मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

देशी कबित्त

कन्धा पे कलेऊ मुडाचे में दँराती, चलो लामणि करो रे साथी ।
झुनझुन बजत श्रवण झुनझुना,रण बजे छपक छप हथिराथी ।

लोक-लुहावनि समुहे लड़े दोनों ,रन बाजे तलवार तो खेत झुझ दरांती।
एक के बाजे उदर भरे तो दूजे रंग केशरिया दुश्मन प्रहार अघाती।

भीनी-भीनी चले पुरविया ज्यो मघासी,किलक- कलेऊ दे वज्रघाति
होय धुंधली फगुआ की घाम,ज्यो सिंह लड़े  'अभिमन्यु' सो साथी।

रंग डारे मझखेतन को केशरिया,बाँधी पञ्च औजार दुस्ट दलघाति,
जब झूझो रन खेत को लाल,मुंड गिरे धरणी लरे "तोमर" कुल ब्रजबासी।

         जितेन्द्र सिंह तोमर

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...