कल से प्रारम्भ होते नवरात्र और कुवारों-कुंवारियों के चेहरों पर ४माह उपरांत लौटती चमक में छिपा भविष्यवाद का गहन चिंतन भी मतदान से बड़ा मुद्दा हो सकता हे किन्तु इस तरफ देखनी की किसी को क्या परवाह आन पड़ी ....?
आज भारत विश्व की सर्वाधिक तरुण अवस्थाबादी जनसख्या का देश हे किन्तु दुर्भाग्य से वह योग्यता अनुरूप पारिश्रमिक सृजन में असफल हे और कही न कही देश की रीढ़ कही जाने बाली तरुणाई ही अर्थव्यवस्था का बो केंद्र जो देश उन्नति-प्रोन्नति का आधार स्तम्भ होकर ही खोखले बादो से प्रति पञ्च वर्षीय सरकार बनाओ योजना के रक्त पिशाचों द्वारा ठगी का शिकार बनाई जाती रही हे ।
क्या देश का उर्जामयी युवा अपने भविष्य के प्रति सचेत नहीं हे ......?
क्या तरुणाई का आधार खोखला होकर रुग्ण हे ....?
क्यो युवा मात्र सोचो अथवा व्यसन के आधीन होकर अपना भविष्य और देश का आधार दोनों दुर्बल करने पर उतारू हो रहा हे ?
सम्भवतः किसी ने इस बिंदु की तरफ आकर्षित होना मुनासिव न समझा ,आखिर युवाओ में आकर्षण खोजने की किसी को क्यों आन पड़ी,जब राष्ट्रवाद चरम पर होता हे तो बेरोजगारी भी सर्वोच्य शिखर पर होती हे न ....!
एक सर्वेक्षण अनुसार देश का एक बड़ा हिस्सा व्यसन के प्रति आकर्षित हो रहा हे और जिसमे मूल में छिपा हे उनको समुचित व्यवसाय की अनुपलब्धता से बढ़ती मनोविकारों की खिन्नता में मष्तिष्क को क्रतिम सुख देने की लत लगना।न तो देश के ठेके पर चलाने बाले संचालक-परिचालक इस तरफ ध्यान देते हे और ना ही इस धीमे जहर के व्यवसायी! क्योंकि इन बेरोजगारो के खाली होने पर ही उनको लाभ प्राप्त होगा जो राजनेतिक भी होता हे और व्यवसायिक भी ।
जब देस के बड़े वर्ग के पास समुचित आय के श्रोत होंगे तो क्या बो अपना बहुमूल्य समय इन खाजनेतिक दलो और व्यसन्न कारियों के लिए निकाल पाएगा .....!!
आज हर युवा-युवती निरन्तर भाग रहा हे.....सोचता हे आज का परिश्रम कल उसके लिए स्वर्णिम भविष्य की बुनियाद रखेगा किन्तु देश की अतुलनीय शक्ति का दुर्भाग्य यहां भी साथ नहीं छोड़ता कुछ अवसर वादी मतो के लिए युवाओ से मतभेद कर निपट अनपढो को रोजगार मुहैया करा देता हे। और मेधा तड़पती हे.....
अपनी दुत्कार पर,क्रोधित होती हे....
अपनी उपेक्षाओं पर और कलुषित मन से बड़ जाती हे नशो की तरफ फिर स्वम की नशो से जहर ही क्यों न सोखना पड़े ..!!
यह कुछ समय की मानसिक शून्यता अंततः उन्हें ले जाती है गहन अंधकार में ओर कोई जहर पान करता तो कोई फांसी झूलता है !
विगत-तत्समय और आगामी धूर्त ठेकेदारिया अगर इस देश में मन्दिर मस्जिद,जातियों की धूर्त राजनीति करने से बेहतर होता की समुचित श्रमण का प्रबन्ध करती तो कदाचित देश की मेधा यू न पलायन करती !
एक तरफ तो युवा को जाति-पाती मिटाने की शिक्षा दी जाती रही वही दूसरी तरफ सभी वरीयताओं,मेधाओ,उपलब्धियों,शेक्षणिक मान्यताओ,पात्रताओ को परेह् रखकर सिर्फ जातिप्रमाणपत्र मांगे जाते हे ।
आज भारत स्वम की मेधाओ की उपेक्षा करके विदेशो पर निर्भर हे क्योंकि हमारे ठेकेदारो ने सत्ता-भत्ता से आगे कुछ सोचा ही नहीं ।
इस देश में एक से बढ़कर गुणीजन विरक्त सा जीवन जी रहे और मुर्ख सत्ताधीसि के सर्वोच्य पर विराजमान हे।मेधाये राजनेतिक स्वार्थो के चलते व्यसनकारी हो रही हे और सर्वोच्य न्यायालय से नगग्ना युक्त संस्कृति हिरस्कारि आदेशो पर व्यक्ति स्वत्र्ता का मुल्लमा चढ़ाकर निषेधात्मक नियमन सुनाये जाते हे ।
यथार्थ में भारत,भारत न हा फिरंगियो के द्वारा थोपा गया नग्न,उभनिष्ठ,बलपौरुष हींन सदैव सभ्यता का ढोंग ओढे हुए #इण्डिया ही रहा ।
हे आर्यावर्त! तुझे बैभवशाली भारत बनने में और कितने युग लगेंगे .....!
देश की रीढ़ दिग्भ्रमित है और उसे स्वम झुकाव तक नही पता।राजनीतिक गलियारे की वेहया वैश्या ने सारा देश वर्णसंकर करके पौरुष विहीन कर दिया क्या ?
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~जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.
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