#जय_गोपाल_जी_की
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चन्द्रवंश,भरतकुल-पाण्डव वंशी तोमर(तँवर) क्षत्रियो का अभिवादन क्यों है ..?
कभी-कभी कुछ अतिसामान्य से व्यवहारिक प्रश्न मष्तिष्क में आते तो है किंतु समुचित उत्तर जिव्हा में ओर भाव होते हुए भी चुप रह जाते है .....कारण है समुचित जानकारी और उससे कारण का ज्ञात न होना !
आज तँवरवंश के अविवादन पर कुछ शब्दो के माध्यम से चर्चा की जाए..।
महाभारत के युद्ध से पूर्व धर्मराज युधिष्ठिर के मातृपक्षीय बन्धु योगेश्वर श्रीकृष्ण जी जीवन ही इतनी लीलाओं का अथाह सागर रहा कि उनके अनन्त नाम रखे गए ....और गोवर्धन पर्वत तर्जनी पर धारण करने बाले लीलाधर देवराज इंद्र के द्वारा 'गोपाल' पुकारे गए।
योगेश्वर की बहिन योगमाया तँवर कुलदेवी तो योगेश्वर द्वतीय कुलदेव माने गए ...!
एक समय आया कि गुरुपुत्र अशश्वथामा ने द्रौपदी पुत्रो की नृशंस हत्या कर दी और जाकर ऋषि आश्रम में छुप गया। जब पाण्डव व योगेश्वर से सामना हुआ तो छिपकर सीखे गए 'बृह्मशीर्ष अमोघअस्त्र' का सन्धान किया ....जिसके प्रतिउत्तर में श्रीकृष्ण जी की सलाह पर पार्थ द्वारा भी उसी दिव्याश्त्र का सन्धान किया। अंतरिक्ष मे अंधेरा होने लगा ,दिगम्बर डिगने लगे...पृथ्वी कम्पित हो गयी और सृष्टि जैसे महाप्रलय के अंधकार में लुप्त होने लगी ....। दो महान दिवाश्त्रो के मध्य आये महर्षि द्वारा अर्जुन-अशश्वथामा को आदेशित किया गया कि इससे पूर्व महाप्रलय हो अपने अस्त्र बापस करलो ....अर्जुन को पूर्णसंचलन ज्ञान था और उन्होनो अस्त्र बापस कर किन्तु गुरुपुत्र को अर्द्धज्ञान था और उसने अपने पूर्वाग्रह के कारण पाण्डव वंश बीजनाश हेतु उत्तरा के गर्भ पर लक्षित कर दिया ।
गर्भ में पल रहे शिशु महात्मा परीक्षित का जीवन ओर भरतकुल वंश का असितित्व जब संकट में आया तो पुनः योगेश्वर अपनी योगमाया के साथ अपने अनन्य भक्त की रक्षा गर्भ में उस अस्त्र का कबच बन करते रहे ।
जब महात्मा परीक्षित का जन्म हुआ तो वह सबकी तरह रुदन करने की बजाय शुकासन लगाकर बेठ गए और सबपर अपनी परीक्षित दृष्टि से अवलोकन करने लगे ....किसी के अंक में जाने की जगह उन्ही निगाहे तलाश रही रही थी .....अपना चक्रधर....रक्षक मुरलीधर....अपना दैव गिरिधर गोपाल ! जैसे ही गोपाल का आगमन हुआ और वह दौड़कर चिपक गए गोपाल के अंक में ....जय जय गोपाल गाने लगे ।
प्रथम कुल दैव महादेव हरिहर शंकर जी के बाद द्वितीय कुलदेव के रूप में गिरिधर गोपाल जी इतनी बार इस तन्वरकुल रक्षा की है कि महात्मा परीक्षित से ही सम्भवतः "जय गोपाल जी की" तंवरो का कुल अविवादन प्रचलित हो गया और हम अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अपार श्रद्धा में जय गोपाल जी की बोलते है ।
★जय गोपाल जी की ★
सन्दर्भ :-
श्रीमदभागवत महापुराण,महाभारत,श्रीमद्भभागत विष्णु महापुराण,सबल सिंह चोहान कृत महाभारत
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रविवार, 23 अगस्त 2020
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