#गद्दारो_की_हवेली
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पढ़ते अथवा सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते ही कि कहि कोई हमारे साथ ऐसा विश्वाशघाती तो नही जिसके रक्त से प्लाज्मा अलग हो गया हो! कंही कोई ऐसा तो नही जो स्वार्थ शिद्धि पूर्ण करने के लिए दुश्मन खेमे जा मिला हो !!कहीं कोई ऐसा तो नही जो मुस्कुराते हुए गले तो लगे किन्तु गला रेतने से पहले कुछ भी न सोचें !!!
जी हां!.....
बाग़ियों ,दस्युओं, चम्बल श्रंखला संस्करण में आपको चम्बल से काफी परिचित कराया, अब परिचय देता हूँ एक ऐसे द्रोही का जिसकी हवेली को 'रक्त हवेली' का बदनुमा नाम दाग मिला और जिसे भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा गद्दार बोला गया .....!जिसके दगा के कारण भारत को लगभग 200 वर्षो तक ब्रितानी हुकूमत की दासता झेलने पड़ी और 'सोने की चिड़िया' बोला जाने बाला महान दो सदियों तक लूटा जाता रहा ।
1733 में पैदा हुए नवाब सिराजुद्दोला की अपनी हत्या के समय महज़ 24 साल की उम्र थी।अपनी मौत से साल भर पहले ही अपने नाना की मौत के बाद, उन्होंने बंगाल की गद्दी संभाली थी! ये वही वक्त था, जब ईस्ट इंडिया कंपनी उपमहाद्वीप में अपने कदम जमाने की कोशिश कर रही थी ।
सिराजुद्दौला को कम उम्र में नवाब बनाए जाने से उनके कई रिश्तेदार खफा थे....ख़ास तौर से उनकी खाला घसीटी बेग़म ! सिराजुद्दौला ने नवाब बनने के थोड़े ही समय बाद उन्हें क़ैद करवा दिया था!
सैना बढ़ते असमांजस्य के चलते नवाब ने प्रायोगिक तौर पर बरसों से बंगाल के सेनापति रहे मीर जाफर की जगह मीर मदान को प्रमुखता दी......परिणाम वही 'सिल्हारे को सिल्हारे की जलन'..... इससे मीर जाफर नवाब से बुरी तरह खफ़ा हो गया ।
उन्ही दिनों फिरंगी अपने पाँव पसारने के लिए जगह तलाश रहे थे और उन्हें तलाश थी एक ऐसे भेदीये की जो उनकी राह के रोडा बनते नबाब की सुदृण व्यवस्था में सेंध लगा सके और उनकी तलाश शीघ्र ही अंसतुष्ट ओर सत्ता लालची मीर जाफर के रूप में पूर्ण हुई ।
एक गुप्त स्थान और मध्यस्थ के माध्यम से फिरंगी सेनापति क्लाइव -जाफर की गुप्त मंत्रणा हुई .....सड़यंत्रो की खाई खोदी गयी, अनुबंध हुआ और ब्रिटिश सेना ने आक्रमण कर दिया ।
नबाब की स्थिति चहुओर घिरे शिकार जेसी थी क्योंकि उत्तर से अब्दाली ओर पश्छिम से मराठो का अतिक्रमण पहले ही था....पूरी शक्ति से आकमण करना भी एक ओर से दुश्मन को जीतने का खुला आमंत्रण था। प्रतिकार स्वरूप बंगाल के तीनों मोर्चे सम्भालती विशाल फ़ौज की शक्ति प्रति मोर्चा एक तिहाई से कम हो गयी ।
फ़ौज के एक हिस्से के साथ वो प्लासी पहुंचे.... मुर्शिदाबाद से कोई 27 मील दूर डेरा डाला गया... 23 जून को एक युद्ध में सिराजुद्दौला के विश्वासपात्र मीर मदान की मौत हो गई.... नवाब ने सलाह के लिए मीर जाफर को सन्देश भेजा.....और मीर जाफर ने सलाह दी कि युद्ध रोक दिया जाए. ....नवाब ने मीर जाफर की सलाह मानने की भारी कर दी जिसकी परिणीति बंगाल और नबाब दोनो भूगतनी थी ।
युद्ध विराम कर दिया गया....! नवाब कि फ़ौज वापस कैंप लौटने लगी..... मीर जाफर ने रॉबर्ट क्लाइव को स्थिति समझा दी...!
क्लाइव ने पूरी ताकत से हमला बोल दिया, एकाएक हुए अप्रत्याशित हमले से सिराज की सेना बौखला गई... तितर-बितर होकर बिखर गई....जब तक कुछ समझ पाते क्लाइव ने लड़ाई जीत ली।नवाब सिराजुद्दौला को भाग जाना पड़ा....!
मीर जाफर तुरन्त अंग्रेज़ कमांडर से जाकर मिला ओर सहमति के अनुसार उसे बंगाल का नवाब बना दिया गया....दरअसल वह नाम का नवाब था सत्ता तो अंग्रेज़ों के हाथ लग चुकी थी।
प्लासी की लड़ाई से भागकर नवाब सिराजुद्दौला अधिक दिन आज़ाद नहीं रह सके,उन्हें पटना में मीर जाफर के सिपाहियों ने पकड़ लिया. ....मुर्शिदाबाद लाया गया. !
मीर जाफर के बेटे मीर कासिम ने उन्हें जान से मारने का हुक्म दिया!! 2 जुलाई 1757 को उन्हें मीरजाफर की हवेली में फांसी पर लटकाया गया. ...अगली सुबह, उनकी लाश को हाथी पर चढ़ाकर पूरे मुर्शिदाबाद शहर में परेड़ कराई गई....!!!!
कुछ समय ही मीरजाफर भी कठपुतली नबाब रहा ओर फिरंगियों उसी नीति के तहत जाफर के सेनापति पुत्र मीर कासिम द्वारा कलम कर दिया गया ,मीर कासिम नबाब तो बना किन्तु फिरंगी सत्ता के अधीन ओर भारत का एक क्षेत्र फिरंगियों के हाथ चला गया ।
मुर्शीदाबाद स्थिति मीरजाफर की हवेली को आज भी हराम अथवा हरामी के हवेली के रूप में बोला जाता है !
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यह आलेख लिखते चम्बल की एक लोकोक्ति स्मरण हो आयी..!
दगा किसी का सगा नही है ,नई मानो तो कर देखो!
जिन लोगो ने दगा किया है,जाकर उनके घर देखो!!
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रविवार, 18 अक्टूबर 2020
बुधवार, 14 अक्टूबर 2020
ठाकुर #गुलाब सिंह तोमर और बागी सपनावत
ठाकुर #गुलाब सिंह तोमर और बागी सपनावत
Rajputana Soch पेज
===ठाकुर गुलाब सिंह तोमर और बागी सपनावत===
साठा चौरासी का मुकीमपुर गढ़ी गाँव पिलखुवा के निकट अवस्थित है जो कि #तोमर राजपूतो का गाँव है। यहाँ के ठाकुर गुलाब सिंह तोमर बहुत बड़े जमींदार हुआ करते थे और उनका स्थानीय जनता में बहुत प्रभाव और मान सम्मान था। 1858 के विप्लव की शुरुआत के बाद क्षेत्र के राजपूत ग्रामीणों ने भी जमींदार गुलाब सिंह तोमर के नेतृत्व में बगावत कर दी। ठाकुर गुलाब सिंह ने ब्रितानियों को लगान न देने एवं क्रांतिकारियों का साथ देने का निश्चय किया। उन्होंने क्षेत्र वासियों को भी लगान न देने के लिए प्रेरित किया। मुकीमपुरगढ़ी में जमींदार ठाकुर गुलाब सिंह के नेतृत्व में राजपूतो की एक बैठक बुलायी गयी। इसमें सभी ने ठाकुर गुलाब सिंह से सहमत होते हुए ब्रिटिश सरकार को भू-राजस्व न देने की घोषणा की। इस प्रकार मुकीमपुर गढ़ी राजपूत क्रांतिकारियों का मजबूत गढ़ बन गया। जमींदार ठाकुर गुलाब सिंह ने निकटवर्ती क्षेत्र के गाँवों को भी क्रांति के लिए प्रोत्साहित किया। परिणामतः वहाँ भी क्रांतिकारी भावनाएं पनपने लगी और कुछ समय में वहाँ कानून व्यवस्था पूर्ण रूप से भंग हो गयी। ब्रितानियों से संघर्ष होने के पूर्वानुमान के कारण जमींदार गुलाब सिंह ने अपनी गढ़ी (लखौरी ईटों की किलेनुमा हवेली ) में हथियार भी इकट्ठे करने शुरू कर दिये।
मुकीमपुर गढ़ी के विप्लव की सूचना जब अंग्रेज अधिकारियों तक पहुँची तो उन्होंने उसके दमन का निश्चय किया। ब्रितानियों ने गुलाब सिंह को क्रांतिकारियों का नेता घोषित किया और मुकीमपुर गढ़ी तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र में विप्लव भड़काने का आरोप भी उन पर लगाया गया। एक ब्रिटिश सैन्य टुकड़ी यहाँ विप्लव के दमन के लिए भेजी गयी। उसने मुकीमपुर गढ़ी को चारो ओर से घेर लिया। गुलाब सिंह की हवेली पर तोप से गोले बरसाये गये। मुकाबला असमान था लेकिन ठाकुर गुलाब सिंह जी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने ब्रितानियों का सामना किया परन्तु वे तोपों के सामने ज्यादा देर टिक न सके। ठाकुर गुलाब सिंह की गढ़ी को तोपों से खंडहर में परिवर्तित कर दिया। ठाकुर गुलाब सिंह और उनके कई सहयोगी वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगती को प्राप्त हो गए। ब्रिटिश सेना को हवेली के अन्दर कुएँ से हथियार प्राप्त हुए जो उनका सामना करने के लिए जमींदार गुलाब सिंह एवं ग्रामीणों ने इकट्ठा किये थे। बाद में मुकीमपुर गढ़ी गाँव में आग लगा दी गयी। ब्रिटिश अधिकारी डनलप ने गुलाब सिंह की सम्पूर्ण जायदाद जब्त कर ली। आज भी ठाकुर गुलाब सिंह जी की हवेली के खंडहर 1857 की क्रांति के गवाह बने हुए हैं।
~~बागी गाँव सपनावत ~~
सपनावत साठा क्षेत्र के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण गाँव में से है जो गुलावठी के पास अवस्थित है। यह गहलोत(शिशोदिया) राजपूतो का गाँव है और बहादुरी और बगावती तेवरो के लिये हमेशा प्रसिद्ध रहा है। यहाँ के राजपूतो ने हमेशा की तरह 1857 के विप्लव में भी अपनी बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया। साठा चौरासी में बह रही क्रांति की लहर से सपनावत भी अछूता नही रहा और गाँव ने बगावत कर दी। सपनावत के राजपूतो ने भी मुकीमपुरगढ़ी और पिलखुवा की तरह भू-राजस्व गाजियाबाद तहसील में जमा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद सपनावत ने पूरी तरह अपने को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया।
मशहूर क्रांतिकारी मालागढ के नवाब वलीदाद खाँ जिनपर मेरठ से लेकर अलीगढ तक बागियों की सरकार की जिम्मेदारी थी, को भी सपनावत के ग्रामीणों से अत्यधिक सहयोग मिला था। नवाब वलीदाद खाँ गाजियाबाद तथा लोनी का निरीक्षण करके सपनावत में भी रूके थे। यहाँ के ग्रामीणों से इनके नजदीकी सम्बन्ध थे। इसी कारण सपनावत के निवासियों ने क्रांति के समय नवाब वलीदाद खाँ की बहुत सहायता की।
सपनावत से कुछ दूर बाबूगढ़ में अंग्रेजी सेना की छावनी थी। गढ़मुक्तेश्वर से बाबूगढ़ आए बागी बरेली ब्रिगेड के क्रांतिकारी सैनिकों की सहायता के लिए यहाँ के अनेक नौजवान वहाँ पहुँच गये। बाबूगढ़ में क्रांतिकारियों ने अत्यधिक लूटपाट की और दुकानों में आग लगा दी।
1857 की क्रांति की असफलता के पश्चात् अनेक ग्रामों को क्रांतिकारियों का साथ देने या क्रांति में संलग्न होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने बागी घोषित कर दिया। उन गाँवों की जमीन-जायदाद छीन ली गई। इन बागी ग्रामों में सपनावत भी था। सपनावत गाँव को भी विप्लवकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण बागी घोषित कर दिया गया और यहाँ के किसानो की जमीने छीन ली गईं।इसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्रांति में भाग लेने वाले राजपूतों,मुस्लिमो की जमीने अंग्रेजों के भक्त जाटों के नाम चढ़ा दी गयी.
इन वीर आत्माओ को हमारा नमन जिनकी बहादुरी और बलिदानो की वजह से आज हम स्वतंत्र हैँ_/\_
शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020
क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार
~~~ प्रतिहार राजपूत ~~~
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~~ सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार का जीवन परिचय ~~
मिहिर भोज परिहार जी का जन्म सम्राट रामभद्र परिहार की महारानी अप्पा देवी के द्वारा सूर्यदेव
की उपासना के प्रतिफल के रूप में हुआ माना जाता है। सम्राट मिहिर भोज के बारे में इतिहास की पुस्तकों के अलावा बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक
49 साल तक राज किया। मिहिर भोज के
साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक ओर कश्मीर से कर्नाटक तक था।
सम्राट मिहिर भोज बलवान, न्यायप्रिय और
धर्म रक्षक थे। मिहिर भोज शिव शक्ति के उपासक थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में भगवान शिव के प्रभास क्षेत्र में स्थित शिवालयों व पीठों का उल्लेख है। प्रतिहार साम्राज्य के काल में सोमनाथ को भारतवर्ष के प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना जाता था। प्रभास क्षेत्र की प्रतिष्ठा काशी विश्वनाथ के समान थी। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। मिहिर भोज के संबंध में कहा जाता है कि वे सोमनाथ के परम भक्त थे उनका विवाह भी सौराष्ट्र में ही हुआ
था। उन्होंने मलेच्छों से पृथ्वी की रक्षा की। 50
वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे।सम्राट मिहिर भोज का सिक्का जो की मुद्रा थी उसको सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं में कन्नौज को देश की राजधानी बनाने पर चलाया था। सम्राट मिहिर भोज महान के सिक्के पर वाराह भगवान जिन्हें कि भगवान विष्णू के अवतार के तौर पर जाना जाता है। वाराह
भगवान ने हिरण्याक्ष राक्षस को मारकर पृथ्वी को पाताल से निकालकर उसकी रक्षा की थी।सम्राट मिहिर भोज का नाम आदिवाराह भी है। ऐसा होने के पीछे दो कारण हैं पहला जिस प्रकार वाराह भगवान ने पृथ्वी की रक्षा की थी और हिरण्याक्ष का वध किया था ठीक उसी प्रकार सम्राट भोज ने
मलेच्छों(मुगलो,अरबों)को मारकर अपनी मातृभूमि की रक्षा की। दूसरा कारण सम्राट का जन्म वाराह जयंती को हुआ था जो कि भादों महीने की शुक्ल पक्ष के द्वितीय दोज को होती है। सनातन धर्म के अनुसार इस दिन चंद्रमा का दर्शन करना बहुत शुभ फलदायक माना जाता है। इस दिन के 2 दिन बाद
महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का उत्सव प्रारंभ
हो जाता है। जिन स्थानों पर प्रतिहारों, परिहारों, पडिहारों, इंदा, राघव, अन्य शाखाओं को सम्राट भोज के जन्मदिवस का पता है वे इस वाराह जयंती को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। जिन भाईयों को इसकी जानकारी नहीं है आप उन लोगों के
इसकी जानकारी दें और सम्राट मिहिर भोज का जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाने की प्रथा चालू करें।
अरब यात्रियों ने किया सम्राट मिहिर भोज का यशोगान अरब यात्री सुलेमान ने अपनी पुस्तक
सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में लिखी जब वह भारत भ्रमण पर आया था। सुलेमान सम्राट मिहिर भोज के बारे में लिखता है कि परिहार सम्राट
की बड़ी भारी सेना है। उसके समान किसी राजा के पास उतनी बड़ी सेना नहीं है। सुलेमान ने यह
भी लिखा है कि भारत में सम्राट मिहिर भोज से बड़ा इस्लाम का कोई शत्रू नहीं है। मिहिर भोज के पास ऊंटों, हाथियों और घुडसवारों की सर्वश्रेष्ठ सेना है। इसके राज्य में व्यापार, सोना चांदी के सिक्कों से होता है। यह भी कहा जाता है कि उसके राज्य में सोने और चांदी की खाने
भी हैं।यह राज्य भारतवर्ष का सबसे सुरक्षित क्षेत्र है। इसमें डाकू और चोरों का भय नहीं है। मिहिर भोज राज्य की सीमाएं दक्षिण में राष्ट्रकूटों के राज्य,पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में
मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती है। शत्रू
उनकी क्रोध अग्नि में आने के उपरांत ठहर नहीं पाते थे। धर्मात्मा, साहित्यकार व विद्वान उनकी सभा में सम्मान पाते थे। उनके दरबार में राजशेखर
कवि ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना की। कश्मीर
के राज्य कवि कल्हण ने अपनी पुस्तक राज तरंगणी में सम्राट मिहिर भोज का उल्लेख किया है। उनका विशाल साम्राज्य बहुत से राज्य मंडलों आदि में विभक्त था। उन पर अंकुश रखने के लिए
दंडनायक स्वयं सम्राट द्वारा नियुक्त किए जाते
थे। योग्य सामंतों के सुशासन के कारण समस्त साम्राज्य में पूर्ण शांति व्याप्त थी। सामंतों पर सम्राट का दंडनायकों द्वारा पूर्ण नियंत्रण था।
किसी की आज्ञा का उल्लंघन करने व सिर उठाने
की हिम्मत नहीं होती थी। उनके पूर्वज सम्राट नागभट्ट परिहार ने स्थाई सेना संगठित कर उसको नगद वेतन देने की जो प्रथा चलाई वह इस
समय में और भी पक्की हो गई और प्रतिहार परिहार राजपूत साम्राज्य की महान सेना खड़ी हो गई। यह भारतीय इतिहास का पहला उदाहरण है,
जब किसी सेना को नगद वेतन दिया जाता हो।
परिहार क्षत्रिय राजपूत राजवंश।।
जय मिहिर भोज जी।।
जय माँ भवानी।।
जय क्षात्र धर्म।।
Source: नागौद स्टेट।।
भारत कल आज और कल
कल से प्रारम्भ होते नवरात्र और कुवारों-कुंवारियों के चेहरों पर ४माह उपरांत लौटती चमक में छिपा भविष्यवाद का गहन चिंतन भी मतदान से बड़ा मुद्दा हो सकता हे किन्तु इस तरफ देखनी की किसी को क्या परवाह आन पड़ी ....?
आज भारत विश्व की सर्वाधिक तरुण अवस्थाबादी जनसख्या का देश हे किन्तु दुर्भाग्य से वह योग्यता अनुरूप पारिश्रमिक सृजन में असफल हे और कही न कही देश की रीढ़ कही जाने बाली तरुणाई ही अर्थव्यवस्था का बो केंद्र जो देश उन्नति-प्रोन्नति का आधार स्तम्भ होकर ही खोखले बादो से प्रति पञ्च वर्षीय सरकार बनाओ योजना के रक्त पिशाचों द्वारा ठगी का शिकार बनाई जाती रही हे ।
क्या देश का उर्जामयी युवा अपने भविष्य के प्रति सचेत नहीं हे ......?
क्या तरुणाई का आधार खोखला होकर रुग्ण हे ....?
क्यो युवा मात्र सोचो अथवा व्यसन के आधीन होकर अपना भविष्य और देश का आधार दोनों दुर्बल करने पर उतारू हो रहा हे ?
सम्भवतः किसी ने इस बिंदु की तरफ आकर्षित होना मुनासिव न समझा ,आखिर युवाओ में आकर्षण खोजने की किसी को क्यों आन पड़ी,जब राष्ट्रवाद चरम पर होता हे तो बेरोजगारी भी सर्वोच्य शिखर पर होती हे न ....!
एक सर्वेक्षण अनुसार देश का एक बड़ा हिस्सा व्यसन के प्रति आकर्षित हो रहा हे और जिसमे मूल में छिपा हे उनको समुचित व्यवसाय की अनुपलब्धता से बढ़ती मनोविकारों की खिन्नता में मष्तिष्क को क्रतिम सुख देने की लत लगना।न तो देश के ठेके पर चलाने बाले संचालक-परिचालक इस तरफ ध्यान देते हे और ना ही इस धीमे जहर के व्यवसायी! क्योंकि इन बेरोजगारो के खाली होने पर ही उनको लाभ प्राप्त होगा जो राजनेतिक भी होता हे और व्यवसायिक भी ।
जब देस के बड़े वर्ग के पास समुचित आय के श्रोत होंगे तो क्या बो अपना बहुमूल्य समय इन खाजनेतिक दलो और व्यसन्न कारियों के लिए निकाल पाएगा .....!!
आज हर युवा-युवती निरन्तर भाग रहा हे.....सोचता हे आज का परिश्रम कल उसके लिए स्वर्णिम भविष्य की बुनियाद रखेगा किन्तु देश की अतुलनीय शक्ति का दुर्भाग्य यहां भी साथ नहीं छोड़ता कुछ अवसर वादी मतो के लिए युवाओ से मतभेद कर निपट अनपढो को रोजगार मुहैया करा देता हे। और मेधा तड़पती हे.....
अपनी दुत्कार पर,क्रोधित होती हे....
अपनी उपेक्षाओं पर और कलुषित मन से बड़ जाती हे नशो की तरफ फिर स्वम की नशो से जहर ही क्यों न सोखना पड़े ..!!
यह कुछ समय की मानसिक शून्यता अंततः उन्हें ले जाती है गहन अंधकार में ओर कोई जहर पान करता तो कोई फांसी झूलता है !
विगत-तत्समय और आगामी धूर्त ठेकेदारिया अगर इस देश में मन्दिर मस्जिद,जातियों की धूर्त राजनीति करने से बेहतर होता की समुचित श्रमण का प्रबन्ध करती तो कदाचित देश की मेधा यू न पलायन करती !
एक तरफ तो युवा को जाति-पाती मिटाने की शिक्षा दी जाती रही वही दूसरी तरफ सभी वरीयताओं,मेधाओ,उपलब्धियों,शेक्षणिक मान्यताओ,पात्रताओ को परेह् रखकर सिर्फ जातिप्रमाणपत्र मांगे जाते हे ।
आज भारत स्वम की मेधाओ की उपेक्षा करके विदेशो पर निर्भर हे क्योंकि हमारे ठेकेदारो ने सत्ता-भत्ता से आगे कुछ सोचा ही नहीं ।
इस देश में एक से बढ़कर गुणीजन विरक्त सा जीवन जी रहे और मुर्ख सत्ताधीसि के सर्वोच्य पर विराजमान हे।मेधाये राजनेतिक स्वार्थो के चलते व्यसनकारी हो रही हे और सर्वोच्य न्यायालय से नगग्ना युक्त संस्कृति हिरस्कारि आदेशो पर व्यक्ति स्वत्र्ता का मुल्लमा चढ़ाकर निषेधात्मक नियमन सुनाये जाते हे ।
यथार्थ में भारत,भारत न हा फिरंगियो के द्वारा थोपा गया नग्न,उभनिष्ठ,बलपौरुष हींन सदैव सभ्यता का ढोंग ओढे हुए #इण्डिया ही रहा ।
हे आर्यावर्त! तुझे बैभवशाली भारत बनने में और कितने युग लगेंगे .....!
देश की रीढ़ दिग्भ्रमित है और उसे स्वम झुकाव तक नही पता।राजनीतिक गलियारे की वेहया वैश्या ने सारा देश वर्णसंकर करके पौरुष विहीन कर दिया क्या ?
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~जितेन्द्र सिंह तोमर'५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.
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