गुरुवार, 10 जनवरी 2019

लफ्ज़-ए-बिस्मिल

#म्हारी_धरोहर।।।

खून में बसती जिसके ज्वाला धर्म पे जान गवांते है।
वो सूरवीर रणबांकुर क्षत्रिय ओ राजपूत कहलाते है।।

नमस्कार है उन कोखों को जिनमे राणा से थे वीर पले।
नमस्कार है उस धरती को जिसपे पृथ्वी जैसे धीर चले।।

थर थर कंपती थी धरती और व्योम बड़ा थर्राता था।
राणा सांगा चढ़ घोड़े पर जब अपना शौर्य दिखाता था।।

महासती माँ पद्मा सी जो अनल सुधा को पीतीं थी।
अपने इतिहासों से परिचित वे स्वाभिमान से जीतीं थी।।

स्वामिभक्ति ओर राष्ट्रभक्ति का क्षत्रिय एक पर्याय बना।
गोरा बादल की गाथाओ से रजपुताना इतिहास भरा।।

गौरी भी हारा था खिलजी भी हारा था गजनी ने मुँह की खाई थी।
जब भी शाका करने निकले वीरों की शमशीरें लहराई थी।।

भूल नही जाना तुम बंधु जयमल फत्ते की कुर्बानी।
राम सिंह और अमर सिंह की आधी रही जवानी ।।

भूल नही जाना तुम बंधु #बिस्मिल_तोमर की कुर्बानी।
रोशन सिंह और कुंवर सिंह फिर झांसी वाली रानी।।

भूल नही तुम जाना बंधु चम्बल के वीर जवानों को।
रण में जिनने धूल चटाई नरभक्षी काले श्वानों को।।

भूल नही तुम जाना बंधु #कोन्थर के वीर किसानों को।
अंग्रेज सिंधिया की तोपों से खाली हुए किनारों को ।।

भूल नही तुम जाना मित्रों #तरसमा के वीर शहीदों को।
पदचापों से ही मार गिराया लाश नोंचते गिद्धों को ।।

भूल नही तुम जाना मित्रों #छोटी_कोन्थर के चौदह शेरों को।
द्वितीय विश्व युद्ध मे जो लगा गए दुश्मन की लाशों के ढेरों को।।

भूल नही तुम जाना बंधु इस #अनुज सिंह की रचना को।
चम्बल माटी  विश्वमणि हो हर चम्बलवासी का सपना हो।।।

कुँ.अनुज सुमन सिंह तरसमा (बिस्मिल)
9713086007।।।।

1 टिप्पणी:

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