शनिवार, 21 नवंबर 2020

बाबू कथा (व्यंग)

अजी!भारत रहा होगा कभी कृषि प्रधान देश, आजकल तो बाबू प्रधान देश है।सोसलमीडिया से मैनस्ट्रीम मीडिया तक और संसद,पान की दुकान से लेकर पैनड्राइव की दुनिया तक मे बस बाबूओ का जिक्र ही मिलेगा।
कोई भी न्यूज हो जब तक कोई परकटि न्यूज बाली बाबू न प्रकट करे ...वह कपोल कल्पित झूठ बनकर रह जाती है !
बुद्धुबक्स के बाबू ही आजकल हमको अपडेट रखते है कि लड़को के कब पिम्पल निकलने पर कोनसा गोवर घिसना है और कब किस मौषम में कोनसे पाने से भुभडे के नट-बोल्ट टाइट करके 'थाना बाले तोतले बाबू' को पटाना है? फिर चाहे घर के अड़ियल 'लट्ठ बाले बाबू' के द्वारा  दिनरात पिलने पर 61-62 दिन वैधबाबू का कोर्स ही क्यों न करना पड़े। पर तोतले बाबू को 'माताबाबू' की पूजा का अधिकार दिलाना है ।

आज का भारत देख मुझे नही लगता कि लोगो को प्रेम जैसा कुछ होता होगा बल्कि प्रतीत होता है कि सबको 'संक्रमित बाबू रोग' हो गया है और अंततः उस बाबू की याद आ जाती है जो विभिन्न सरकारी दफ्तरों में इंग्लिश पीकर मिलता है और सबकी फाइलें 'अपनी इंग्लिस' के चक्कर मे मण्डप बाली सालियों की तरह छिपाते रहता है ।जैसे 'जूता छिपाई' (सॉरी..!फाइल छिपाई) की रश्म का नैग मिला वह मोदी जी की तरह 'सीना छप्पन' करते हुए आपकी फाइल नई-दुल्हन की सुहागसेज मुह दिखाई की तरह पेस कर देगा ।
अगर मुझ जैसे निपट गंवार से पूछ लें कि, "कभी बाबुओ के चक्कर में पड़े हो?"

तो में कंहूँगा- की भाई बाबुओ से भाजपा बचाये ओर राहुल गांगी को राष्ट्रीय युवा बनाये पर कभी इन तोतले,चोर,परकटे,बाबूओ के चक्कर मे एक बार सबको घुमाए!

बाबुओं का चक्कर जब इस मृत्युलोक में पड़ता है तो मानव जीवन-मृत्यु के तमाम चक्कर भूल सिर्फ और सिर्फ 'बाबू माया' के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता है।जन्म लेते ही जब थोड़ी समझ आती है तो घर मे प्रथमतः दर्शन होते है 'जूता बाले बाबू+जी के(सम्मान के साथ 'जी')यह एक इकलौते बाबू होते है जो आप-हम सबको अपने जूता के जोर पर सही राह दिखाते है,पर हमें शोशल मीडिया के इनबॉक्स बाले बाबुओ के चक्कर मे अपना कल्याण दिखने लगता है और ऐन मौके पर हमें वह बाबू बुलाकर अपनी वारात के स्वागत में बुत बनाकर खड़ा कर देते है। बाकी रही-सही कसर 'डीजे बाबू' ....."तू पसन्द है किसी ओर की" बजाकर पूरा कर देते है ।

इस बाबुमय विश्व मे सबसे घातक होते है बैंक बाले बाबू..!
पैसे निकालो तो ...
"विड्रॉल में एक जगह और सिग्नेचर...अबे शब्दो मे अमाउंट की स्पेलिंग सही कर!" इत्यादि की इस तरह घुड़की देते है जैसे ग्राहक खुद के पैसे नही 'केशियर बाबू' की किडनी विड्रॉल में लिख दी हो !
"बुधवार को आना पासबुक अपडेट कराने, अभी प्रिंटर मशीन की मौसी नाराज है !"
(जबकि बेचारा ग्राहक पिछले 25 बुधवारो से लगातार प्रिंटर की मौसी जी को बार-बार मना रहा होता है)
मनीजर बाबू का तो कहना ही क्या ...पूरे दिन लंच करके  अपने छौना बाबू को के नखरे जो लेने है !

सबसे क्रोधाग्नि बाले होते है घर मे विधिवत 'माताबाबू' की पूजा करके सांसारिक ढंग से लाये हुए 'घूंघट बाले बाबू'! यह बाबू जब जीवन मे प्रवेश करते है लौंडो के जीवन मे हच के टॉवर लग जाते है। दिन में भगा-भगा के नही सोने देते और रात में बर्फ से ठंडे पाँव लगाकर नही जीने देते है। मटर छिलने से पँखो पर गीला कपड़ा लगवाते है और जब इनका मन हो तो 'लठ्बाले बाबू जी' के सामने रोकर बेमतलब बोनस में गजक सी कुटबा देते है !

है महादेव जी!विनय है कि तमाम तरह के बाबुओ से बचाये रखे किन्तु 'माताबाबू बाले 'ठीकरी बाबू' ओर 'पनाह बाले बाबू(जी) से सबकी बनाए रखे !

नॉट-: किसी के पास तोतला बाबू हो तो हमे समर्पित कर सकते है!
अथः सिरी बाबू कथाय प्रथमः अध्याय: नमो नमः

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शनिवार, 14 नवंबर 2020

रंगोली के रंग


          ★ कहानी★

एकाएक चेहरे पर आयी श्वेत-श्याम अलका को हटाने  के लिए उन्होनो पास रखी बाल्टी में हाथ धोये ही थे की कहि से आकर एक बिल्ली ने उनकी बनाई रंगोली के रंगों  को बिखेर दिया। वह मुस्काई ओर बड़े ही भाव से बोल पड़ी...
"क्यों री मौसी...अब सासु माँ-ननदी सब गए जमाने के किस्से क्या बने तुम आकर उनकी याद दिलाने लगी !"

वह अकेली ही रहती थी किन्तु उस गांव का हरेक घर उनका परिवार था,वह आज से करीब 5 दशक पहले एक  17वर्षीय किशोरी बधु के रूप में आई थी। ऐसा क्या नही था जो उनकी वरात में न गया हो किन्तु उस वरात का किरीटमणि नही था ।
वह दूर थे अपनी कर्तव्यनिष्ठा के प्रति समर्पित 65 के युद्ध मे दुश्मन से लोहा लेते हुए, सेकड़ो दुश्मनो के काल बने हुए....मोर्चे-मोर्चे पर जैसे उन्ही का युद्ध कौशल कुलाचे भर रहा था ।

इधर वरायत की अगवानी पर तोरण मारा जा रहा था तो उधर वह बंकर पे बंकर मार रहे थे। ऐसा प्रतीत होता था जैसे कुँअर रणवीर आज अपने नाम को प्रदर्शित कर रहे हो .....उधर मण्डप में बैठी दुलहिन पास रखी फैंटा-कटार में प्रियतम प्रतिबिम्ब की कल्पनाओ में सँजो रही थी। विधि-विधान से पाणिग्रहण तो हुआ परन्तु रश्मो में बंधी नवविवाहिता को प्रियतम दरश न हुए ...!!

नवविवाहिता की अगवानी हुई पूरी हवेली में जैसे उत्सव था वही विवाहिता की मनमंदिर हवेली सजकर भी श्रंगार रहित थी...रिक्तता थी। उस अद्वतीय सौंदर्य को अपलक निहारने बाली दो आंखों की जो रण में जिसे निहारती वह  ओहदा शीघ्र ही रिक्त हो जाता और एकाएक ग्रेनेड आकर समीप ही गिरा की वह हिरन की तरह पहाड़ी से लुडककर गिरता-गिरता पड़ोसी के आंगन में जा फसा ।

विवाह की चौथी होने को थी कि दनदनाते कदमो से सेना का दस्ता आया और उनकी एकमात्र पहचान विशेष हेलमेट के साथ अपनी करून ध्वनि बजा श्रद्धांजलि दे ...अपने पीछे छोड़ एक लकड़ी का बक्सा जिसपर बड़े  शब्दो मे लिखा था 'सूबेदार रणवीर सिंह' !
घर मे करुंनक्रदन पसरा था तो नवविवाहिता मात्र मौन थी और सबसे बोल रही थी ...

"मुझसे बगेर पूछे कुँअर जी कहि नही जा सकते ,इस लोहे के टोप से क्या उनकी वीरगति मान लू !"

"में अपनी अंतिम सांस तक प्रतीक्षा करूँगी ओर वह भी सुहागन रहकर !!"

लोगो ने समझा कि सम्भवतः गहरा आघात लगा है पर नवविवाहिता अडिग थी,वह अपने प्रण न हटी ओर आज  भी लगभग आधा सैकड़ा आयु उपरांत माथे टिकुली मांग सिंदूर अनवरत सजता ।
कुछ समय बड़ो ने विरोध किया पर समय के साथ सबके लिए यह आम बात हो गयी ।

प्रणीता कंवर नाम था उनका....नाम जैसी ही अडिग। एक दम शांति और सुंदरता के जैसे समस्त अलंकार एकसाथ आकर रुक गए हो....रणवीर और प्रणीता के पाणिग्रहण माध्यम बने अश्व पर हर कोई सवार नही हो पाता था ,सिवाय प्रणीता के पिता पर कुँअर रणजीत ने खेल-खेल में अश्व को अपना मुरीद क्या किया उनके विवाह की वेदी के जैसे पहले मन्त्र बन गए ।

संन 65 युद्ध से लापता हुए कुँअर का कोई पता न चला और प्रणीता के इरादे दृण होते रहे ....समय अपनी गति से चलता रहा अब वह हर किसी के लिए सम्मान की जैसी मूर्ति थी। हवेली त्याग खपरैल की कुटी ओर एक स्यामा गाय के साथ दिनभर भजन। बच्चो को पढ़ाना,गांव भर के लोगो के दुख बाटना ही दिनचर्या थी ।

अभी दस दिन पूर्व ही तो उन्होंने अपने वैवाहिक अथवा प्रतीक्षित समय के 40 वे करवाचौथ को बगेर अन्न-जल के पूर्ण किया था और आज एक बिल्ली बार-बार उनकी रंगोली को बिखरा देती थी ।

"यह बिल्ली भी मेरा बार-बार काम बिगाड़ रही है जैसे किसी जन्म की दुश्मन हो!"

प्रणीता बड़बड़ा ही रही थी कि ......

"देवी सुनिए!"
"यशवीर सिंह जी की हवेली किधर है ?"

एक लगभग 60 वर्षीय प्रोढ़ किन्तु आभामय तेजश्वी चेहरे पर उनकी नजर पड़ते ही न जाने क्यों एक हुक सी उठी पर वह न चाहते हुए भी अपने स्वसुर का नाम सुनकर उन्होंने सिर पर अपनी पियरी साड़ी का पल्लू लेते हुए दवे स्वर में पूछ लिया ....!

"जी! उनकी हवेली में अब कोई नही है ,में उनके लड़के जो युद्ध मे लापता हो गए है उनकी पत्नी हु, कहिये आपकी की क्या सेवा कर सकती हूँ !"

प्रतिउत्तर सुन रणवीर की आंखों से अश्रु वह निकले और सजल नेत्रो से देखने की देरी थी कि ....अर्द्धस्वरूपा साक्षात हो गयी ।

"है नाथ !"
"युगों बाद आज बापीसी का ध्यान आया !"
बोलकर अचेत होगयी 

पड़ोस बाले एकत्रित हुए कुछ एकाध वयोवृद्ध बुजुर्गो ने पहिचाना तो गांवभर में ढोल तांसे बज उठे और प्रणीता के प्राणनाथ सहित पूरे गांव ने खण्डहर होती हवेली को दुलहिन की तरह दीपो से सजाकर इस चमत्कारिक वापिसी पर आनन्द गीत गाये !

आज दसको बाद अटारी पर रोनक थी जैसे युगों की प्रतीक्षा उपरांत पपीहे को स्वाति नक्षत्र का जल और जल को सुष्क हुए उपवन की चाह मूर्तिरूप हो उठी हो ।
दूर सघन में कोई संगीत प्रेमी मधुर स्वर में बांसुरी से आल्हादित हो रहा था तो प्रणीता कंवर का सुहाग आज पुनः नवेली दुल्हन की तरह सजा था .......!

प्रणीता कंवर की रंगोली दूर अंतरिक्ष मे रंग बिरंगी उल्कावृष्टि बनकर प्रणीता कंवर एवम कुँअर रणवीर के परिणय की साक्षी बन रही थी ।

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दीपोत्सव की बधाईया 🏜️🎡☀️⭐️🌟🌞🌞

       -जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
          चम्बल मुरैना मप्र

रविवार, 8 नवंबर 2020

बगल बाली सीट

 वह वांयी पंक्ति चौथी सीट थी जिसपर लड़का बैठे-बैठे प्रतीक्षा में अपनी डायरी के पेजो को तल्लीन्नता से लगातार कुछ लिख रहा था। क्योंकि बस चलने में समय था और वाकी सवारियों से उसे कोई मतलब नही था ।
एकाएक एक 5 फिट लम्बा भीनी-भीनी महक का झोंका उसके समक्ष नमूदार हुआ और उसको पता भी न लगा..!

"आपके साथ बाली सीट पर कोई है सर...अगर नही है तो मुझे विंडो सीट चाहिए!"

उसके पूछने का लहजा कुछ ऐसा था कि लड़के ने मूक रहकर ,एक ओर हटते हुए मूक सहमति में बगल खिसकते हुए  उसे बैठने को....बगेर सिर ऊंचा किये  जगह देकर डायरी में ही गुम रहा !!

करीब 20 मिनट उपरांत लड़के ने एक उबासी लेते हुए पुस्त से सिर टिकाते हुए आंखे बंद कर ली ...।
एकाएक गाड़ी स्टार्ट हुई और गियर गुर्राहट ने झपकी में व्यधान कर दिया ।

बाजू बैठी लड़की पर उचटती नजर डालते हुए देखा तो वह ओषत कद से कुछ छोटी एक ओषत रंग बाली जिसने ब्लू जींस के साथ फ्रॉक नुमा जॉर्जेट के साथ दोनो कंधों पर वी शेप दुपट्टा डाल रखा था जिसे भी ही महीन चतुराई के साथ पिनो से स्टेपल कर रखा था और इस यूनिक शैली का पहनावा आकर्षक लगा ।

"सर मुझे कुछ खाने को लाना है ...!"
कहते हुए लड़की ने वैनिटी से 200 की नॉट हाथों में चमकाई ओर वाहर निकलने को उद्धृत दिखी....लड़का खड़ा होकर एक ओर हट गया और उसने पहली बार 'स्लो लुइस' इत्र की चिरपरिचित महक महसूस की, वह अपने सेलफोन में शोशल मीडिया कुरेदने लगा और पुनः निमग्न होकर कभी-कभी मुश्कुरा भी रहा था कि खिड़की तरफ सिर से ऊपर कंगन युक्त हाथों में लैयज के साथ बिकानू मिक्सचर औऱ एप्पल फीज बोतल दिखी .....

"सर पकड़िए....मुझे कुछ और लेना है!"

न चाहते हुए भी हाथ मे वह तमाम खाने का सामान था और प्रतीक्षा थी कब हाथ खाली हो जाये!

कुछ ही मिनट में एक 500 ग्राम मिठाई लिए लड़की मुस्कुराती आई और यथास्थान बैठ गयी ।

"सर आप भी लीजिये न मुझे अच्छा लगेगा कि अकेले नही खाना पड़ेगा,देखिए #आपके लिए  मिठाई भी लाई हुँ !"

लड़के भँवे विचारमुद्रा में सिकुड़ती गयी कि इसे कैसे पता है कि मुझे मीठा पसंद है !
उसने मुस्कुराते हुए धन्यवाद कहकर पल्ला तो झाड़ लिया पर " आपको मीठा पसंद है" बार-बार  मनमशतिष्क में नाद करता रहा ।

लड़का पुनः झपकी लेने के प्रयास में पुस्त से सिर टिकाकर कर बन्द आंखों से गन्तव्य की कल्पना में बिचरन करता रहा और .....

"में ठेंगी हु लेकिन इतनी भी नही की मुझे किसी हेल्प चाहिए...मेरे घर मे सब pg है सिर्फ में ही नही "
"इसका मतलब यह नही की तुम मुझ पे सिमपेथी दिखाओ, अपनी औकात में रहो .."
"यह मत समझो कि मैने तुम्हे खुद को नापती हुई नजरो नही देखा है...रज्जू की एनिवर्सरी पर तुम मुझे वॉच कर रहे थे और  ठेंगी कहकर मुझे हिरासमेन्ट कर रहे हो !"

लड़के ने उसके द्वारा 'ठेंगी' शब्द बोलने के साथ ही उसकी आंखों में सागर की लहरों के समान उमड़ती लहरों को स्पष्ट देखा और उसी स्थिति में आंखों की झिरी से उसके चेहरों पर क्रोध,कातरता के ज्वार-भाटे देखता रहा ।
करीब 15 फोन उसकी फ़ोनवार्ता में उसने लड़के के प्रति के आधुनिक शैली की गालिया भी सुनी और फोन कटने के बाद उसे फ़्फ़कते भी देखा ।

वाहन अपनी तफतार से पथ को निरतर पास करता जा रहा था ओर लड़की अपनी वेदना अथवा हीनता को अश्रुपात करके कम किये जा रही थी ।

"सॉरी !फ़ॉर डिस्टरविंग यू सर..।"
"आपने कुछ खाया नही ..टेंसन न लीजिये आपको लूटने का मेरा कोई प्लान नही है !"

लड़का हंस पडा ओर लड़की के अभिनय बाली झूठी मुस्कान का जबाब एक पीस पेड़े का उठाकर दिया ।
 
बाते चलती रही लड़की पूछती रही और लड़का सनझिप्त उत्तर देता रहा ...इसी बीच गन्तव्य आया और ...! लड़की बेहद खूबसूरत डायरी के साथ पेन बढाते हुए बोला !

"ऑटोग्राफ प्लीज...!"
लड़का कुछ कहता उससेपहले ही लड़की बोल उठी !

"आप जिस संजीदगी से रिस्ते उकेरते है न उतनी ही गम्भीरता से स्वम को मेंटेन भी करते है, मेने आपके कुल 5-6 आर्टिकल पढ़े है और आपकी इसी संजीदगी के साथ कलम ओर कर्म की समानता की फैन हो गयी ।"

"जितेंद्र सर! में रहती तो रीवा में हूं but आपको बस में देख आश्चर्य चकित थी और आपकी संजीदगी से आपके साथ बैठने खाने के कुछ पल मिले !"

"कभी रीवा आइये, में उधर ही रहती हूं !"

मेरी रास्ते भर की विचार गुत्थी उसने एक पल में सुलझा कर "आभार" बोलते हुए डायरी-पेन लिया और ....एक विनय,आदेश,आग्रह मुझे समझ नही आया क्या था कि वह स्वम को 'अ'सफल न लिखने की बोलकर अंकभर सिमट गई ।
मेरे पहले किसी लिए हस्ताक्षर करते हाथ कम्पित थे और उसका नाम कुछ अस्पष्ट था ..
'सुनिधि मानव एकाएक भेंट!"

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जितेन्द्र सिंह तौमर '५२से'
कानपुर उप्र .

राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'

यथोचित प्रणाम।  जो शहीद हुये है उनकी...... 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में,  अंग्रेजों के खिलाफ बहराइच जिले में रेठ नदी के तट पर एक निर...