===चम्बल एक सिंह अवलोकन===
भाग -१०
डाकू पुतली बाई
चम्बल के शापित गारो में जहां मर्यादाओ की एक लकीर खींच कर बागियो के नाम रोविन हुड की तरह याद किये गए तो कभी अपनो के रक्त तिलक किये मस्तक बहु दृष्टि गत हुए ।किन्तु जिस दुसाहसिक जीवन मे सिर्फ पुरुष प्रधानता की नींव रखने मान सिंह जैसे न्यायकारी बागी हुए वही कुछ दुर्दांत डाकू भी हुए ।
जहां मोछ पर ताव आवाज में गर्विता ओर बहिन बेटी के सम्मान को सर्वोपरि रखते हुए महिला निषेधिता की सीमाएं बंधी तो कभी टूटी भी ।
चम्बल की शांत वादियो में जहां हरियाली है ...देशभक्तिहे..मर मिटने का जज्बा लिए गवरु छै फूटे जवान अत्याचारो के विरुद्ध न्याय करने के लिए कारतूसों के बिलडोरिया बांध गारो में कूदे तो कभी घुघरू के पटटके बांध सबका अपना नृत्य से मन मोहती खूबसूरत बलाए भी चम्बल की वादियों में सनसनी बनी रही ।
ऐसी एक कहानी है चम्बल की प्रथम दस्यु सुनदरि #पुतलीबाई उर्फ गौहरबानो की जो कोमलांगी कभी घुंघुरू बांध रँगमंचो की सितारा हुआ करती थी फिर क्यों कारतूसों के पटे बांध बीहड़ो में जा पहुची ,आखिर क्या बजह थी पुतली के घुंघरू से बन्दूक तक के सफरनामे की ...?घुंघरू झनक से बन्दूक की धमक तक के सफरनामे की दासता सुनाता है तहसील अम्बाह जिला मुरैना का बरबाई गांव ..
ये चंबल के बीहड़ों में बीच बसा हुआ एक और गांव है। गांव में घुसते ही आपको एक पार्क दिखाई देगा। और गांव में घुसते ही आप को कुछ ऐसा दिखाई देगा जो आपने सोचा भी नहीं होगा। पुतलीबाई की तलाश करने गांव पहुचे लोगों को पहले दिखता है राम प्रसाद बिस्मिल पार्क ओर उनकी स्मिर्ति बना हुआ मन्दिर ... बरबाई और बिस्मिल एक करीब का रिश्ता है। ये बिस्मिल का गांव है। रामप्रसाद बिस्मिल का गांव। सरफरोशी की तमन्ना जैसा देशभक्ति का तराना लिखने और इसी गाते गाते फांसी पर चढ़ जाने वाली बिस्मिल का यही पुश्तैनी गांव है।
(बिस्मिल जी पहले लेख लिख चुका हूं )।
आज चंबल की रानी यानि पुतलीबाई की कहानी। इस घर की टूटी हुई दीवारे आपको ये बता रही होगी की लगभग सत्तर साल से ये घर इसी तरह किसी काइंतजार कर रहा है। घर के अलग-अलग हिस्से हो चुके है। किसीको किसी ने खरीद लिया तो किसी को किसी ने। लेकिन जो रह गया उसमें एक इंतजार दिखता है। जैसे उसको घुंघरूओं की आवाज का इंतजार हो कि कब वो महफिल फिर से सजेगी, और तबले की थाप कब बजेगी और कब इस घर के आंगन में असगरीबाई की आवाज और पुतलीबाई का नाच एक बार फिर से जवां हो जाएंगा। पुतलीबाई के घर के कई हिस्से हो चुके है। और कई हिस्से बिक चुके है। पुतली के भाई के परिवार वाले इस घर को हिस्सों में बेच कर गांव से जा चुके है। बस एक हिस्सा ह ैजिसकी ताख पर आज भी कुछ टूटे हुए दिए रखे है।
वो दिए जिनकी रोशनी में पुतली का नाच दिखता था और वो दिए जो पुतली के मरने पर एक बार बुझे तो फिर कभी नहीं जले।
पुतलीबाई की कहानी की शुरूआत यही से शुरू होती है। पुतलीबाई की मां का नाम असगरीबाई था। जाति से बेड़नी और काम नाच-गाना। असगरीबाई ने बचपन से ही पुतलीबाई को नाचगाना सिखाया था। असगरीबाई के बारे में कहा जाता कि वो बेहद खूबसूरत थी और वही खूबसूरती विरासत में पुतलीबाई को मिली थी। पुतलीबाई और उसकी बहन तारा ने अपना नाचगाना यही से शुरू किया और कुछ ही दिन में असगरी समझ गई कि पुतली के लिये ये गांव छोटा पड़ रहा है। लिहाजा पुतली को लेकर असगरीबाई आगरा पंहुच गई। कद्रदानों का शहर आगरा। इसी शहर के बसई इलाके में एक कोठे पर पुतलीबाई का नाचगाना शुरू हो गया।पुतली की सुरीली आवाज और सुंदर नृत्य ने लोगो पर जादू करदिया। किस्सा यही है कि आगरा में असगरीबाई का कोठा इलाकेका सबसे ऊंचा कोठा बन गया। महफिलों की रौनक बढ़ती गई। और पुतलीबाई की शोहरत के साथ दौलत भी असगरी के हिस्से में आने लगी। पुतलीबाई की आवाज के चर्चे आगरा के साथ साथ लखनऊ, कानपुर और दूसरे बड़े शहरों तक जा पहुंची। पुतलीबाई के नाच पर पैसों की बौछार हो जाती थी। इसीबीच पुतली ने अपनी नाचने-गाने की कला के बीच एक और चीज सीख ली। और वो था आल्हा और होली के गीत गाना। आल्हा इस इलाके के लिए जिंदगी का हिस्सा थी। महोबा के आल्हा ऊदल की वीर गाथा के गीतों को पुतलीबाई इतना डूबकर गाती थी कि इलाके के बड़े-बडे अल्हैत पानी भरने लगे।
समय ने करबट ली पुतली के नाच के किस्से जगजाहिर होते गए और अब पुलिसबालो की आमद होने लगी जिसकी बजह से ओर कद्रदानों की सहज कमी होने लगी एक दिन असगरी का मोहभंग हुआ और पुतली को लेकर मुरैना में नया ठिकाना बना लिया ।अब पुतली गांव खेडा के विवाह उत्सव इत्यादि में अपने नाच गाने से पैसे का अम्बार लगाने लगी किन्तु मानसिंग गिरोह के सुल्ताना डाकू की आमद से पैसा तो खूब आया साथ लाया पुलिस की आबक भी बढ़ गयी ..
गाहे बगाहे सुल्ताना ओर पुतली का नयनसंगम कब इश्क में बदल गया किसी को खबर न हुई ।बरबाई से आगरा का सफर वाया मुरेना होता हुआ फिर बरबाई में आकर रुक चुका था । चम्बल के गांवों में सनसनी खेज खबर चली की डाकू सुल्ताना ओर पुतली का इश्क परवान चढ़के बीहड़ो का रास्ता माप चुका था । स्त्री प्रवेश वर्जित बागी गैंग मानसिंह के संमक्ष सुल्ताना घुटनो के बल और पुतली नजर झुकाये खड़ी थी इससे पहले की गोली सुल्ताना का हृदय वेदन करती पुतली आगे आ गयी और बोली "ददुआ में स्वम आयी हु सुल्ताना के साथ ओर रहना भी चाहती हु इसमे इसका कोई दोष नही" तनी हुई नाल ऊपर हो गयी और सुल्ताना को जीवन बख्शने के साथ ही मर्यादा भंग करने के दोष में गिरोह निष्कासन का आदेश दिया गया ।
मान सिंह गैंग से निष्कासित सुल्ताना ने अपने दम पर एक ओर गिरोह बनाया पुतली साथ ही बनी रही उसको ये सब छोड़ने की सलाह देती रही बही सुल्ताना बार बार एक जबाब देता की बागी जिंदगी सिर मोत तक आगे बडते रहना लिखा होता है चम्बल आने के दस हजार रास्ते है लेकिन बापस जाने का कोई रास्ता नही ।एक दिन पुतली की जिद के आगे सुल्ताना टूट गया और उसको बापस बरबाइ छोड़ आया किन्तु महीनों तक डाकुओ के रहने पुतली से आये दिन पुलिस की पूछतांछ ओर ज्यादती यहां तक टॉर्चर से तंग आकर पुतली को सुल्ताना का साथ याद आने लगा । रछेड गांव के एक विवाहमें पुतली के नाच गाने का कार्यक्रम था और सुल्ताना को मिली खबर अनुसार पुतली फिर से बीहड़ी गारो में शरण को तैयार हो चुकी थी ।विवाह उत्सव से पहले ही सुल्ताना पुतली को या यूं कहे पुतली सुल्ताना के साथ निकल भागी ।अब पहले की सुरीला आवाज अब दहसत का पर्याय बन चुकी घुघरु की जगह कारतूस ले चुके थे कल की नृत्यांगना आज गोलियों की दम पर तिगनी नाच नचाने बीहड़ी सौन्दर्य के साथ सुर ताल मिला चुकी थी .....
कृमशः ......
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