शनिवार, 14 नवंबर 2020

रंगोली के रंग


          ★ कहानी★

एकाएक चेहरे पर आयी श्वेत-श्याम अलका को हटाने  के लिए उन्होनो पास रखी बाल्टी में हाथ धोये ही थे की कहि से आकर एक बिल्ली ने उनकी बनाई रंगोली के रंगों  को बिखेर दिया। वह मुस्काई ओर बड़े ही भाव से बोल पड़ी...
"क्यों री मौसी...अब सासु माँ-ननदी सब गए जमाने के किस्से क्या बने तुम आकर उनकी याद दिलाने लगी !"

वह अकेली ही रहती थी किन्तु उस गांव का हरेक घर उनका परिवार था,वह आज से करीब 5 दशक पहले एक  17वर्षीय किशोरी बधु के रूप में आई थी। ऐसा क्या नही था जो उनकी वरात में न गया हो किन्तु उस वरात का किरीटमणि नही था ।
वह दूर थे अपनी कर्तव्यनिष्ठा के प्रति समर्पित 65 के युद्ध मे दुश्मन से लोहा लेते हुए, सेकड़ो दुश्मनो के काल बने हुए....मोर्चे-मोर्चे पर जैसे उन्ही का युद्ध कौशल कुलाचे भर रहा था ।

इधर वरायत की अगवानी पर तोरण मारा जा रहा था तो उधर वह बंकर पे बंकर मार रहे थे। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुँअर रणवीर आज अपने नाम को प्रदर्शित कर रहे हो .....उधर मण्डप में बैठी दुलहिन पास रखी फैंटा-कटार में प्रियतम प्रतिबिम्ब की कल्पनाओ में सँजो रही थी। विधि-विधान से पाणिग्रहण तो हुआ परन्तु रश्मो में बंधी नवविवाहिता को प्रियतम दरश न हुए ...!!

नवविवाहिता की अगवानी हुई पूरी हवेली में जैसे उत्सव था वही विवाहिता की मनमंदिर हवेली सजकर भी श्रंगार रहित थी...रिक्तता थी। उस अद्वतीय सौंदर्य को अपलक निहारने बाली दो आंखों की जो रण में जिसे निहारती वह  ओहदा शीघ्र ही रिक्त हो जाता और एकाएक ग्रेनेड आकर समीप ही गिरा की वह हिरन की तरह पहाड़ी से लुडककर गिरता-गिरता पड़ोसी के आंगन में जा फसा ।

विवाह की चौथी होने को थी कि दनदनाते कदमो से सेना का दस्ता आया और उनकी एकमात्र पहचान विशेष हेलमेट के साथ अपनी करून ध्वनि बजा श्रद्धांजलि दे ...अपने पीछे छोड़ एक लकड़ी का बक्सा जिसपर बड़े  शब्दो मे लिखा था 'सूबेदार रणवीर सिंह' !
घर मे करुंनक्रदन पसरा था तो नवविवाहिता मात्र मौन थी और सबसे बोल रही थी ...

"मुझसे बगेर पूछे कुँअर जी कहि नही जा सकते ,इस लोहे के टोप से क्या उनकी वीरगति मान लू !"

"में अपनी अंतिम सांस तक प्रतीक्षा करूँगी ओर वह भी सुहागन रहकर !!"

लोगो ने समझा कि सम्भवतः गहरा आघात लगा है पर नवविवाहिता अडिग थी,वह अपने प्रण न हटी ओर आज  भी लगभग आधा सैकड़ा आयु उपरांत माथे टिकुली मांग सिंदूर अनवरत सजता ।
कुछ समय बड़ो ने विरोध किया पर समय के साथ सबके लिए यह आम बात हो गयी ।

प्रणीता कंवर नाम था उनका....नाम जैसी ही अडिग। एक दम शांति और सुंदरता के जैसे समस्त अलंकार एकसाथ आकर रुक गए हो....रणवीर और प्रणीता के पाणिग्रहण माध्यम बने अश्व पर हर कोई सवार नही हो पाता था ,सिवाय प्रणीता के पिता पर कुँअर रणजीत ने खेल-खेल में अश्व को अपना मुरीद क्या किया उनके विवाह की वेदी के जैसे पहले मन्त्र बन गए ।

संन 65 युद्ध से लापता हुए कुँअर का कोई पता न चला और प्रणीता के इरादे दृण होते रहे ....समय अपनी गति से चलता रहा अब वह हर किसी के लिए सम्मान की जैसी मूर्ति थी। हवेली त्याग खपरैल की कुटी ओर एक स्यामा गाय के साथ दिनभर भजन। बच्चो को पढ़ाना,गांव भर के लोगो के दुख बाटना ही दिनचर्या थी ।

अभी दस दिन पूर्व ही तो उन्होंने अपने वैवाहिक अथवा प्रतीक्षित समय के 40 वे करवाचौथ को बगेर अन्न-जल के पूर्ण किया था और आज एक बिल्ली बार-बार उनकी रंगोली को बिखरा देती थी ।

"यह बिल्ली भी मेरा बार-बार काम बिगाड़ रही है जैसे किसी जन्म की दुश्मन हो!"

प्रणीता बड़बड़ा ही रही थी कि ......

"देवी सुनिए!"
"यशवीर सिंह जी की हवेली किधर है ?"

एक लगभग 60 वर्षीय प्रोढ़ किन्तु आभामय तेजश्वी चेहरे पर उनकी नजर पड़ते ही न जाने क्यों एक हुक सी उठी पर वह न चाहते हुए भी अपने स्वसुर का नाम सुनकर उन्होंने सिर पर अपनी पियरी साड़ी का पल्लू लेते हुए दवे स्वर में पूछ लिया ....!

"जी! उनकी हवेली में अब कोई नही है ,में उनके लड़के जो युद्ध मे लापता हो गए है उनकी पत्नी हु, कहिये आपकी की क्या सेवा कर सकती हूँ !"

प्रतिउत्तर सुन रणवीर की आंखों से अश्रु वह निकले और सजल नेत्रो से देखने की देरी थी कि ....अर्द्धस्वरूपा साक्षात हो गयी ।

"है नाथ !"
"युगों बाद आज बापीसी का ध्यान आया !"
बोलकर अचेत होगयी 

पड़ोस बाले एकत्रित हुए कुछ एकाध वयोवृद्ध बुजुर्गो ने पहिचाना तो गांवभर में ढोल तांसे बज उठे और प्रणीता के प्राणनाथ सहित पूरे गांव ने खण्डहर होती हवेली को दुलहिन की तरह दीपो से सजाकर इस चमत्कारिक वापिसी पर आनन्द गीत गाये !

आज दसको बाद अटारी पर रोनक थी जैसे युगों की प्रतीक्षा उपरांत पपीहे को स्वाति नक्षत्र का जल और जल को सुष्क हुए उपवन की चाह मूर्तिरूप हो उठी हो ।
दूर सघन में कोई संगीत प्रेमी मधुर स्वर में बांसुरी से आल्हादित हो रहा था तो प्रणीता कंवर का सुहाग आज पुनः नवेली दुल्हन की तरह सजा था .......!

प्रणीता कंवर की रंगोली दूर अंतरिक्ष मे रंग बिरंगी उल्कावृष्टि बनकर प्रणीता कंवर एवम कुँअर रणवीर के परिणय की साक्षी बन रही थी ।

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दीपोत्सव की बधाईया 🏜️🎡☀️⭐️🌟🌞🌞

       -जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
          चम्बल मुरैना मप्र

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