===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग-१६(तृतीय खण्ड)
---गब्बर सिंग----
गब्बर का शौंक जूनुन में बदल गया। अब वो इलाके के इलाके की नाक काटने पर तुल गया।
यहां तक पुलिस के कई सिपाहियों की नाक भी गब्बर ने काट दी। एक सिपाही तो किसी गांव में वारंट की तामील कराने गया तो वो भी गब्बर सिंह के हत्थे चढ़ गया और गब्बर सिंह ने उसकी भी नाक काट ली। गब्बर सिंह ने एक गांव में एक साथ 11 लोगो की नाक काट ली। और अपनी पूजा अथवा वहशियत पूरी करने में जुट गया।
गब्बर सिंह को मुखबिरों से सख्त चिढ़ थी। पुलिस से साथ हुई एक मुठभेड़ में उसे चंबल के एक गांव के लोगों पर शक हो गया कि उन्होंने उसके गैंग की मूवमेंट की खबर पुलिस को दी है बस इतना बहुत था गब्बर के लिए बेगुनाह लोगो पर कहर बरपाने के लिए। और एक दिन गब्बर दिन में ही उस गांव में जा पहुंचा। एक के बाद एक 21 लोगों को एक लाईन में खडा कर दिया गया। और डर में कांपते हुए लोग इससे पहले कि कुछ समझे 21 लोगों को गोलियों से भून दिया।गब्बर का आतंक बढ़ रहा था और प्रदेश की राजनीति भी गर्मा गई। 1957 में विपक्षी दलों ने गब्बर सिंह के शिकार दर्जनों लोगों को लेकर भोपाल विधानसभा के बाहर बड़ा प्रर्दशन किया। सरकार की नाक का सवाल बन गया गांव के बेगुनाह लोगो की नाक बचाना। मध्य प्रदेश सरकार ने पुलिस इंस्पेक्टर जनरल को भिंड में कैंप करने का आदेश दिया ताकि गब्बर के गैंग को खत्म किया जा सके। पुलिस अधिकारियों ने जिले के तमाम पुलिस अधिकारियों की मीटिंग्स बुलाकर इस काम के लिए किसी अधिकारी से स्वेच्छा से आगे आने को कहा। और फिर ये जिम्मेदारी दी गई युवा डिप्टी एसपी राजेन्द्र प्रसाद मोदी को ,आर पी मोदी कुछ दिन पहले ही चंबल की दस्यु सुंदरी पुतलीबाई का एनकाउंटर कर चर्चाओं में चुके थे। आर पी मोदी के लिए गब्बर का खात्मा करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा था। क्योंकि गब्बर सिंह का खौंफ इतना हो चुका था कि कोई आदमी गब्बर सिंह के बारे में खबर देना तो दूर की बात है नाम भी जुबां पर नहीं लाना चाहता था। पुलिस के सारे प्रयास लगातार पानी में मिलते जा रहे थे। दो साल का वक्त गुजर चुका था लेकिन पुलिस गब्बर तो दूर की बात है गब्बर के बारे में कोई खबर भी हासिल नहीं कर पा रही थी। गब्बर सिंह पर उस वक्त तीन राज्य इनाम घोषित कर चुके थे। लेकिन चंबल घाटी में किसी को ईनाम का लालच नहीं बल्कि अपनी जान के लाले पड़े हुए थे। और तभी गोहद थाने में बैठे हुए मोदी ने एक ऐसा काम किया कि उनके लिए गब्बर तक पहुंचने का रास्ता मिल गया।गोहद सड़क के सामने घुमपुरा गांव में एक झोपड़ी से आग की लपटे दिखी। मोदी मौका ए वारदात पर पहुंचे। पुलिस ने आग पर काबू पा लिया तभी पता चला कि एक पांच साल का बच्चा दिख नहीं रहा है शायद वो झोंपड़ी में ही फंस गया। इससे पहले कि कोई सोचे मोदी खुद झोंपड़ी में घुसे और उस पांच साल के बच्चें को बाहर निकाल लाएं। बच्चा आग में झुलसा हुआ था। मोदी ने अपनी जीप और कुछ पैसे बच्चें के बाप को देकर फौरन अस्पताल भेज दिया। बच्चे के बाप का नाम था रामचरण।गोहद थाने और डांग गांव के बीच में दूरी बहुत नहीं है। लेकिन डांग का गब्बर और गोहद में मध्यप्रदेश पुलिस दोनो के बीच इतनी दूरी हो चुकी थी कि गब्बर तक पुलिस की गोली पहुंच ही नहीं पा रही थी। ऐसे में झोंपड़ी के जलने के 25 दिन बाद रामचरण आ र पी मोदी के पास गोहद थाने पहुंचा और उसने मोदी को कहा कि वो मोदी की वर्दी पर मैडल सजा कर अहसान उतारना चाहता है। मोदी हैरान थे कि रामचरण क्या करना चाहता है इस पर रामचरण ने कहा कि वो गब्बर का पता देंगा।
रामचरण ने मोदी से कहा कि पहले वो रात में उसके साथ डांग गांव चले। रात में मोदी और रामचरण डांग पहुंचे फिर रामचरण मोदी को लेकर हाईवे और वहां से घूम का पुरा जिसे तालाब भी कहा जाता था पहुंचे। रामचरण ने वो भिंड हाईवे के इस तरफ डांग और दूसरी तरफ घूमकापुरा के बीच की वो जगह दिखा दी जहां गब्बर सिंह अक्सर रहा करता था। मोदी अपने दिमाग में नक्शा बना चुके थे , और जाल तैयार हो चुका था। बस अब शिकार का इतंजार था।
गोहद थाने में 13 नवंबर 1959 का दिन। अभी सूरज सही से निकला भी नहीं था कि आर पी मोदी को एक मेहमान ने चौंका दिया। रामचरण पहुंच चुका था और उसने पुलिस वालों के बीच में चुपचाप मोदी को इशारा कर दिया कि पूरा गैंग ठिकाने पर पहुंच चुका है। मोदी उसको अलग ले गए और डिटेल्स पूछी। रामचरण ने कहा कि पूरा गैंग पहुंच चुका है, पूरे गैंग को खत्म कर दो। क्योंकि चंबल में अगर गैंग का एक आदमी भी बचता है तो फिर वो मुखबिर के पूरे परिवार को खत्म करता है।सुबह 10 बजे तक गोहद थाने में तीन सौ हथियारबंद पुलिस वाले पहुंच चुके थे। प्लान बना तीन तरफ से घेराबंदी कर चौथी तरफ से सर्च पार्टी को आगे भेजा जाएं। मोदी ने किसी पुलिस वाले को ये पता नहीं दिया कि आखिर जाना कहां है और निशाना कौन है
मोदी और तीस आदमी सर्च पार्टी के तौर पर हाईवे की और से मौके की तरफ गए। दूसरी और से डिप्टी एसपी माधौं सिंह ने अपनी पार्टी लगा दी थी। पार्टी आगे बढ़ी तो देखा कि गैंग के लोग जमीन पर रैंगकर दूसरी तरफ से निकलने की कोशिश में है लेकिन वहां भी पुलिस मौजूद थी। लिहाजा गैंग ने फायरिंग शुरू कर दी।
11 लोगों का गैंग पूरी ताकत से फायरिंग कर रहा था। मुठभेड़ सुबह दस बजे से शुरू हो चुकी थी। गैंग के साथ कुछ अपह्त लोग भी। दोनो तरफ से फायरिंग हो रही थी। दिन का समय था आसपास के गांवों के लोग मौके पर पहुंच चुके थे। डकैत फायरिंग कर जिस तरफ से भी बच निकलने की कोशिश करते उसी तरफ से पुलिस की हैवी फायरिंग शुरू हो जाती। अब डाकुओं ने एक गड्डे मे पोजीशन ले ली और पुलिस के साथ आखिरी फायरिंग शुरू कर दी। सुबह से चल रही मुठभेड़ शाम तक जारी थी। धीरे-धीरे अंधेरा छा रहा था और अंधेरे का लाभ उठा सकते है। लेकिन मोदी गब्बर को खत्म करने का ये आखिरी मौका खोना नहीं चाहते थे लिहाजा उन्होंने एक बड़ा फैसला ले लिया।
मोदी ने अपने पुलिस वालों से कहा कि वो सीधा हमाल करने जा रहे है अगर कोई उनके साथ इच्छा से जाना चाहे तो चले। इस पर 11 गोरखा सिपाही जो पुतलीबाई के एनकाउंटर में भी साथ थे आगे निकल आए। मोदी गड्डे की तरफ बढ़े लेकिन डाकुओं की ओर से हैवी फायरिंग शुरू हुआ। मोदी ने हैंड ग्रेनेड से गड्डे में हमला किया। कुछ डाकुओं के मरने से फायरिंग कम हो गई लेकिन तब भी जैसे ही पुलिस ने आगे बढ़ना शुरू किया फिर एक डाकू की मार्कथ्री गरज उठी। इस पर मोदी ने फिर से दो हैंड ग्रेनेड गड़्डे में फेंके और फिर घायल डाकुओं पर लाईटमशीनगन से हमला बोल दिया।
कुछ देर में जब पुलिस पार्टी गड़्े पर पहुंची तो देखा कि ग्रेनेड्र से मारे गए डाकुओं के बीच में गब्बर सिंह अपनी आखिरी सांसें गिन रहा था। उसका निचला जबड़ा ग्रेनेड से उड़ चुका था। कुछ ही देर में जब तलाशी पूरी हुई तो 11 डाकुओं का पूरा गैंग खत्म हो चुका था लेकिन इस ऑपरेशन में चार पकड़ में से दो पकड़ भी गोलियों की जद में आकर दम तोड़ चुकी थी। उधर गब्बर की मौत की खबर पक्की होने के साथ ही हाईवे पर खड़ी हजारों की भीड़ ने गब्बर सिंह की मौत की खुशी मनानी शुरू कर दी थी। ये चंबल के सबसे खूंखार डाकू का अंत था लेकिन आखिरी डाकू का नहीं।
यही खुशखबरी प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू को उनके जन्म दिवस के दो दिन पूर्व मप्र.सरकार ने बतोर जन्म दिवस उपहार स्वरूप भेंट की थी ।
विशेष- ये वारूदी श्रंखला ने अब थका दिया अब प्रयास रहेगा चम्बल के कण-कण में बसे उन लाखो वीर शहीदों को लिखने का जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध हे कारगिल तक मिटटी की गरिमा को हिमालय पर स्थापित किया ।
कुछ परिचित लोक कथानक कुछ प्रशिद्धतम ऊँचे नाम और कुछ शामे गुमनाम सबका उल्लेख और श्रंखला में विविद प्रसंग भी ।
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आपका
जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
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