीच मार्च १९७६ में एक रात मलखान सिंह सो रहा था कि उसके घर पर गोलियां चलने लगी.........

मलखान सिंह के पास  घर के पीछे बनी हुयी खिड़की खोल कर  चम्बल की शरण लेना अंतिम विकल्प था .....उसी का अनुशरण करते हुए घने पर्वतीय बबूलों के कांटो को किस्मत समझ सव नियति लिया और चम्बल के अर्ध सुने बीहड़ो को एक नया किरदार मिला  ...... दशकों से चल रही दुश्मनी का सामना करने का फैसला ले लिया •••

समय अपने पासे फेंक चूका था बस अब चाले चलनी शेष थी .....जिसका प्रारम्भ मलखान सिंह द्वारा एक दिवस गाव पहुच कर खरी दोपहर ऐलान किया की पण्डित अब बच सकते हो तो बच के दिखाओ .....गाव में भगदड़ मच चुकी थी किन्तु मलखान का लक्ष्य सन्मुख और स्टेनगन का मुह खुल गया तड़तड़.... तड़तड़ ..तड़तड़  •••कैलाश पण्डित को तीन गोलिया लग चुकी थी ...बाकि बची मैगजीन साथी के छाती में जहर घोल गयी ....गाव में गोली काण्ड  से मची भगदड़ बन्द होते घरो के दरवाजे बहुत माजरा बयान कर रहे थे ......

किन्तु कैलाश बच गये  एवम् मलखान के पीछे पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी दिनरात बीहड़ो में पुलिस धूल फांकति देखि जाती पुलिस के लिए  मलखान सिंह एक छलावा बन चुके ....... मलखान सिंह अच्छी तरह जान चुके थे की उनके लिए समाज गाव के सारे रास्ते बन्द हो चुके हे  मात्र चम्बल की गोद का ही सहारा हे चंबल में मलखान के गैंग में सबसे पहले उसके रिश्ते के भाई और दोस्त ही शामिल हुए। हथियार हासिल करने के लिए पकड़ की जाने लगी ..... मलखान ने जंगल में भी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलता थे....पहली पकड़ का पैसा मंदिर को ठीक कराने के लिए दान कर दिया गया••••

इधर गांव में  मलखान के रिश्तेदार प्रभु की हत्या करदी गई। और पुलिस ने चंबल में नया गैंग पनपने से पहले निबटाने के लिए प्रभु की तेरहवी के दिन ही मलखान के गैंग को ठंडा करने के लिए जाल बिछा दिया। लेकिन मलखान पुलिस के इस जाल से बच निकले ...

पुलिस की नयी रणनीति के तहत चम्बल एक और सजायाफ्ता बागी मोहर सिंह का सहयोग लिया गया  किन्तु किस्मत मलखान सिंह के साथ थी पुलिस और मोहरसिंह का मार्गदर्शन निर्मूल रहा  ....उसी साल मलखान ने दो दलितों की हत्या कर अपने गुरू की मौत का बदला ले लिया ...

पुलिस हर हथकंडा आजमा रही थी लेकिन मलखान का खौंफ चंबल में बढ़ता जा रहा था. यहां तक कि ५०००० के का इनाम घोसित हो चूका था
तात्कालिक बीहड़ी इतिहास में मलखान सिंह के जेसे आधुनिक असलहो लेस अभी तक कोई गिरोह न था ....१२बोर बन्दूक  से लेकर अमेरिकन असाल्ट राइफलों तक से लेस गिरोह अब पुलिस बालो को जाहे जब ललकार देता दनादन मुठभेड करता रहा ।

एक बीहड़ी रास्तो में चलते राहगीरों में एक गिरोह का सदस्य गाव की दुश्मन की जाती हुई बहिन बेटी को अगवा कर लाया ......
मलखान सिंह को बड़ा दुःख हुआ हजार गालिया दी सदस्य को .....
मलखान गाँव की बेटी के पैरो में गिर पड़े और बड़ी ही दुखी आबाज में बोले मेरी दुश्मनी आपके भाईयो से आप से जेसे आप उनकी बहिन बेसे ही मेरी बहिन एक अक्षम अपराध् हो गया इस मुर्ख के कारण आप सादर घर प्रस्थान करे और अगर हो सके तो हमे क्षमादान दे .....कुछ भेंट देकर चरण छूकर विदाई दी ।
तत्क्षण सभी को चेतावनी दी गयी की हम भवानी के उपासक हे और माँ बहिने भवाणी माँ का ही प्रिबिम्ब हे अगर किसी ने दुबारा से ऐसी हरकत की उसकी एक ही सजा होगी ......मौत

कुछ समय उपरान्त गिरोह में पकड़ो की ऐवज में आये पैसो के चलते मतभेद होगया और गिरोह दो भागो बट गया इसी बीच मलखान सिंह वनचेस्टर औटोमेटिक रायफल लेके बाबू गुजर भाग निकला ...करीव ७वर्षो बाद गिरोह ने समल्लित होकर होली त्यौहार मनाया ....
इसके बाद मलखान और उसका टूटा हुआ गैंग फिर से एकत्रित हो चूका था उधर उप्र, मप्र• की पुलिस भी साझा हो कर कार्य कर रही थी की एक दिन चंबल लालपुरा के बीहड़ों में पुलिस के साथ पहला बड़ा एनकाउंटर हुआ। घंटों तक पुलिस के साथ सीधी गोली बारी करके भी गैंग बिना किसी नुकसान के बच निकला।पुलिस समझ चुकी थी कि चंबल में एक बार फिर एक डाकू का जिन्न बोतल से बाहर चुका है।

एक महीने के भीतर ही सिलुआ घाट में एक और बड़ा अपहरण कर गैंग ने पुलिस को सीधी चुनौती दी......परिणति ये हुई की  पुलिस ने फिर से मलखान को चंबल में जा घेरा। लेकिन मलखान चतुराई से अपने गैंग को लेकर झांसी जिले के समथर के जंगलों से साफ लेकर निकल गये।

अब पुलिस को सिर्फ मलखान दिखाई दे रहा था और मलखान चंबल में खुला खेल खेल रहा थे।
एक बार फिर से तीन रॉज्यो की पुलिस ने जाल बिछाया पहले चक्कननगर राजाखेड़ा किन्तु बगैर किसी क्षति के इस गैंग न इन मुठभेड़ों का जबाब पुलिस को और ज्यादा पकड़ कर फिरोती बसूल के दिया ...अब चम्बल में मलखान सिंह का सिक्का चलने लगा था और नया सम्बोधन जुडा "दद्दा मलखान सिंह"
किन्तु जिस कारण मलखान सिंन्ह इन बीहड़ो में भटके बो कारण यानी कैलाश पण्डित सपरिवार गॉव से पलायन कर कही अभेद सुरक्षा में भूमिगत थे .....ये बात रह रह कर सालती रही और विचलित करती रही किन्तु जालौन उप्र की अभेद सुरक्षा को  धता बता कर गिरोह के ही एक सदस्य ने कैलाश पण्डित को गोली मार दी ।

समय पंख लगा कर उड़ता रहा और बीहड़ी जीवन की भागम भाग जिंदगी से नाता तोड़ समाज के साथ कदम ताल मिलाने के लिए करीव ३दशक तक ३राज्यो की पुलिश का रक्त चाप बढ़ाने बाले चम्बल के बागीयो परम्परा के अंतिम अनुयायी दद्दा मलखान सिंह ने बुजुर्गो की सहमति अनुसार १५जूलाई १९८३ को भिंड में आयोजित की गयी एक बहुत बड़ी जन सभा के समक्ष तत्कालीन मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह की उपस्तिथि में .........माँ दुर्गा की चित्र के चरणों असाल्ट रायफल रखकर आत्मसमर्पण कर दिया ।
और आजकल एक समाज सेवक की भूमिका निभा रहे हे ।

विशेष -: कथानक स्वाद्यन एवम् बुजुर्गो से सुने किस्साओ पर आधारित हे ।

#सर्वाधिकार_सुरक्षित

सलग्नं चित्र सहयोगियों से साभार                    

मंगलवार, 11 जुलाई 2017

शिक्षाप्रद कहानी

==एक कहानी==
कहीं दूर दराज के गाव में एक मेहनती किसान रहा करते थे .....हर कार्य को पूरी लग्न ,निष्ठा,और सूझ बुझ से करने बाले कर्मठ...... किन्तु उनकी समझ अनुसार फसलो से उचित उत्पादन नहीं मिल पाता या यु कहिये हर कार्य में अत्यधिक सम्भावनाये जगा लेना उनकी स्वभाविक सोच थी ।

प्रारम्भिक  तीन वर्षो तक अनवरत उनकी फसलो में औसत से कम उत्पादन हुआ और उनको भयंकर निराशाओं ने जकड़ लिया ......स्तिथ ये बन आई कि किसान हतोत्साहित होकर स्वम की इहलीला समाप्त करने के लिए  एक जलप्रपात की और चल पड़े .......।
जेसे ही किसान अथाह जल में कूदने को उद्धृत हुआ की एक वृद्ध साधू महाराज ने आवाज दी.......
रुको वत्स अगर आपको ये दुष्कृत्य करना हे करिये किन्तु मात्र चन्द घड़ियों के लिए आश्रम चलो कुछ दिखाना फिर जो करना हो अवश्य करे में व्यवधान नहीं करूँगा ।

किसान ने सोचा चलो एक अंतिम बार जाते जाते महात्मा जी के साथ कुछ पल गुजार लिए जाए और बिना कुछ विरोध किये सहर्ष साधू जी के साथ हो लिए ।
नजदीक ही एक रमणीक आश्रम की कुटी में तरह तरह की लताये ,पोधे,मखमली,घास,बांस,फलदार जंगली वृक्ष इत्यादि के मनोहारी दृश्य देख किसान ने पूछा "महात्मन् आप कितने भाग्यशाली हे जो इतनी मनमोहक आश्रम  में किये गए श्रम का उचित फल प्राप्त कर रहे हे  ....अनुभवी साधू की वृद्ध हुई आँखे सब समझ चुकी थी ......किसान को एक बांस के पेड़ो की श्रंखला और घास की तरफ संकेत देके बोले .......
"हे महामानव आप जो ये सुखी घास की आँगन और बांस की सुदृण स्तिथि देख रहे हे दरअसल ये दोनों के बीजरोपण और पोषण एक साथ ही किये गए हे किन्तु प्रथम सप्त माह तक बांस बीज भूमि में ही रहा जबकि घास मात्र २सप्ताह में ही आच्छादित होने  लगी में भी आपकी अंतर्द्वन्द में विचार करने लगा था की घास को देखो कितनी शीघ्र हरी भरी हो रही बही वांस का पौधा भी अंकुरित न हो पाया एक इच्छा हुई की बांस को छोड़ घास का ही ख्याल किया जाए ........"
किन्तु सप्तम माह उपरान्त बांस का एक सुदृण नन्हा पौधा निकला जो देखते ही देखते छाड़ियों में विकसित होकर एक बाड़ के रूप में विशालकाय हुआ वही ग्रीष्म के कारण सुकोमल घास शुष्क हो गयी  हरियाली की चद्दर पर शुष्कता की वृद्ध अवश्था का प्रकोप सहन न हुआ जिसका कारण जमीन की जड़े उपरगामी थी जो जितनी जल्दी विकसित हुयी किन्तु प्रतिरक्षा तन्त्र निर्वल रहा "".....

आज बांस के सदाबहार वृक्षो में चिर वृद्धि का कारण विदित हुआ था ,आपको  बताता हु ,प्रथम सप्त माष प्रसव काल में ही बांस ने अपनी जड़ो की वृद्धि की ना की बाह्य वृद्धि और जब जड़े भार सहन करने लायक हुई फिर अनवरत वृद्धि की .....

साधू की  बातो का सार किसान समझ चुका था..... और जलदाह त्याग कर एक बार पुनः आने वाले भविष्य की सुदृण जड़ो का निर्माण करने लगा ........

#कथासार:- जब भी तुम्हें जीवन में संघर्ष करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे किआप आने वाले कल को सबसे बेहतरीन बना सको। किसी दूसरे से अपनी तुलना मत करो।

                जितेन्द्र सिंह तोमर "५२ से"
०७/०७/२०१७

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...