===चम्बल एक सिंह अबलोकन===
भाग -११
●रूपा पण्डित' दीक्षित'●
"खेड़ा राठौड़"..............!
ये नाम आपको जाना पहचाना लग रहा होगा.... ऐसे हर आदमी को जिसका चंबल से जरा सा भी रिश्ता है उसको ये नाम कभी भूल ही नहीं सकता है।
और कभी न भूलने का एक तगड़ा कारण भी हे किवदंतियों ,किस्सों,नोटंकियो के बिभिन्न माध्यमो के द्वारा आम जनमानस के मस्तिष्क पटल में एक अमित छाप जो हे इस बीहड़ी गाँव की ।हम लाख कोशिश करे की स्मरण विस्मरण हो जाए किन्तु इस ठिकाने में बने हुए दो बागि मन्दिरो के घड्याळ और नित्य शांध्य् कालीन भजन पूजन हमे कुछ सोचने को मजबूर कर ही देती हे ।कि जब जब ये डाकू थे तो इन मन्दिरो का असितित्व क्यों ?
जी बागी सम्राट् राजा मानसिंह मन्दिर से थोड़ा हटकर एक और बागी का मन्दिर हे और दस्यु का नाम था 'रुपा महाराज उर्फ़ रुप्पे पण्डित बिल्लोरी आँखों बॉला चम्बल का एक सरदार जिसने T Quin (कोड नेम) जेसे अधिकारी से मित्रता की और इसी मित्रता के पाश में बंधकर चम्बल के झलावे के रूप मशहूर लाखन सिंह का एनकाउंटर करवाना चाहां और पुलिस व्यूह में स्वम फस गया । आइये काफी समय वाद पुनः "चम्बल एक सिंह अबलोकन" श्रंखला की अगली कड़ी में रूबरू होते हे रुपा महाराज से ।
ये गांव राजा मानसिंह का गांव है। टूटे-फूटी गढ़ी में मानसिंह की कहानी आपको सुनाई दे सकती है लेकिन इस गढ़ी के सामने बिखरे पड़े मिट्टे के टीलों में भी ये किस का घर हे ये कोई आसानी से नहीं बता सकता।दशकों के मौसम की मार झेलता हुआ एक घर अब टीला बन चुका लेकिन इस टीले से निकली एक आवाज अब भी चंबल के बीहड़ों में गूंजती है।जब भी मानसिंह का नाम गूंजता है तो एक और आवाज साथ में फूट पड़ती है वो है रूपा पंडित की आवाज। मानसिंह की गढ़ी के ठीक सामने उसके आंगन में एक छोटा सा घर कभी के रूप्पे पंडित का घर था। रूपा के पुरखे मध्यप्रदेश में रहते थे लेकिन मानसिंह के परिवार वाले कुल पुरोहिताई के लिए उनको मध्यप्रदेश से बुला कर लाए थे और रहने के लिए अपने ही हिस्से से थोड़ी सी जमीन दे दी थी। रूपा का परिवार इसी पुरोहिताई और थोड़ी सी खेती के सहारे अपने दिन काट रहा था।
मानसिंह के परिवार की दुश्मनी गांव के पंडित तलफीराम से शुरू हुई तो आंच रूपा महाराज के परिवार पर आनी शुरू हो गई।30जुलाई1928गांव में कत्ल हुए तो रूपा के पिता छविराम का नाम भी मानसिंह के साथ ही लिखा दिया ।
मामले में मानसिंह के साथ छविराम को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। छविराम जेल से बाहर नहीं आ पाया। उसके चार लड़के रूपनारायण,कन्हाई,लक्ष्मीनारायण और दुल्ला पूरे तौर पर मानसिंह के परिवार पर ही निर्भर थे। रूपनारायण उर्फ रूप्पा उस वक्त महज12साल का था। छविराम की तबीयत जेल में खराब रहने लगी। और फिर एक दिन छविराम ने आखिरी सांस लेते हुए मानसिंह से वचन लिया कि वो रूप्पे का अपने बेटे की तरह से ख्याल रखेंगा।
छविराम का परिवार सदमे में दिन गुजार रहा था कि एक और हादसा इस परिवार के साथ हो गया।एक दिन पुलिस गांव में पहुंची और रूपा के चाचा मुरारीराम को पकड़ कर ले गई। और उसके कुछ देर बाद लाश बीहड़ों में पड़ी मिली.................
मुरारीराम का किसी से कोई झगड़ा नहीं था। रूपा लाश की हालत देखकर रोता हुआ पुलिस के पास पहुंचा और हत्यारों को पकड़ कर सजा दिलाने की गुहार लगाई। किस्सा है ये कि थाने में रूपा को बजाय मदद के एक किक मिली और थाने से बेईज्जत कर बाहर कर दिया।चंबल में जब भी कानून से किसी को निराशा मिलती है उसकी आशा बीहड़ों में सिमट आती है। रूपा के लिए तो चंबल वैसे भी जाना-पहचाना था।
किशोर वय रुपा अभी मात्र 14 वर्षीय था और चम्बल की शरण में एक शातिर बिल्लोरी आँखों बाला रहस्य भी बाज की मांनीद जवान होता गया उम्र के साथ अपराध भी परवान चड़ने लगे .........
शुरूआत में गांव में आने वाले गैंग के लिए पहरे पर खड़े होने वाले रूपा की दिलेरी मानसिंह के दिल में घर करने लगी।रूपा को सिर्फ बाहर से नहीं भीतर से चंबल को देखना था। बंदूकों की रखवाली नहीं करनी थी बल्कि बंदूकें चलानी थी। रूपा ने बंदूकों का साथ देते देते एक दिन खुद ही बंदूक थाम ली। और अब वो चंबल में मानसिंह गैंग का एक मैंबर हो गया। एक ऐसा मेंबर जिसको मानसिंह बेटे जैसा मानते थे।रूपा का निशाना काफी तेज था। पुलिस की फाईलों में रूप्पा का नाम दर्ज हो गया रूपापंडित के तौर पर। मानसिंह के गैंग में उनका बड़ा भाई नवाबसिंह,बेटा सूबेदार सिंहऔर तहसीलदार सिंह थे। लेकिन रूपा अपनी पहचान बनाने में सफल रहा था।
रूपा ने अपने बाप की मौत के बाद सिर्फ मानसिंह को ही अपना सगा मान लिया था। मानसिंह के इशारे परकिसी भी जान लेने के लिये तैयार रूपा उसके एक इशारे पर अपनी जान देने के लिए भी तैयार रहता था।रूपा अपने सरदार मानसिंह की तरह ही पूजा पाठी था। और किसी भी वारदात से पहले शगुन का विचार करता था। यहां तक कि मानसिंह की आखिरी मुठभेड़ से पहले भी उसने मानसिंह से गैंग को उस दिशा में ले जाने से मना किया था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है इतने शगुन विचार वाले रूपा पंडित को भी पुलिस कीगोलियों का ही निशाना बनना था।
मानसिंह के गैंग में लोग बढ़ने लगे थे। और गैंग में एक और डकैत था जिस पर गैंग को नाज था और वो था लाखन सिंह तोमर। लाखन सिंह और रूपा गैंग में एक दूसरे से होड़ करते थे। दोनो बेहद शातिर और तेज निशानेबाज,और दोनो पर ही गैंगकी नजर। ऐसे में मानसिंह को लगने लगा था कि इन दोनों की दोस्ती गैंग को लेकर कभी भी दुश्मनी में बदल सकती है। और ऐसे में एक दिन मानसिंह ने गैंग को दो हिस्सों में बांट दिया। एक हिस्सा लाखन सिंह को देकर दूसरे हिस्से में रूपा को रख लिया।लाखन सिंह ने अलग गैंग बना लिया। और रूपा मानसिंह के साथ रह कर वारदात करने लगा। इसीबीच एक मुठभेड़ में मानसिंह का लड़का तहसीलदार सिंह घायल होकर गिरफ्तार हो गया।तहसीलदार सिंह के खिलाफ कुछ लोगो ने गवाही दी। तहसीलदार सिंह को फांसी की सजा से बचाने के लिए मानसिंह और रूपा ने चंबल में तबाही मचा दी। हर उस गवाह या उसके रिश्तेदारों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया जिसकी गवाही से तहसीलदार सिंह के गले पर फांसी का फंदा कस सकता था।
एक दिन मानसिंह गैंग लौट रहा था कि उसकी पुलिस से मुठभेड हो गई। मुठभेड़ में मानसिंह पुलिस के जवान गोविंद सिंह थापा की गोलियों का निशाना बन गया। गोलियों से जख्मी मानसिंह ने रूपा को देखा और दम तोड़ दिया। रूपा अपने मुखिया की लाश को वहां छोड़ना नहीं चाहता था।100किलो वजनी मानसिंह की लाश को कंधें पर उठाकर रूपा ने दो किलोमीटर तक दौड़ लगाई लेकिन सैकड़ों की तादाद में पुलिस की गोलियां गैंग पर भारी पड़ रही थी। गैंग के लोगो ने रूपा से लाश को वही छोड़कर निकलने को कहा। निराश रूपा ने लाश को वहां रखा और हाथ जोड़कर सबके सामने कसम खाई कि वो इस खून का बदला लेगा।
गैंग लौट चुका था। मानसिंह के साथ उसका बड़ा बेटा सूबेदार सिंह भी मारा जा चुका थाऔर तहसीलदार सिंह जेल में था। ऐसे में गैंग की कमान किसको दी जाए। मानसिंह का बड़ा भाईनवाबसिंह जिंदा था लेकिन गैंग को एक ऐसे मुखिया की जरूरत थी जो टूटे हुए मनोबल को ऊंचा उठा सके और गैंग का रुतवा बनाएं रखे। सबकी निगाहें टिकी रूपा पंडित पर। और चंबल में मानसिंह के बाद उसके गैंग की कमान संभाल ली रूपा पंडित ने। रूपा पंडित अब रूपा महाराज बन चुका था। और वक्त था उसकी कसम पूरी करने का।रूपा महाराज चंबल में खौंफ का नया नाम बन चुका था। गैंग की कमान संभालते ही उसने दुश्मनों से हिसाब किताब करना शुरू कर दिया। लाखन सिंह का गैंग भी चंबल में बड़ा गैंग बन चुका था। पहले तो मानसिंह की मौत के बाद सुलह सफाई हुई। लेकिन जल्दी ही चंबलकी बादशाहत को लेकर दोनो में दुश्मनी ने एकनया रंग ले लिया।पहले लाखन ने कुछ लोगो को परेशान किया रूपा के फिर रूपा नेलाखन के लोगो को मारना शुरू कर दिया।दोनों गैंग का आमना-सामना भी होने लगा।
लाखन सिंह के साथ के लोग आसानी से रूपा महाराज या उसके गैंग पर गोलियां चलाने से इस लिये भी पीछे हट जाते थे कि ये मानसिंह का गैंग है यानि राजा मान सिंह का गैंग जिसको चंबल में किसी ने चुनौती नहीं दी थी।चंबल में रूपा ने जल्दी ही मानसिंह की तरह से ही दरबार लगाना शुरू कर दिया। चंबल के गांवों में रूपा का कहा कानून बन गया। कानून से निराश लोगों ने रूपा के दरबार मेंगुहार लगाना शुरू कर दिया। रूपा हर किसी काइंसाफ अपने अंदाज में करता था। उसके फैसले के खिलाफ कही अपील नहीं थी। जिसको भी दोषी पाया गया उसकी सजा मुकर्रर थी। एक गोली की आवाज और सांस जिस्म से बाहर।मानसिंह की मौत के बाद उसके दुश्मनों ने फिर से सिर उठाया। मानसिंह की जमीन को जोतना शुरू कर दिया। मानसिंह की पत्नी रूकमणी देवी हताश थी क्योंकि तहसीलदार सिंह जेल में था और पूरे गांव में पहरा। मानसिंह के दुश्मन दीवाली का त्यौहार जोरो-शोरो के साथ मनाने जा रहे थे। गांव में शाम हो चुकी थी। और कुछ पटाखों की आवाज आई। लेकिन ये पटाखें दीवाली के पटाखे नहीं थे ये मौत के पटाखे थे और मौत रूपा महाराज के नाम से आई थी।रूपा ने ये ऐलान कर दिया था कि जब तक वो जिंदा है मानसिंह के परिवार की ओर आंख उठाने वाले को गोलियों से भून दिया जाएगा।
रूपा का आतंक चंबल में फैलता जा रहा था। रूपा के गैंग में35से40लोग थे। और पुलिसके मुताबिक हर रोज का खर्च200रूपए था। गैंग के पास सबसे अत्याधुनिक हथियार थे। टेलीस्कोपिक राईफल तो रूपा की पहचान थी तो उसके गैंग के पास शक्तिशाली दूरबीन,हैंडग्रेनेड,टीएमसी,ब्रेनगन और वॉयरलैस सेट तक थे। रूपा ने दशको तक पकड़ कर उनके परिवारवालों से लाखों रूपए इकट्ठा किए । पुलिस रूपा का कुछ नहीं बिगाड पा रही थी। गैंग अपहरण करता और रूपा का नाम घर तक पहुंचता था और घर वाले पैसा पहुंचा दिया करते थे।
एक बार चंबल के एक गांव से रूपा केगैंग ने पकड़ की और लड़के के बाप को फिरौती की खबर भिजवा दी गई। लेकिन लड़के के बाप ने ये खबर पुलिस को दे दी। ये बात रूपा तक पहुंची तो रूपा ने घात लगाकर बाप को भी उठा लिया। उसके बाद चंबल के बीहड़ों में बाप बेटे को ऐसी यातनाएं दे कर मौत के घाट उतारा कि सुनने वालों की रूह कांप उठे। इसके बाद चंबल में रूपा का विरोध करने की हिम्मत किसी की नहीं रही।चंबल में रूपा का नाम आंतक और खौंफ का नाम बन चुका था।. अब यदि पुलिस को किसी पकड़ के बारे में जानकारी मिलती और वो पूछताछ के लिए भी पहुंचती तो पकड़ के परिवार वाले ही पकड़ से इंकार कर देते थे।
चंबल में रूपा महाराज का नाम तो गूंज रहा था लेकिन बेताज बादशाह बनने की इच्छा पूरी नहीं हो पा रही थी। और ये ही कारण था कि रूपा और लाखन की दुश्मनी बढने लगी।चंबल में एक तरफ रूपा की बंदूकें गरज रही थी तो उसी वक्त लाखन सिंह भी पुलिस को नाकों चने चबवा रहा था। लगातार डकैतियों और कत्ल की वारदात से पुलिस हैरान-परेशान हो उठी। चंबल का बादशाह बनने के लिए छटपटा रहे रूपा महाराज ने अपने गैंग के लोगो से वादा किया कि वो लाखन को खत्म कर के रहेगा। दोनों गैंग कई बार आपस में टकराए लेकिन हर बार लाखन बच कर निकलने में कामयाब हो गया।लाखन सिंह से बुरी तरह नाराज रूपा भी चाहताथा कि किसी तरह से लाखन सिंह का सफाया हो जाए तो फिर चंबल में उसके सामने बोलने वाला कोई नहीं बचेगा। रूपा को बादशाहत पसंद थी। वो किसी को भी मार गिराने में पल भर भी नहींलगाता था।
चंबल के किस्सों में एक बहुत मशहूर किस्सा है कि1946में रूपा अपने मुखिया मानसिंह से कहकर चंबल से बाहर कोलकाता गया था। महीनो बाद लौटे रूपा से मानसिंह ने पूछा कि तुमने कोलकाता क्या किया तो उसने जवाब दिया था कि दाऊ एक दर्जन से ज्यादा लोगो का सफाया।रूपा इस दौरान चंबल में वारदात भी कर रहा था। चंबल में उसने सैकड़ों पकड़ की थी,और सैकड़ों डकैतियों से उसको लाखों का माल हासिल हुआ था। खुद गांव के लोग भी सामान पहुंचाते थे। ऐसे में इतनी रकम का रूपा क्या करता था ये सवाल भी पुराने पुलिस अधिकारियों की डायरियों मिलता है।
बाप का कत्ल कर उसके बेटे को पैसा थमा देने जैसी सनक का शिकार था रूपा। किसी पर खुश होकर उसके पैसा थमा देना उसके लिए रोजमर्रा की बात थी। मध्यप्रदेश पुलिस ने1958में कहाकि वो रूपा का इस साल के आखिर तक सफाया कर देंगी। और रूपा ने पुलिस के इस बयान का अपने अंदाज में जवाब दिया।
क्रमश:
सलग्न चित्र उसैद घात चम्बल