===सवारी अथवा सवारा===
●हास्य कल्पना●
वास्तविकता में मौषम और समय किसी के लिए समान रहते हे तो वह वर्ग हे परिवहन वालो का....।
वह दिवस विशेष के मोको पर भी अपनी सदावहार 'टोन' से हमलोगो की तरह बाहर नहीं निकलते।जेसे उसी में रचे-बसे भर हो .....!
"शीशे की तरह दिल तोड़ दिया पथरा का जमाना से लेकर" गर्मी में "खटिया सरकने और ठण्ड लगने" तक में वातानुकूलन का अनुभव देते हे।तो कभी "कब याद करु उसको,कब तक अश्क बहाउ" सूना-सूना के कितनो को 'खाँसी-हंसी' मध्य पड़ने बाले ठसके का पुनःअनुभव करा ही दे ...।
इनमे कुछ ट्रेवल्स बसे मेल तो कुछ फीमेल भी होती हे।जिनके मुह,बोनट,डेशबोर्ड,विंडस्क्रीन पर लाली-नथुनिया से सजी दुल्हनिया की मुखाकृति से लेकर दिल्फ्टी शायरिया और प्रीतम के प्रति 'दारु पीकर मत चलाना,जिंदगी भर साथ दूंगी' जेसी पंक्तियों से लेकर उच्चक्के कोटि की तस्वीरें भी चस्पा मिलेंगी किन्तु रंग के मामले में यंहा भी शेडो की भरमार मिलेंगी।76 लोंडो की रँगविरंगि तस्वीरें विभिन्न मुद्राओ में देख कर अनुमान लगाया जा सकता हे।कि, यह मण्डली पसन्द के मामलो कितनी बहिर्मुखी हे ।
तुरा जब फिट बैठता हे जब आप चालक और परिचालक की जुल्फों के भेद नहीं कर पाते की 'जुल्फे नागन' की हे या ना-गण की ...!
बात अगर इनकी 'होर्न्स'(ध्वनि) की जाए तो इतने कर्कस से लेकर मधुर तक मिलेंगे की आपको अकेले यात्रा में सहयात्री की याद आ ही नहीं सकती।चाल तो कहने क्या साहव.....इतने लटके-झटके दिखाकर चलाई जाती हे की सीलिंग और विंडस्क्रीन पर दर्शाये क्षितिज(जहा जमी-आसमा मिलते प्रतीत होते हे) से लेकर व्हिलो के पास बंधे हजारो नुपुर एक साथ झंकार उठे हो.....!और आपको आपकी उनकी....नेपथ्य बाली पदचाप ....स्मरण हो आई हो और आप किसी से चेटीआते,शेखी बखारते,पुरुषप्रधान विनोद अध्यन में-दर्शन में,अथवा मित्रो के समक्ष 'पति-पर-मूसक' होने का दाबा करते-करते,तदस्तिथि में थूक से सेलफोन की स्क्रीन साफ़ करने की सुखद अनभूति का स्मरण कर सकते हे ।
अंततः इनके पश्चभाग में 'घर कब आओगे'... 'ड्रायवर की बनी दुल्हनिया-क्लीनर से प्यार हुआ' .....'मालिक की लाड़ली'.....'डिपर मत मार जगह मिलने पर दूंगी...साइड' 'फला जगह की शेरनी' इत्यादि जेसे मनोवैग्यानिक, बहुभावअर्थीय, रिझाते,ट्रैफिक-शाश्त्रीय,त्रकारीभाव पाये जाते है ।
इनमे कुछ वाहन 'मेल्स' भी होते हे,जिसकी अनुभूति 'एंटर गेट' के सामने लिखा 'महिला सीट' और "फलाना टूर&ट्रेवल्स आपका हार्दिक स्वागत करता हे "....ऐसी अनुभूति कराता हे जेसे 'दौर-ऐ-जाम' के वक्त साकी बने मित्र ने एक जाम के बाद ही.....पूरी खेप लाने बाली नजरो से आशा लगाई हो ..!
इनकी विंडस्क्रीन पर नर स्वभावी विभिन्न नर्तकियों से लेकर हूरो तक की आकृतिया दिख जाती हे।इन बाहनो के प्रायः 'रेडिएटर कवर' नदारत होकर ऐसा दृश्य मष्तिष्क में बनाते हे जेसे बीड़ी-हुक्के की तलब में बिचारे दूकान खोज रहे हो......और बगल गुजरते वाहन से पैसे न होने की एवज कोई फुक्कु ब्रांड चलने की सहमति दे रहे हो ...तलव बड़ी चीज हे प्यारे,गुटके-तम्बाकू की लत में सर्वदा ट्रक और बसो का मुह भी दन्तरहित ही दीखता हे ...!!
हेडलाइट्स के मध्य चस्पा बड़ी-बड़ी क्रुरसिंघि मुछो से तो वाहन पूरा मर्द ही नजर आता हे.....!मुखाकृति को और चलने पर बजती खिड़कियों का करतल का संयोजन करके देखिये की 'नरवाहन' और उसका माथे अंगोछा लपेटे चालक जेसे 'नाती-बाबा,साडू-साडू' बाली कहावत को चरितार्थ कर रहे हो ..!
इनमे बजते विद्धुतचुम्बकीय वाद्य यन्त्र पर गीतों परिचालक की आयुनुसार भजन,गीत,रसिया बजाए जाते हे।हालांकि अल्ताफ राजा की गायी गजले "तुम तो ठहरे परदेशी ...की बेटकलुफि से लेकर रफ़ी साहव का 'आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार' आह्वाहन सहसा नरो की नाजुक दुनिया की सैर करा ही देता हे।हालांकि परिचालक मुड़ तफ़रीह मारने का हुआ और रक्त में करामाती रसायन का मिशन हुआ तो 'मुन्नी बदनाम से लेकर,जवानी मांगे पानी-पानी' का ठोस-रस अनुभव करके गोरी जेल भी करा सकती हे ।
इन वाहनों की पीछे लिखी ...'तू चल में आया'.....'अम्मा-बप्पा की दुआएं'....फला का शेर....ढिका का गेहदु....गोरी का साजन......ड्रायवर की जिंदगी स्टेरिंग और ब्रेक पर'....!!!!इत्यादि वाक्य जीवन घर्षण को व्यक्त करते हे ।
यदपि कुछ-कुछ वाहन तांत्रिको का स्वभाव् भी दर्शाते हे जो अनपरिचित 'जय बाबा अकड़-पकोड़े'......'अलख निरंजन'.....'मैड बाबा की कृपा'...'जय केतली बाबा 56' के न समझ आने बाले लम्बे लम्बे बाउंसरों की तरह बहुत दूर तक समझ नहीं आते हे !
खेर इतना सब लिखते आने बाली/बाला रेल-गाडी-रेलगाडा की प्रतिक्षा कर रहा हूँ.....की अपनी तकदीर में सवारी वाहन मेल आएगा अथवा फीमेल ....😊
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जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'
प्लेटफाम नम्बर 4 ग्वालियर