जैसा कि जनश्रुति है.....
नागिन जब नाग के साथ रमणरत होती है तो वह नितांत निर्जन को चुनती है ....अपने अंडजो को दुनिया देखने से पूर्व घेरकर ...स्वयं ही निगलने की प्रवृति में कितने बच्चों को मारकर खा जाती है..!
वही मादा बिच्छू अपने अंडों को हीयरे से लगाकर रखती है ...उन्हें सेह करने के साथ-साथ दोनो हाथो से निरन्तर लुढ़काते हुए,स्थानान्तरन करते हुए एक वृहद सुरक्षा के सिपाही की तरह से सुरक्षा प्रदान करती रहती है!
स्वजाये अन्डजो के पोषण में वह जब तक कुछ भी नही खाती ....! वह सन्तानमोह में सब भूल बैठती है, उसे सन्तान मोह ओर सृजन अभिलाषा इतनी प्रवल होती है कि अन्डो से निकलते बच्चे उसे जब चुनने लगते है,तब वह भूख से परिचित होती है और जब तक कि उसके बच्चे उससे तिल-तिल के मारते है !
वह पल प्रतिपल असहनीय दर्द को महसूस करती है और भागती है ....जीवन रक्षा के लिए ....मर्मातक पीड़ा से बचने के लिए !
किन्तु सन्तानमोह में यह पीड़ा तो सहन करती है, स्वयं के दर्द कारक बच्चों को स्वयं से प्रथक नही करती है। और अंततः उसी के जाए एक दिन उसको निढाल कर देते है ....वह सृजन करके स्वयं के विनाश का कारण स्वयं बनती है !
सर्पनी अंडे देकर उन्हें भूल जाती है, जैसे कोई कभी मोह था ही नही! उसने तो सर्प के साथ रमण सिर्फ भौतिक आवश्यकता पूर्ति और रति आकर्षण वश किया था .....प्रकृति ने उसे गर्भ (गर्व भी पढ़ सकते है,जिसका भाव अंत मे प्रकट होगा) दिया और सर्पिणी ने गर्भ को बोझ समझ उपेक्षित कर दिया ।
उसे तो पूर्वाग्रह हो गया उन अचेष्ठी अन्डो है कि उसे जनते हुए उसकी ऊपरी चमड़ी उधड़ गयी ....उसे असहनीय प्रसव वेदना सहनी पड़ी। उसने सृजन ओर बात्सल्य से जुडी प्रसव को बिपरीत दृश्टिकोण से परखा ..!
अंततः नियत समय पर आ गयी अपने अंशो को निगलने के लिए ,अन्डो की वृत्ताकार परिधि में उसने कुंडली लगाई और चटकते अण्ड आवरण पर शिकारी की निगाह रखी ......जो निकला और निकलते ही अपनी माँ से दूर भागा बच गया किन्तु जो निकल कर मातृपक्षीय मोह न त्याग सका ,वह माता द्वारा ही पुनः उदरस्थ कर लिया गया...!
यह कैसा सृजन ओर जनन था जिसमे पूर्वाग्रह ओर क्रोध में जननकर्ता द्वारा शैशव को क्षुदा शांति की भेंट चढ़ना पड़ा ?
मादा बिच्छू ओर सर्पिणी यू तो दोनों के प्राकृतिक जनन व्यवहार सर्वदा बिपरीत है किंतु जब इसे #खाजनीति की दृष्टि से तौला जाए तो बिच्छू वह क्षेत्र व समाज है जिसमे #लेता पैदा होता है और शैशव काल मे ही 'भौतिक शास्त्री-लेन्ज' की व्यंजना का सन्दर्भ बनता है !
जब वह बड़ा होकर सर्पिणी सदृश होता है तो सर्वप्रथम समाज,क्षेत्र,कर्त्तव्य,कर्म,धर्म से विमुख होकर उसी से उदरपूर्ति कर लेता है ....जिसके सृजन ,पालन,पोषण का उत्तरदायित्व उसपर होता है .....!!!
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जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र
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