मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
राजेश
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
कुलदेवी योगेश्वरी माता
शनिवार, 7 दिसंबर 2019
गेंदालाल जी दीक्षित
मंगलवार, 3 दिसंबर 2019
भारत में कश्मीर की नींव
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
फेसबुक 1 साल पहले गजल
क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित जी
रविवार, 24 नवंबर 2019
सस्ते में
शनिवार, 5 अक्टूबर 2019
मातृ शक्ति
वो औरत है जिसने हमको, दुनिया में लाने का काम किया,
वो औरत ही है जिसने हमको, भाई होने का सौभाग्य दिया!
भूखे पेट सो गयी माता, पर हमको तो भर पेट खिलाया
रात रात भर जागी मां, पर लोरी गा गा कर हमें सुलाया!
इस पूज्यनीय औरत ने ही, सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन किया
वो ना होती तो कुछ ना होता, इस दुनिया पर अहसान किया !
ये औरत ही किसी की भगिनी है,औरत ही किसी की पत्नी है
ये औरत ही मां की ममता है, ये औरत ही किसी की बेटी है !
ममता की मूरत इस नारी ने, हमको जीवन का संदेश दिया
नफ़रत, गुलामी,जुल्मो सितम, ना सहने का अनुदेश दिया !
कुछ पापी, दुष्ट, दुराचारी, इसकी महिमा को भूल गए
उसके सम्मान को तार तार कर, अपनी मर्यादा भूल गए!
किसी ने इसकी अस्मत लूटी,किसी ने जला कर मार दिया
कुछ पापी मां बापों ने, इसे बस्तु समझकर बेच दिया !
इस उपकार के बदले में ,औरत को तो कुछ भी न मिला
भूखे रहना, खून पिलाना, इस ममता को कैसा सिला मिला ..!!
मंगलवार, 24 सितंबर 2019
हाइफा-युद्ध पर विशेष
#हाइफायुद्ध
( इजराइल में भारतीयो का युद्ध)
पराजय का इतिहास लिखने वाले इतिहासकारों ने बड़ी सफाई से भारतीय योद्धाओं की अकल्पनीय विजयों को इतिहास के पन्नों पर दर्ज नहीं होने दिया। शारीरिक तौर पर मरने के बाद जी उठने वाले देश इजरायल की आजादी के संघर्ष को जब हम देखेंगे, तब हम पाएंगे कि यहूदियों को उनके ‘ईश्वर के प्यारे राष्ट्र‘ का पहला हिस्सा भारतीय योद्धाओं ने जीतकर दिया था। वर्ष 1918 में हाइफा के युद्ध में भारत के अनेक योद्धाओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। समुद्र तटीय शहर हाइफा की मुक्ति से ही आधुनिक इजरायल के निर्माण की नींव पड़ी थी। इसलिए हाइफा युद्ध में भारतीय सैनिकों के प्राणोत्सर्ग को यहूदी आज भी स्मरण करते हैं।
इजरायल की सरकार आज तक हाइफा, यरुशलम, रामलेह और ख्यात के समुद्री तटों पर बनी 900 भारतीय सैनिकों की समाधियों की अच्छी तरह देखरेख करती है। इजरायल के बच्चों को इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में भारतीय सैनिकों के शौर्य और पराक्रम की कहानियाँ पढ़ाई जाती हैं। प्रत्येक वर्ष 23 सितंबर को भारतीय योद्धाओं को सम्मान देने के लिए हाइफा के महापौर, इजरायल की जनता और भारतीय दूतावास के लोग एकत्र होकर हाइफा दिवस मनाते हैं। भारतीय सेना भी 23 सितंबर को हाइफा दिवस मनाती है। अब हम समझ सकते हैं कि भारत और इजरायल के रिश्तों में सार्वजनिक दूरी के बाद भी जो गर्माहट बनी रही, वह भारतीय सैनिकों के रक्त की गर्मी से है।
वह वर्ष 1918 था......!
इसी वर्ष नवंबर में प्रथम विश्व युद्ध खत्म हुआ था। पूरी दुनिया में बारूद की गंद फ़ैल चुकी थी। जंग की आग में पूरा विश्व झुलस पड़ा था। कोई भी देश एक-दूसरे पर विश्वास करने को तैयार नहीं था। जंग खत्म होने के बाद भी माहौल सुधरने में भी बहुत लंबा था।
ऐसे में फिलिस्तीन से सटे समुद्र किनारे में निवासी हाइफा शहर पर जर्मन और तुर्की सेना का कब्जा था। अपने रेल नेटवर्क और बंदरगाह की वजह से हाइफा का रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण स्थान था, जो युद्ध के लिए सामान भेजने के काम भी आता था ।
तुर्क साम्राज्य में बहाई समुदाय के आध्यात्मिक गुरु अब्दुल बहा के समर्थक तेजी से बढ़ रहे थे और इसी कारण से उनकी जान पर खतरा बन गया था। सेना ने उन्हें उसी वर्ष गिरफ्तार कर लिया। हाइफा के रहने वाले और बहाई समुदाय के लोग अब्दुलबहा को इसी आंधार बना कर रिहा करने की योजना बना रहे थे ।
भारत की आजादी से पहले एक बड़ी संख्या में भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेना के हिस्से थे। हाइफा को तुर्की सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी ब्रिटिश सेना की थी। इस युद्ध को अंजाम देना दूभर था क्योंकि दुश्मन ज्यादा ताकतवर था और युद्ध के मुलबेस आधार सैनिक एवम् गोलाबारुद का अभाव था ।
यहाँ तुर्की, जर्मनी और ऑस्ट्रिया की संयुक्त सेना की चौकियाँ थी। सैनिकों के पास बंदूक, बंदूक, गोला-बारूद किसी चीज की कमी नहीं थी। ब्रिटिश सेना के लिए यह जंग किसी चुनौती से कम नहीं थी। ब्रिटिश अधिकारियों को सैनिकों की जरूरत थी। तब तक भारत की 3 रियासतों मैसूर, जोधपुर और हैदराबाद से मदद की अपील की गई।रियासतों ने इस अपील को स्वीकार कर लिया और अपने लगभग 150,00 सैनिक संगठन को भेज दिया।
हैदराबाद रियासत के सैनिक मुस्लिम थे, इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें तुर्की के खलीफा युद्ध में भाग लेने से रोक दिया। निजाम के सैनिकों को युद्ध बंदियों के प्रबंधन और देखरेख का कार्य सौंपा गया। जबकि मैसूर और जोधपुर की राजधानी सैन्य टुकडिय़ों को मिलाकर एक विशेष इकाई बनाई गई थी ।
वहां सेना के पास भले ही झंडा ब्रितानी था। उनकी वर्दी 'ब्रिट्रेन की थी लेकिन वह सैनिक भारत के थे। उनके अंदर जो जज्बा था वह भारतीय था। वह नहीं जानता था कि यह जंग से ब्रिटिश को क्या फायदा होगा। वह बस मजबूर लोगों को बेकार की गुलामी से रिहा करवाना चाहते थे ।
भारतीय सैनिकों के पीछे कुछ संख्या अंग्रेजों के सैनिकों की भी थी। ब्रिगेडियर जनरल एडीए किंग को दुश्मन सेना के बारे में जानकारी मिली। उन्हें पता था कि यदि सेना अंदर गई तो उनका लौटने वाला नाम नामुमकिन है ... इसलिए उन्होंने सेना को जंग न लड़ने के लिए कहा।अंग्रेजी सैना पीछे हट गया। पीछे हटने का मौका भारतीय सैनिकों के पास भी था, किन्तु मेजर दलपत सिंह शेखावत की अगुवाई में कोई भी सैनिक अपने फर्ज से पीछे नहीं हटना चाहता था। सवाल यह था कि अगर आज पीछे हटे तो अपने देश, अपनी रियासत और परिवार को क्या मुंह दिखाएंगे?
इसलिए 1500 भारतीयों ने हाइफा शहर में दाखिल होना स्वीकार किया....!
भारतीय सैनिक घोड़ों पर सवार थे। उनके पास लड़ने के लिए केवल भाले और तलवारबाज थे। अंग्रेज सरकार ने पैदल चलने वाले कुछ सैनिकों को बन्दुके भी थमा दीं। भारतीय सेना के सैनिकों को हाईफा में मौजूद तुर्की सेना और घुड़सवार कार्मेल पर तैनात तुर्की तोपखाने को तहस-नहस कर जमीदोज करना था। जोधपुर लांसर्स ने अपने सेनापति मेजर ठाकुर दलपत सिंह शेखावत के नेतृत्व में सबसे पहले शहर में कदम रखा...!
15 वीं (इम्पीरियल सर्विस) सेक्टर ब्रिगेड ने सुबह 5 बजे हाईफा की ओर बढ़ना शुरू किया और 10 बजे तक शहर के मुख्य द्वार पर पहुंच गए। इसके बाद सेना ने हाइफा पर धवा बोल दिया। इससे पहले कि तुर्की सैनिक अचानक इस हमले से सावधान हो पाते, भारतीय सैनिकों ने बंदूकों से गोलियां बरसाना शुरू कर दी।
जोधपुर के सैनिक घुड़सवार कार्मेल पर भालों से हमला कर रहे थे। वहाँ मैसूर के सैनिकों ने पर्वत के उत्तरी ओर से हमला किया। इसके बाद की तेजी से शहर में दाखिल हुए और एक-एक कर तुर्की सैनिकों को भाले से मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया।
सेना के कमांडर कर्नल ठाकुर दलपत सिंह लड़ाई की शुरुआत में ही मारे गए। इसके बाद उनके डिप्टी बहादुर अमन सिंह जोधा आगे आए। शुरुआत में भले ही तुर्की सैनिक नहीं संभल पाए पर बाद में उन्होंने मोर्चा संभाला और मशीनगन से निरन्तर करके भीषण गोलीबारी प्रारम्भ कर दी ...!
यह दुनिया के इतिहास में यह पहला घुसपैठ सेना का महान अभियान था। घोड़े घायल हो रहे थे पर रूक नहीं रहे थे। भारतीय सैनिकों पर चारों ओर से गोलीबारी शुरू हो गई। भारतीय सैनिक एक-एक कर मरते जा रहे थे और मारते भी जा रहे थे..!
मैसूर लांसर्स की एक स्क्वाड्रन 'शेरवुड रेंजर्स' ने दक्षिण की ओर से घुड़सवार कार्मल पर चढ़ाई की। सैनिकों ने कार्मल की ढलान पर दो नौसैनिक तोपों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद के सैनिकों ने तुर्की सेना के सैनिकों से ही उन पर हमला शुरू कर दिया। उनके दुश्मन यह देख कर हैरान हो गए थे कि आखिर कैसे भारतीय सैनिकों ने अपने ही हथियारों से उन्हें मारना शुरु कर दिया था..!
'बी' बैटरी एचएसी के समर्थन से जोधपुर लांसर्स ने दोपहर 2 बजे के बाद शहर के बाहर से अपने बाकी सैनिकों को बुलाया। दोपहर 3 बजे तक सैनिकों ने तुर्की सेना की सबसे अधिक सेना को नष्ट कर दिया और बाकी पर कब्जा कर लिया। लगभग 4 बजे तक हाइफा शहर तुर्की सेना की गिरफ्त से आजाद हो चुका था !
हाइफा युद्ध में 900 भारतीय सैनिकों ने अपनी कुर्बानी दी। भारतीय शूरवीरों ने जर्मन-तुर्की सेना के 700 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया। इसके अलावा 17 तोपें, 11 मशीनगन और हजारों की संख्या में जिंदा कारतूस भी रखे गए हैं। साहस दिखाने वाले ठाकुर दलपत सिंह को ब्रिटिश हुकूमत ने मरणोपरांत मिलिटरी क्रॉस से सम्मानित किया। उनके अलावा कैप्टन अनूप सिंह और सेकैन्ड लेफ्टीनेंट सागत सिंह को भी मिलिटरी क्रॉस पदक दिया गया। ब्रिटिश हुकूमत ने कैप्टन बादल अमन सिंह जोधा और दारार जोर सिंह को भी उनकी बहादुरी के लिए भारतीय एयरलाइन ऑफ मेरिट पदक दिया।
हाइफा, यरुशलम, रामलेह और खटिक के बीच इजराइल के सात शहरों में इस युद्ध से जुड़े कुछ अवशेष आज भी सही सलामत रखे हुए हैं। इजराइल की जनता हर साल 23 सितंबर को 'हाईफा दिवस ' मनाती है। वहाँ के स्कूलों में हाइफ़ा युद्ध और भारतीय सैनिकों के शौर्य की गाथा पढ़ाई जाती है।
हाइफा युद्ध भारत के सैनिकों द्वारा लड़ा गया वह युद्ध था जिसे आज शायद कोई नहीं जानता होगा। इतिहास के पन्नों में यह कहानी न जाने कितने सालों से धुल खा रही है। यह युद्ध भले ही ब्रिटिश सेना ने लड़ा था लेकिन इसमें जीत भारतीय सैनिकों ने ही दिलाई थी। उन्होंने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि आखिर भारत के सैनिक कितने फौलादी हैं। यह योद्धिक इतिहास का वह युद्ध था जब मात्र हजार लगभग योद्धाओ ने तलवारो के बल पर बहुआयुधि लाखो की सेना को पराजित कर आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया था ।
इस अद्भुत और विस्मयकारी युद्ध की स्मरण स्वरूप "हाइफा विजय स्मारक" स्वरूप तीन सेनिको की प्रतिमा आज भी उस पराक्रम के प्रति इजराइल की कृतज्ञता दर्शाती है ।
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जितेंद्र सिंह तोमर '५२से'
24/09/2019
चम्बल,मुरैना मप्र
सोमवार, 16 सितंबर 2019
गाँव चलिए
#गाँव_चलिए
मत समझो पत्थरों की दुनिया को सब कुछ,
गर तुमको देखनी है ज़िंदगी, तो गाँव चलिए !
मिटा डाला है जो क़ुदरत का सामान तुमने,
गर तुमको देखना है फिर से, तो गाँव चलिए !
तुम्हें कैसे रास आती हैं ये शहर की हवाएं,
गर सांस लेना है तुम्हें चैन की, तो गाँव चलिए !
क्यों घुमते फिरते हो तुम न जाने कहाँ कहाँ,
है देखना कुदरत का खज़ाना, तो गाँव चलिए !
न जानता है कोई इधर कि कोंन है पड़ोस में,
अगर देखने हैं दिलों के रिश्ते, तो गाँव चलिए !
सूरज की रौशनी भी न देख पाते कुछ लोग तो,
गर देखना है ऊषा का आँचल, तो गाँव चलिए !
यूं किस तरह से जीते हो इस शोरगुल में यारो,
गर सुननी है कूक कोकिल की, तो गाँव चलिए !
मिटा डाली है गरिमा ही तुमने हर त्यौहार की
गर तुमको देखने हैं ढंग असली, तो गाँव चलिए !
सोने चांदी से पेट भरता नहीं किसी का भी दोस्त,
गर तुमको देखना है अन्नदाता, तो गाँव चलिए !!!
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बुधवार, 3 जुलाई 2019
सहालग (2 हास्य्)
सहालग की विदाई
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देवोत्थानी एकादशी से प्रारम्भ हुआ कानपकड़ उठाबैठक लगाने बाला विवाहकप कुम्भ देवशयनी एकादशी का फायनल को आया और सपनो की दुनिया का विचित्र संयोग अपने अस्ताचल को हो आया। किन्तु कुछ कुँवारे-कुंवारियों के लिए यह 'सीजन' भी सुखा निकल गया।देवशयनी एकादशी क्या आई जिन्दगी 'जैठालाल' हो गयी और आश करते करते पता न चला की कब बालो में खिझाव लगने लगा....कब विवाह की एक्सपायरी डेट निकल जाए !
पूरी सोमवारी ब्रत की परिधि 2πr होते-होते πrवर्ग होगयी,आशाओ का घनत्व नवरात्रों के क्षेत्रफल में #टेसू बना गया और मीडियम वेव की फ्रीक्वेंसी फिर से सॉर्ट वेव पर FM होकर बेसुरी हो गयी ।
भोझियो की जी हजुरी करते करते देवर का घेवर हो गया पर क्या मजाल की भौजी ने छुटकी केलिए छुटकू की बात चलाई हो....!
इस सहालग में अनगिनत लोगो के भोंपे बज गए किन्तु अनगिनत लोगो की पीपनी भी न बज पायी,बजे भी कैसे बैमानो ने सहालग देवता महादेव और सहालग देवी नवदुर्गा के व्रतो में चाट-भल्ले जो खाये थे ।
कितनी मुहब्बतों के जज्बातों को लोंडो ने अपनी खुन्दक मिटाने के लिए 'अपनी बाली परायी' के विवाह में आँखों के साथ हाथो से खूब पानी परोसा। 'मुहब्बत' भी "अब तुम मुझे भूलने की कोशिस करना" बोलकर किसी और की साँझ तक बाट जोहने के लिए चौपाया गाडी में बेठ कर गाँवबाले 'जिगरी' को 'मामा' बनाने निकल गयी ...!!
वहीँ कुछ लोंडे कॉलेज की मिस को मिस करके नया क्रस आइटम ले आये। मिस अपने छोना बाबू के "थाना थाया" वाक्य को बहुत मिस कर रही हे और 'टिकटोक' पर दिल्फ़टे गानो,फेसबुक पर गालिव चच्ची की तरह अपडेट्स हो रही हे ।
टेंट बालो के डोंगे सुष्क होने के साथ-साथ डीजे बालो के डायस भी सुने हो गए....और तो और 24 घण्टे शोशल मिडिया पर भटकती लोंडो की रूहे अब 42 घण्टे ससुराल से मिली चायना आइटम की रिपेयरिंग में व्यस्त हो गए हे ।
कोई कोई मिस अपने फिस्स हुई मुहब्बत को हलीमुन की फोटो व्हाट्सऐप करके मुहब्बतहत्या को प्रेरित कर रही हे तो कुछ लोंडे अभी से फैलाउलि के चक्कर में परदेस को निकल गए। उन्हें डर हे की दहेज़ में मिली हुई वाशिंग मशीन का पहला शुभारम्भ उन्ही के करकमलो न करा दिया जाए...!
जिन जोड़ो के विवाह से पूर्व मधुरमण्डप के लिए सीने छप्पन हुआ करते थे वह खुद को मोदी के द्वारा हिंन्दुत्व के नाम ठगे हुए महसूस कर रहे हे।मायके बालो के लिए जो बेटिया गाय होती थी वही ससुराल के चार रोज में गोपी बहु से नजर की डायन में अपडेट हो गयी।
जिन लड़कियो को भोंपा से पहले कुल्दुड़ में एक केयरिंग,हेंडसम,डेशिंग और एक बेहतर पार्टनर दीखता था ...उन्हें भी डोसा में मख्खी निकलने का अहसास हो रहा हे....असल में अपनी-हैंडग्रेनेड के सेफ्टी पिन निकालने का अहसास जब जब होता हे तब तब रिंग सेरेमनी को गरियाने की,कोसने की बड़ी जोर से इच्छा होती हे ।
सहालगपर्व की अपार तपस्या में तल्लीन हुए जोड़े जब एक दूसरे को भोर में देखते हे तो सोचते हे की काश !कुछ और प्रतीक्षा कर ली होती तो शायद यह जो काले जामुन को सफेद पेंट करके रसगुल्ला बताकर उनके पल्ले बाँध दिया हे वह शायद रसमलाई के वर्जन में मिल सकता था !
सहालग बाद असली मुर्दायि तो रुठने में पीएचडी सर्टिफिकेट प्राप्त फूफा और जीजो के चेहरे पे देखा जाता हे। जिन्हें शादी बाद कम से कम अपने असितित्व के होने का बोध विवाहो में ही मिलता हे।दूल्हे के सहवाला कम 35 ₹ मासिक टेरिफ पैक साथी और दुल्हन की ब्लॅककेट कमांडो सहेलियों की अजब दुनिया हे। सहवाले वरात् में 35 के टेरिफ से 350 के अनलिमिटेड रिचार्ज की भ्रान्ति में जीते हे और दूल्हे का साथ देने की ओट में काली,पिली,हरी,नीली सुट बालियों में कौन सही सूट करती हे की जुगाड़ में दूल्हे के फेंटा-पनरस को बार ठीक करते हे ।
दुल्हन की शेडो कम कमांडो सहेलियों का अलग नखरा हे,बो चाये एक नजर में किसी सहबाले पर फ़िदा हो गयी लेकिन क्या मजाल की फेरो के बख्त एक फूल बहिन के देवर को फेंककर 'फूल' बनाये....वहा तो इशारो ही इशारो मोबाईल नम्बर फॉरवर्ड कर दिए जाते हे ।
समधियों में परस्पर सामने बाले को लोभी और धनलोलुप शिद्ध करने की जो होड़ होती हे उसका अगर कोई कप होता तो समधनो के गले में टांग दिया जाता।और खुद के प्रोडक्ट को ISO9002 सर्टिफाइड तो समधी के प्रोडक्ट को चायना आइटम की मुहरबन्दी से नवाज देते ।
विवाह पढ़ते पण्डित पुरोहितो को भी जाता हुआ साहलग अखर रहा है ....अब उनको कोण बार-बार दक्षिणा के नाम पर सुलभ धन देगा ...!!कुछ पण्डित जी तो हजारो विवाह पढ़कर भी खुद के विवाह में दूल्हा न बन पाने के मलाल में सुखकर काँटा हुए जा रहे हे। खुद भोंपा न रच पाने के लिए कमाऊ पंडिताई को ही गरिया रहे हे। काश एक पण्डिताइन मिल जाती तो अपनी भी जिन्दगी लीलावती कलावती के नाज नखरों में निकल जाती ..!
समाचार पत्र बाले इकलौते ऐसे दिव्य मनुष्य हे जो सहालग की सप्लीमेंट्री में फ़ैल हुए कुवारों के सीने पर सव्र की सिला यह लिखकर रखते हे की "विवाह के 2 माह बाद विवाहिता प्रेमी संग फुर्र हो गयी!"
कभी-कभी तो पत्नी पूजन करते पतियो की फोटो भी सहालग में सूखे हुए बबूलों को काँटो में आगरा के पेठे लगने का सुखद आनन्द देती हे ।
कल परसो देवशयनी एकादशी आ जायेगी,एक और ग्यारह होते-होते युवक-युवतियों को रिवर्स स्विंग करके आती डिलिवरी कोट &बोल्ड कर जाएगी! और कुछ कुँवारे-कुंवारियों के अरमान भी हरे होते होते सुख जाएंगे। वह फिर शिद्दत से जुट जाएंगे श्रवण माष के सोमवारों में वर और कुवार के नवरात्रो में बधु प्राप्ति के अखण्ड तप में .....किन्तु स्मरण रहे चाट-भल्ले, दशहरा का दिव्य पेय आपकी तपस्या में नोटबन्दी बाद GST न लगा जाये ......और आगामी सहालग कुम्भ फिर से बगैर पर्व लिए न निकल जाए ....!!
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जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
शनिवार, 22 जून 2019
गजल
लगता नही है दिल मेरा उजड़े दयार मे,
किसकी बनी है आलमे नापायदार मे।
उम्रे दराज मांग कर लाए थे चार दिन,
दो आरजू मे कट गए दो इंतजार मे।
बुलबुल को पासबां से न सैयाद से गिला,
किस्मत मे कैद लिक्खी थी फसले बहार मे।
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहां है दिले दागदार मे।
एक शाखे गुल पै बैठ के बुलबुल है शादमा,
कांटे बिछा दिए हैं दिले लालाजार मे।
दिन जिंदगी के खत्म हुए शाम हो गई,
फैला के पांव सोएंगे कंजे मजार मे।
कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए,
दो गज जमीन भी न मिली कू ए यार मे।
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बहादुर शाह जफर
डायरी भाग 1
★यादो के कद★
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कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता हे की आपकी यादे आपसे कही आगे चलती हे।आप जिन्हें बारम्बार भूलने का प्रयास करते हे,वह आपके समक्ष आपसे अपना कद बड़ा करते हुए दिख जाती हे। और आप गहरे विसाद की स्तिथि से दो-चार करते हुए स्वम को पाते हे,किन्तु आपकी अविजित पराजय का मूल होती हे वह गलतिया जिन्हें आप बार-बार दोहराते जाते हे ।
मेने भी कुछ गलतिया की,उनको डायरी में अंकित भी किया किन्तु अंकन उपरांत भी चुके होती रही! डेस्टिनी हे की आपका पीछा नहीं छोडती, वह आपके साथ साये की तरह साथ चलती हे ।
एक गलती हुई थी साइंस कॉलेज के दिनों में जिसका भरपाई सम्भवतः कभी नहीं होगी,वहा करियर की ऊँची उड़ान 'धर्म निर्वहन' के चलते स्वाहा हो गयी ।
उसका मेरा सम्बन्ध ही क्या था,वह तो बणिक थी न...! सम्भवतः मेरी सम्बोधन में अपनत्व बनाने की भावनाये और उसके प्रति निर्वहन की हटता ही थी की एक क्लासमेट के साथ हुए अभद्र व्यवहार पर वर्षो से सुप्त हुआ 'ठाकुर' जाग गया और ...और डिग्री से अंतिम कुछ पलो पूर्व सिर में ६टाँके थे........जगह-जगह से कपड़े फ़टे थे किन्तु किये पर तनिक भी मलाल न था ...!सहयोगी मित्रो पर गर्व था....।
हम अपने नजदीकी जनपदों से कुल 18 थे 6 लडकिया .और 12 लड़के, एक परिवार सा ही परिवार वहां भी था।..परस्पर कभी वह भाव न था जो उम्र के उस पड़ाव में प्रायः होता हे।हम एक विद्यालय परिवार के 18 भाई-बहिनो की तरह जो टिपिंन, केन्टीन,ग्रुप स्टडी से लेकर लेव के उस सुर्ख प्रकाश में भी साथ ही रहते थे ।
एक अजीव सा रिस्ता था परस्पर लड़ने से लेकर पढ़ने तक का ,और उन्हें अपना उत्तरदायित्व समझ छात्रावास तक छोड़ने का !
बहुत ही भोली सी थी वह "बड़की दी" जो आयु में मात्र 3 माह बड़ी थी किन्तु 17 लोगो की दीदी नहीं दादी की तरह व्यवहार करती थी।सबको प्रिप्रेसन से लेकर प्रजेंटेसन और खाने से लेकर जागने तक के लिए फटकार दिया करती थी ...!उस के द्वारा सिर में हल्की चपत लगाने का स्नेह उस समय कितना स्नेहिल हुआ करता था। वह किसी के हल्के बीमार होने पर एक प्रशिक्षित नर्स बन जाती थी फिर चाहे सुभह का कॉलेज मिस हो जाए अथवा कालांस ...उन्हें चिंता थी तो अपने अनुज-अनुजाओ की...!
करुणा नाम था उन दीदी का और यथा नाम तथो गुणः की सूक्ति जैसा स्वभाव ...!
उस दिन वह हम सभी से कुछ सो मिटर की दुरी पर रह गयी....कॉलेज गेट के बाहर स्टेशनरी की दूकान से कुछ नोट्स के लिए रजिस्टर्स जो लेने थे ....किन्तु उस उनके कन्धों से पहली बार मर्यादा का पट नहीं था! वह वस किसी निर्जीव शरीर की भाँती थके-हारे,निष्प्राण कदमो से आती दिखी....हम सब हत प्रभ थे कि सदा समय से आगे चलने बाली करुणा जीजी आज इतनी मन्थर कैसे हो गयी ?
शेलजा के झिझोड़ने पर जेसे करुणा जीजी का कृदन और भावुकता का ठाठे मारता सागर फुट पड़ा....वह जिसे देखती वस रोती और बहुत जोर से रोटी,जेसे कोई बड़ा रहष्य उनकी आत्मा से निकलना चाहता हो किन्तु उसे अंदर ही अंदर पी जाने का असफल प्रयास कर रही हो ...और एक साथ अठारह भाई-बहिनो का दामन अश्रुओं से तर हो गया....उस दिन की कॉलेज का किसी को ध्यान ही कब था,जब कॉलेज का समय बताने बाली दीदी ही कस्ट में थी....!शैलजा,कविता,रोहिणी,अमन, हरिओम सब बार-बार पूछ रहे थे किन्तु मेरी निगाये दीदी का दुपट्टा खोज रही थी। पूर्वाभाष हो रहा था की,वह दुपट्टा सम्भवत किसी के मलिन हाथो से मैला होकर बंधू के धर्म निर्वहन को पुकार रहा था। उस दुपट्टे का ऋण था जो कितनी ही बार गर्म माथे की पट्टी बन जाया करता था..! उस दुपट्टे का ऋण था जो कितनी बार मेरे माथे का दर्द छीन लिया करता था। उस दुपट्टे का ऋण था जो बिन बहन हुए भी निस्वार्थ अनुज को दुलारता था ...!
आज किसी ने उसी दामन को मलिन करने का प्रयास किया था और उसी भ्रात धर्म निर्वहन में बो हो गया जिसके पूर्वाभाष से करुणा दीदी सिर्फ कृंदन के हलाहल को पि रही थी ।
अमन बो लड़का था जो नजदीकी जनपद का ना होकर बेहद नजदीकी था,उसके शब्द "पवन भिया में जनता हु उस कमीन को जिसने अपनी दीदी को रुलाया हे,भइओ आज आप 12 नहीं 13 भाई हे,चलो सालो के हाथ ही काट देते हे !"
शब्द नहीं बो तलाश थी जिसके लिए हम सब पिछले 2 घण्टो में 2 हजार बार मरे थे और जेसे दीदी की 'सप्तमसुधि' जागृत हुई ।
"छुटकू तू कुछ मत करना,भला तेरे साथ तेरे 18 भाई बहिनो का उत्तरदायित्व भी हे। उन्हें कोन सम्भाल पायेगा!मत जा मेरे वीर !"
जब युद्ध अथवा लड़ाई आवश्यकता बन जाए तब दीदी तब मुँह फेरना,अपनी कुल मर्यादा के बिपरीत हे।यंहा तो धर्म की बात हे,में सुप्त सैनिक नहीं हूँ दीदी.....जितने आपके आसु इस केम्पस में गिरे हे मुझे उतना ही उसका लहू गिराना हे ताकि फिर से किसी करुणा दी की तरफ कोई 'कमीन' नजर भर न देखे ।
फिर बो हुआ जो अपनी मिटटी में रोज होता हे,दोनों तरफ से लात,घूंसे,पत्थर,ब्रेंच के पाये और उसकी निम्न जात को दर्शाते मेरे बीहड़िया शब्दों को किसी ने नोकिया 6600 पर रिकार्ड किया ।
ये कोई फ़िल्मी सीन नहीं जो में बच जाता सर में 6 टाँके,पीठ पे अनगिनत नील निशाँ मुझे मेरे धर्म निर्वहन में उत्तीर्नांक दे रहे थे जबकि मलिंमुखी धूर्त के पैर को तोड़ चुका था....उसकी फ़टी हुई हथेली और कन्धे से टपकता लहू मुझे असीम सुख दे रहा था। में नहीं समझता उस दिन रक्त को देख दर्द क्यों न महसूस हो रहा था,महसूस तो मात्र उसकी दर्द भरी चीखो में एक लक्ष्यवेदन को कर रहा था ।।
केम्पस से कुछ ही फलांग पर रहने बाले पुलिस जवानो ने बूथ पे बिठा क्रास केस पंजीबद्ध किया,जिसके कुछ समय बाद ही स्वम प्रिंसिपल महोदया ने ...मुझे पुत्रवत स्नेह करती थी ..आवश्यक जमानती पत्र दाखिल कराये ..!
किन्तु नियति को कुछ और मंजूर था .....उसे तो मेरी असफलता की दूसरी कहानी लिखनी थी ....एक कॉलेज टॉपर और उसके सहयोगियों की धर्मनिर्वहन संगत लड़ाई पर 'एस्ट्रोसिटी एक्ट' के मामला पंजीबद्ध हुआ। शायद जीवन में पहली बार भारतीय दण्ड प्रक्रिया में निहित लचक को इतनी नजदीकी से देखा था और सुदूर बीहड़ो में बसी चम्बल मिटटी की सेकड़ो दास्ताने चलचित्र हो चुकी थी ।
पहले कॉलेज एक्जाम्स छूटे फिर छूटा सफल होने का स्वर्णिम सपना जिसमे माँ,पिता,भाई और सम्बन्धियो के सेकड़ो सपने निहित थे।कही न कहि मेरे एक के कारण 18 परिवारो का सपना एक ही दिन में कांच किरचों की तरह बिखर गया।मेरे कॉलेज छूटने के साथ उन सभी कॉलेज छोडा जो कही न कहि उनकी भावनाओ के वस हुआ ।
इस जीवन का वह सबसे बड़ा अपराधबोध था जिसके कारण सेकड़ो लोगो की आश पर मुझ दम्भी ने एक ही क्षण में तुषारापात कर दिया ।
करुणा दीदी अनुजा बहिने जब भी मिलती हे न जाने क्यों मुझे गर्वित नजरो से देखती हे।जबकि में स्वम को उन सबका अपराधी आज भी मानता हूँ ...!
18 बहिन-भाइयो का साझा परिवार कॉलेज पहुचा तो अलग-अलग था किन्तु घर साथ-साथ आया
में आज तक उन 18 परिवारो से नहीं मिला क्योंकि मुझे स्वम से घृणा होने जा रही हे जबकि उन 18 माँ ओ की नजर में 'पवनप्रताप' आज भी एक हीरो हे और उनका पूत हे ।
परछाइयों के कद बढ़ते गए और पवनप्रताप,जितेन्द्र हो गए ......
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जितेन्द्र सिंह तोमर '५२से'
राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'
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