शनिवार, 19 दिसंबर 2020

आचार्य श्रेष्ठ श्री त्रिलोचननाथ तिवारी जी की कृति

जिस स्थान पर कभी भी 

ह वर्ण दिखे न!

एक क्षण ठहरो और विचार करो!

ह वर्ण स्वयं में पूर्ण है और शिव-वाच्य है।

हंकार का अर्थ शिवाकार! 
शिव-स्वरूप!
अतः अहं, अ हं का अर्थ है 
जो शिव से वियुक्त है।

और जब तक कोई शिव से वियुक्त है तभी तक उसका स्व जीवित है।

अतः तन्त्र कुण्डलिनी शक्ति को 
अहं शक्ति कहता है। क्योंकि वह मूलाधार में शिव से वियुक्त पड़ी है।

अतः 
अहंकार शब्द का अर्थ है शिव-वियुक्त शिवा!

जब यह अहं जागृत होता है तो कुण्डलिनी जाग्रत होती है और फिर शिव की ओर, शुभ की ओर उन्मुख होती है।

तन्त्र कुण्डलिनी को भुजंगिनी कहता है। सर्पिणी की तरह होती है। कुटिल रेखा पर चलायमान, फुफकारती, डंसने को तत्पर!

कौन है जिसको अहं नहीं?

जिसका अहं नष्ट हुआ वह शिव सायुज्य प्राप्त कर चुका! 

किन्तु तब वह या तो 

सो हं

हुआ

या

फिर हं सः!

सोहं - वही है शिव!
हंसः - शिव है वही!!

स शक्ति वाच्य है। 

अतः जो अहं से इन्कार करता है वह

या तो जीवित नहीं, या फिर पाखण्डी है।

उसको कुछ काम आ पड़ा होगा!
वरना झुक कर मिला नहीं होता!!

अपना अहं छिपाने वाला स्वार्थी होता है।

अहं का दूसरा अर्थ है शक्ति! शिव-शक्ति! अर्थात् स!
अर्थात् शक्ति!
अर्थात् शिव से अलग छिटकी पड़ी
मूलाधार में साढ़े तीन फेरों में सिकुड़ी साक्षात शिवानी!

और घमण्ड?

पहले तो घ को समझो!

घकारं चञ्चलापाङ्गि ! चतुष्कोणात्मकं सदा।
पञ्चदेवमयं वर्णमरुणादित्यसन्निभम् ॥
निर्गुणं त्रिगुणोपेतं सदा त्रिगुणसंयुतम् ।
सर्व्वगं सर्व्वदं शान्तं घकारं प्रणमाम्यहम् ॥

सृष्टिरूपा वामरेखा किञ्चिदाकुञ्चिता ततः।
कुण्डलीरूपमास्थाय ततोऽधोगत्य दक्षतः॥
अत ऊर्द्ध्वं गता रेखा शम्भुर्नारायणस्तयोः।
ब्रह्मस्वरूपिणी देवि ! 
मात्राशक्तिः प्रकीर्त्तिता॥

मालतीपुष्पवर्णाभां षड्भुजां रक्तलोचनाम् ।
शुक्लाम्बरपरीधानां शुक्लमाल्यविभूषिताम्॥
सदा स्मेरमुखीं रम्यां लोचनत्रयराजिताम् ।
एवं ध्यात्वा घकारन्तु तन्मन्त्रं दशधा जपेत्॥

निर्गुंणं त्रिगुणोपेतं सदा त्रिगोलसंयुतम् ।
सर्व्वगं सर्व्वदा शान्तं घकारं प्रणमाम्यहम्॥

ऐसे घ का जो मण्ड है, घ को उबालने पर गाढ़ा सा तैरता,

वह घमण्ड है!

छड यार!

अरण्ये रोदनं वृथा!

ए भिया! ब्लॉक करो न!

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