===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग-१७
¶डाकू अमृतलाल किरार¶
चम्बल बीहड़ और डकेत ये तीन शब्द जब जब स्मिर्तियो में आते हे तब-तब ख़ौफ़,सिहरन,दनदनाती बन्दुके व्यूह रचते पुलिसबल और एनकाउंटर होते डकेत।चंबल के बीहड़ों में डकैतों के किस्सों का सिलसिला बहुत लंबा है। एक से बढ़कर एक दुस्साहसी, एक से बढ़कर एक खूंखार एक से बढ़कर एक निशानेबाज। जिसमे ज्यादातर परम्परा समर्थक बागी कहलाये किन्तु जैसा प्रकृति में निहित हे की जहां सूरज का प्रकाश भोर लेकर आता हे।वही अमावस की स्याह रात भी होती हे।ऊर्जा सकारात्मक भी होती हे तो नकारात्मक भी होती जिससे चम्बल का इतिहास भी अछूता नहीं रहा।ऐसा ही एक दुर्दांत हत्यारा,शकी, कातिल,बलात्कारी पात्र चम्बल में भी आया और अपने शातिर दिमाग की बजह से पुलिस फाइलो में 'लोमड़ी' का शीर्षक लेकर दर्ज रहा ।
बुजुर्ग बताते हे की "अमृतुआ की नाक में नकेल डालने और अय्याशियों से क्रोधित हुए बागी मानसिंह राठौर गिरोह के दो अलग हुए किनारे लाखन सिंह और रुपा पण्डित भी अमृतलाल को नियंत्रण में लेने के लिए एक साथ हुए।कई भिड़ंत हुई किन्तु जब कुवारी के तीर में आखिरी मुठभेड़ हुई तो अमृतलाल को पकड़ लिया गया और उस जमाने में बीहड़ के राजा मानसिंह के समक्ष अमृतलाल ने 'पनाह में दाल खायी' जो बाद में चम्बल की एक कहावत के रूप बन गयी।
यु तो अमृतलाल पहली और आखिरी बार हारा किन्तु सबसे बड़े गिरोह से भी दो रायफल बन्धन काट के लूट ले गया.....
वह इतना तेज तर्रार था कि फरारी में भी आराम से शहरों में घूमता रहे,शक्की इतना कि अपनी परछाई से भी परहेज करे और दुस्साहसी इतना कि डीएम के घर को ही लूट ले,...पुलिस फाईलों में दर्ज चंबल का सबसे शातिर डकैत जिसने अपने दिमाग के दम पर एक दो साल नहीं लगभग चौथाई सदी तक चंबल में आतंक मचाएं रखा उस डाकू का नाम है अमृतलाल। बाबू दिल्ली वाला या अमरूतलाल।
बीहड़ों में खाकी का खौंफ हर किसी बागी या डकैत को होता है। मुठभेड़ हो तो भी डाकू पुलिस से बच निकलने की कोशिश करते है लेकिन अमृतलाल एक ऐसा डकैत जिसको पुलिस का कोई खौंफ नहीं था। वो आम लोगो को नहीं राजाओं को भी लूट लेता था। घरों को ही नहीं गढ़ियों को लूट लेता था और इतने पर भी बस नहीं तो सुन लीजिए वो पुलिस के थाने भी लूट लेता था। और ये कहानी भी उसके साथ ही जुड़ती है कि कोई जेल या थाना अमृतलाल को रोक नहीं पाती थी। और चंबल में पकड़ यानि अपरहण को डाकुओं की कमाई का जरिया बनाने की शुरूआत भी अमृतलाल से ही मानी जाती है।
पुलिस के थाने लूटने वाला डाकू। लेकिन चंबल के डाकुओं के मिजाज से एक दम अलग। किसी भी लूट के लिए मिलिट्री की तरह से तैयारी और फिर लूट के बाद अय्याशी का एक खुला खेल। चंबल के डाकुओं में शायद अमृतलाल अकेला डकैत था जिसकी अय्य़ाशी भी सुर्खियों में थी और मौत भी उसको अय्याशी के चलते ही मिली।
अमृतलाल के सैकड़ों किस्सें आज भी चंबल की फिजाओं में गूंजते है लेकिन एक किस्सा ऐसा है जिसका रिश्ता सीधे बॉलीवुड से जा जुड़ता है. कहते है कि एक बार सिनेतारिका मीनाकुमारी और कमाल अमरोही भी अमृतलाल के गैंग के हत्थे चढ़ गए थे। और रात गुजरने के बाद ही उसने दोनों को बाईज्जत शिवपुरी के जंगलों से छोड़ दिया था
चंबल की पुलिस फाईलों में दर्ज एक ऐसे डाकू अमृतलाल ने कैसे हासिल की चंबल की बादशाहत और कैसे पुलिस अधिकारियों ने माना उसके शातिर दिमाग का लोहा ......?
इस बार पढ़िए शिवपुरी मध्यप्रदेश के बीहड़ों में एक जंगलों से घिरा एक और शहर। इसी शहर के पौहरी थाने का एक गांव गणेशखेड़ा।
घने जंगलों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से घिरा हुए इस गांव तक पहुंचना आज भी आसान काम नहीं है। ...
इस छोटे से गांव का ये घर किसी की भी निगाह अपनी और खींच लेता है। और इसी घर में 1916 में अमृतलाल का जन्म एक किसान भगवान लाल के घर हुआ था। कभी ये गांव अमृतलाल के बाबा ने ही बसाया था और गांव में ज्यादातर घर उन्हीं के परिवार के है।
बचपन में अमृतलाल को पढ़ने के लिए गांव के स्कूल भेजा गया। और फिर गांव के स्कूल से वो पौहरी के स्कूल पढ़ने गया। अमृतलाल का दिमाग तो तेज था लेकिन वो पढ़ाई के रास्ते में नहीं था। उसका मन खुरापातों में लगा रहता था। घर वालों ने बहुत मान-मनौवल कर उसे स्कूल भेजा लेकिन उसका मन स्कूल में नहीं लगा। स्कूल और गांव के बीच के रास्ते में एक दुकान अमृतलाल की निगाह में चढ़ गई। और फिर एक दिन रात में अमृतलाल ने एक कदम तो दुकान के अंदर रखा और दूसरा कदम अपराध की दुनिया में। पुरिस रिकॉर्ड में ये अपराध दर्ज हुआ और भविष्य के एक दुर्दांत दस्यु का पदार्पण भी हुआ ....
परिवार का कहना है कि इस चोरी में अमृतलाल के साथ पढ़ने वाले बड़े परिवार के लड़के भी थे लेकिन जब पुलिस कार्रवाई की बात हुई तो सिर्फ अमृतलाल को आगे कर दिया। इस बात ने अमृतलाल का दिमाग उलट दिया। अमृतलाल गिरफ्तार हो गया। लेकिन पौहरी थाने के लॉकअप में बंद अमृतलाल ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पुलिस ही चौंक उठी। लॉकअप में बैठे अमृतलाल ने एक पुलिस सिपाही को काबू किया औ 26 जून 1939 को हिरासत से निकल भागा और साथ में थाने से दो मजल लोडेड राईफल और कारतूस लूट कर ले गया। थाने में ये अपराध भी68 नंबर की जगह पा गया।
अमृतलाल ने थाने से निकलने के साथ ही अपराध की दुनिया में पूरे तौर पर एंट्री ले ली। 1939 में अमृतलाल ने थाने से भाग कर सबसे पहले उत्तरप्रदेश के बीहड़ों में अपनी आमद दर्ज कराई। दो साल तक अमृतलाल चंबल के बीहड़ों में एक दम से गुम हो गया था। 1941 में अमृतलाल ईटावा के जसवंतनगर के डकैत गोपी ब्राह्मण के गैंग में शामिल हुआ। गैंग में उसने सिर्फ गोपी को ही अपनी असलियत बताई बाकि सब उसके बारे में कुछ नहीं जानते थे। गैंग में आते ही उसने लूट और डकैती के लिए योजना बनाने का जिम्मा अपने कंधों पर उठा लिया।
एक के बाद एक वारदात करनी शुरू कर दी। हर किसी वारदात के बाद अमृतलाल कुछ दिन के लिए गायब हो जाता था। बीहड़ों से निकल कर वो किसी भी शहर में पहुंच जाता था। बस और ट्रेन के सहारे दूर दूर के शहरों में लंबा वक्त बिता कर वापस चंबल में पंहुच जाता था। अपने इन्हीं कारनामों की वजह से अमृतलाल का नाम पुलिस फाईलों में बाबू दिल्लीवाला के तौर पर मुखबिरों ने दर्ज कराया। क्योंकि न तो पुलिस जानती थी कि पैंट बुशर्ट पहनने वाला कौन सा नया डकैत चंबल के बीहड़ों में पैदा हो गया और न ही बीहडों के बाशिंदें जानते थे कि चंबल का ये डकैत शहरों में कहां गायब हो जाता है। ये चंबल में अमृतलाल की आमद थी। एक ऐसी आमद जिसकी आवाजाही अगले पच्चीस सालों तक चंबल में गूंजनी थी।
उत्तरप्रदेश के बीहड़ों में अमृतलाल ने अपनी कारीगरी दिखानी शुरू कर दी। एक के बाद एक लूट और डकैती करने लगा। लेकिन शायद चंबल में उस वक्त किसी को अमृतलाल का नाम याद नहीं था। लेकिन एक दिन अमृतलाल ने अपने गैंग के साथ ऐसा काम कर दिखाया कि पुलिस महकमें के पैरों तले की जमीन खिसक गई। अमृतलाल ने इटावा के डीएम एस के भाटिया आईसीएस के घर की लूट कर डाली।
इसके बाद अमृतलाल ने कानपुर में एक मिल्स से हथियार लूट लिए। अब गैंग के पास काफी हथियार हो गये थे। 1942 में ईटावा के जसवंतनगर में दो बडी डकैतियां डाली। 1943 में अमृतलाल अपने सरदार के साथ ग्वालियर में एक बड़ी डकैती डालने पहुंचा लेकिन मुठभेड़ में गोपी गिरफ्तार हो गया। गोपी की गिरफ्तारी के साथ ही गैंग की कमान अमृतलाल ने संभाल ली.........
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