अमर वीरगति की प्रेरणापुंज और युवाओ के प्रेरणा स्त्रोत भगतसिंह,सुखदेव,राजगुरु,चन्द्रशेखर 'आजाद', रामप्रसाद 'बिस्मिल',असफाख,मंगलपांडे,राणा बेनीमाधव सिंह,बाबू कुँअर सिंह,महाबीर सिंह,दीक्षित जी जैसे महायोद्धाओं का कहि भी दस्ताबेजो में उल्लेख नही है। यह तो भारतीय जनता की भावना है कि उन्हें 'शहीद ए आजम,आजाद,पंडित बिस्मिल जैसी उपाधियों से अलंकृत किया जाता है ।
क्या कारण है कि आज भी भारत की राष्ट्रीय भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी के साथ-साथ इन महाबीरो को प्रपत्रो में 'शहीद' का उद्बोधन नही मिला....?
अकबर ,शाहजंहा,हुमायु,टीपू की क्रूरता को महान बताने बाले इस देश में हजारों,करोड़ो अन्तर्वाही कीड़े है और उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय पारितोषिको से सम्मानित भी किया जाता रहा है ।
भारत मे जातिवाद खत्म करने की बात तो की जाती है पर चुनाव आते ही जाती और धर्म आधारित मतो का वर्गीकरण आखिर क्यों होता है ...क्यों कि देश से जुड़े आंतरिक तन्त्र में प्रतिभा नही प्रजाति देखना है ही लोकतंत्र है।
छोटूराम के नाम के साथ जुड़ी 'सर' उपाधि उस ब्रितानी चरण चुम्बन का प्रत्यक्ष प्रमाण है जो सिंधिया को 'वाइसराय' बनाती है। भले ही वीरगति प्राप्त क्रांतिकारियों को लोकतंत्र भूल जाये पर ब्रितानी सरकार के रीछ हमेशा से सर्वोपरि रखे गए ।
भारतरत्न,भारत विभूषण जैसे पारितोषिक सम्मान आज लाई की तरह नङ्गे बॉलीबुड को बाटे जाते है और जो कुछ बच जाए वह लेतो की खंडपीठ में बन्दरबाट कर लिए जाते है। पटेल के बुत हर जगह है किंतु 552 रियासतों के दानदाताओ का कहि नाम नही ...क्या यही भारत को ठेके पर हेंडल करने बालो की कृत्यगता ?
राष्ट्रीय खेल हॉकी ओर उसके जादूगर ध्यानचंद्र जी आज भी उपेक्षित है। क्योंकि उन्होंने हिटलर के समक्ष सीना तान कर बोला था.......'भारत का हूं और क्षत्रिय हूं सिक्को से स्वाभिमान नही तौला जा सकता है !"
पंडित गैंदालाल दीक्षित जी उम्रभर क्रांति की मशाल प्रज्वल्वित करके धन और आयुध उपलब्ध कराते रहे किन्तु आज देश मे 60 %को पता ही न होगा। तरकुली माता के अनन्य भक्त अंगरोजो की बलि चढाते रहे किन्तु उप्र से सटे मप्र,बिहार को भी पता नही होगा !
आईपीएल में बिकते क्रिकेटर ओर ऑनलाइन जुआ व मदिरा प्रचार करते क्रिकेटर ही अगर भारतरत्न है तो नङ्गे मानसिक वेश्यालय की दुनिया मे भारतरत्न खोजने की नीति कैसे प्रारम्भ हुई ....इन दलालो ने कोनसा तीर मारा है !
राष्ट्रीय बापू,राष्ट्रीय चाचा,राष्ट्रीय गुरु, जैसे सम्मान किस किधर परस्पर बटे वह हर कोई जानता है पर निर्पेक्षय की अति तो तब हुई थी, जब डा राजेन्द्र प्रसाद जी को सोमनाथ मंदिर जाने से नेहरू ने रोका था !!
आज देश का बच्चा-बच्चा परिचित है कि जिन्होंने भारतभूमि को लहू से सींचा उनको उपेक्षित कर दिया गया है और हमे आजादी देने में 'असहयोग आंदोलन' का रट्टा लगाया गया। इतिहास की बात की जाए तो महान दूरदृष्टा ओर प्रजा बत्सल शाशक जयचन्द ओर मानसिंह को गद्दार प्रचारित किया किन्तु माधव भट्ट,राघव चेतन,वातायन खत्री,आदि भेदियो पर मौन साधा गया ।
आज भगत सिंह जी को स्मरण करके उनको श्रद्धा सुमन अर्पित तो किये जायेंगे किन्तु उनको वलिदान को सर्वोचित उल्लेखनीय सम्मान दिलाने पर लेटे मौन साध लेंगे। असल मे यह जो लोकतंत्र है न सब बॉलीवुडिया सिल्वर स्क्रीन का ही वास्तविक रूप है जंहा वर्जित दृश्य भी अभिनय प्रतिभा बनाकर परोसे जाते है। ओर देह दर्शन कराके संस्कृति सभ्यता के सभी बंध खोले जाते है ।
पूज्य भगत सिंह जी अच्छा हुआ लगभग दशक उपरांत भी आपका पुनर्जन्म नही हुआ क्योंकि यह देश तो कल फिरंगियों की शाश्कता का गुलाम था ....और आज हरामियों की मानसिकता का है ।
अमर शहीद भगत सिंह जी को एक भारतीय की तरफ से अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन व नमन 🙏
'इंकलाब जिन्दावाद' 💪
'वन्देमातरम'
'जय भवानी'
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जितेंद्र सिंह तौमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.
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