#मेरी_छुटकी_नटखट
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मेरी दुलारी पता है ....उस दिन जब तुमने मुझसे रूठते हुए,टेड़ा मुँह करते हुए ....मेरे पत्राचारी व्यवहार की जानकारी पूँछी थी न! उसी दिन तुम्हारे छोटे-छोटे हाथो की बुनी हुई एक भावनात्क डोरी मेने अपनी कलाई में महसूस की थी ।
उसमे सितारे नही थे किंतु चन्द्र ओर उसके साथ आकाश गंगा बिखरे असीम तारागण थे। जो मुझे भावनाओ से अभिभूत कर रहे थे। में नही समझता कि तुमसे बंधी हुई ऐसी कोनसी डोर है जो मुझसे कोई भी भेद छिपने नही देती है और वह भी इतनी सहजता से की में स्वम से साझा करने में संकोच करता हूं ।
तुम्हारा रोज-रोज पूछना की "स्पीडपोस्ट आई क्या दद्दा!"
मुझसे कंही न कही मेरी ही तरह 'बिलम्बित गति' प्रतिदिन प्रश्न करती है.....की तुझसे तेरी यह प्रकृति कहि दूर जा रही है और किसी के निश्छल स्नेह में सबकुछ समयनुसार होने बाला है....!
मुझे नही पता कि तुमसे कब मिलूंगा ओर कब तुम्हारे भाग्यशाली चरण स्पर्श कर सकूंगा ?
किन्तु इतना अवश्य जान गया हूं कि, तुम मेरे जीवन मे नया सौभाग्य लेकर आई हो ।
तुम्हे बता दु की में जब जॉब अथवा स्टडी लाइफ में रहा ...रक्षाबन्धन को घर नही आता था। क्योंकि मुझे पता है कलाई पर धागे अनन्त बंध जाए फिर भी किसी छुटकी या बड़की के साथ अपने हृदय के भाव साझा नही कर पाया वह तुमने सहज ही जान लिए ।
तुम्हारी भेजे हुए धागे तो में उसी दिन से बंधे समझ रहा हूं, जब तुमने मेरे नाम की यह राखी रजिस्टर्ड की होगी। वह देर आये...अबेर आये कोई फर्क नही क्योंकि में कलाई त्योहार उपरांत राखी वर्ष भर बांधे रखता हूं....ठीक मोली की तरह ! जो मुझे पल-पल मेरे कर्तव्यों के निर्वहन (क्षत्रियत्व)का स्मरण कराती रहती है !
वर्षो से एक सपना था कि कोई मेरे कहे बगेर मुझे एक धागा देकर उस डोर से बांध दे...जिसकी आजन्म से रिक्तता है। एक अनजाना अधिकार कहि सुप्त था जो सहसा जागृत हो गया ।
हमे नही याद कब मिले ...पर न जाने क्यों तुझे कांधे बिठा सारा संसार घुमाके अर्पित कर देने की एक लालसा जागृत है। कहि न कही तुम्हारे टेढ़े-मेढे गुस्से बाले मुह की शैतानी अलग ही बात्सल्य जागृत करता है। सोचता हूं जब तुमसे मिलूंगा कहि खुशी में हार्टफेल न कर बैठु !
छुटकी तुम चिंतित मत होना तुम्हारा स्नेह सूत्र मेरे पास ही है और तुम्हारा भैया यथार्त के साथ कल्पनाओ में भी उतना ही विश्ववास करता है। जब मिलु अपनी सभी शिकायते दिनभर सुनाना ओर शाम को बड़ी दादी की तरह सब भूलकर खाना में देरी के लिए झिड़की देना ....में चाहता ही हु की तुम बस रूठी रहो और में चिढ़ाता रहुँ ....मनाता रहु...यू ही युगों तक .....जन्मजन्मातर ...तुम्हारे स्नेहबन्धन के कर से कभी करमुक्त न हो संकु..!!
तुम्हारी 'आईएएस' सफल होने की प्रशन्नता में नाचने को आतुर तुम्हारा भैया ...
मेरे इस तुक्ष्य जीवन मे अवतरीत उन सभी बहिनो का सात जन्मों तक ऋणी हु, जिन्होंने मेरी कलाई कभी सुनी नही रहने दी ❤️❤️❤️🙏
कुँ. जितेंद्र सिंह तोमर " "
चम्बल मुरैना मप्र "तँवरघार"
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