The Tomarghar of Chambel
शुक्रवार, 13 जून 2025
राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'
शुक्रवार, 17 मई 2024
अखातीज
रविवार, 24 मार्च 2024
पूर्वाभास
मंगलवार, 12 मार्च 2024
कुछ नही बस यूं ही
रविवार, 18 फ़रवरी 2024
गज़ल
रविवार, 11 फ़रवरी 2024
सिकरवार
बुधवार, 27 दिसंबर 2023
कच्ची डोर (कहानी)
पावस ऋतु के प्रचंड वेग के समय एक सैनिक घनघोर जंगलों में अपनी चिर-परिचित राह से क्या भटका,जैसे दुरूह और स्याह रात की मुसलाधार वर्षा भी उससे कोई पुराने परिबाद का बदला लेने पर उतारू हो चुकी थी।
सर्द मेघ की बूंदों ने सैनिक की तमाम अस्थियों के मेरूरज्जु तक शीत पहुँचा दी थी। किन्तु राह भटका पथिक चलता रहा-चलता रहा और शीत व क्षुदा से त्रस्त होकर कोई आश्रय तलाशने लगा।
चंहुओर तलाश करने पर भी उसको कंही भी कोई आशा किरण नजर नही आई तो एक विशाल वटवृक्ष पर चढ़कर जीवन बचने की आशा में ,दूर तक देखकर कोई आशा की किरण खोजने लगा।कंही दूर से उसको एक आलोक होता दिखा तो मरा हुआ साहस पुनः जागृत हो उठा।
तड़ित प्रकाश में वह एक मनोरम कुटिया में बिखरी डिभरी की आभा में गृहस्वामिनी तरुणी को देख ठिठक गया।फूलती सांस,सतत होती शारीरिक ऊर्जा क्षय और कांपते जिगर से आश्रय पाकर भी निराश्रित सा लोटने को उध्दृत हो उठा। किन्तु तरुणी की तीक्ष्ण दृष्टि व बादलों में कड़कती तड़ित के आलोक से वह न बच सका।
तरुणी ने कहा कि देखो इस घनघोर बहित्काल में मेरे आश्रय तो ले सकते हो किन्तु मेरे पिता-माता ननिहाल गए तो मुझे तुम्हारे कारण मेरे शील मर्यादा का भय न हो !
वह बलबीर द्रवित हो उठा...!
'भद्रे!,में एक क्षत्रिय हूँ और शील-मर्यादा,धर्म की रक्षा मेरे लिए इस जीवन से अधिक प्रिय है। में बाहर औलाती के सहारे प्रहरी बनकर बैठा रहूंगा।''किन्तु!तुम्हे कोई क्षति नही आने दूंगा!!'
तरुणी आश्वस्त हुई और कुटी के पट से परेह हटकर आगन्तुक को अंदर आने की क्रियात्मक स्वीकृति दी ।
प्रायः ऐसा ही होता है,की आश्रय मिल जाये तो क्षुदा आग्रह भी मेजबान के समक्ष प्रस्तुत करना ही पड़ता है।और आगन्तुक भी आमंत्रित से बरबस ही बोल पड़ा।
'कृपया कुछ क्षुदा निवारण हेतु उपलब्ध हो तो मेरी प्राण रक्षा कीजिये,चार घड़ी से इस निर्जन में भटक रहा हूँ।'
तरुणी द्वारा सैनिक को कुछ सत्तू व कन्द इत्यादि खिलाकर तृप्त किया और अपने लिए जमीन पर बिछावन करने लगी।
इस बरसात में चलती तेज वायु और सतत धरा की शीतलता में शयन की सोच सैनिक बरबस ही बोल उठा।"
देवि!आप इस चारपाई पर शयन करिये में सैनिक हूं और इस भूमि पर शयन करने का अभ्यस्त भी हुँ।,कृपया आप चारपाई ग्रहण करिये। में बड़े आराम से सो लूंगा!"
तरुणी ने भृकुटि तानी और थोड़े से बनाबटी गुस्से के साथ बोली..."अतिथि को भूमि पर और स्वयं सुलाकर,में आतिथ्य सत्कार में हुई चूक की हकदार क्यों बनूगी ?"
दोनो और से "आप-आप" होते-होते एक शायिका पर दोनों के मध्य एक कच्ची सूत की डोर की मर्यादा बांध दी गयी और दोनों अपनी-अपनी करबट सोने का प्रयास करने लगे।
भोर में लड़की पहले जागी और बोलने लगी.....
"तुमने कितने समुहे रिक्त करके युद्ध किये हैं..?"
सैनिक -भद्रे इस जीवन काल मे सैकड़ों युद्ध किये और कभी पराजित नही हुआ हूँ,एक-एक दुश्मन के ओहदों पर अपनी ढाल और सिरोही की धमक से धावे पर धावा बोला है।"
प्रतिउत्तर में तरुणी रक्तिम आंखे और खा लेने बाली नजरों में से देखते हुये बोली...
"चल नामर्द,झूठे...इससे पहले की तुझपर शीलभंग का आरोप लगाकर तुझे मरबा दूँ।निकल जा इधर से ..!!"
"रात में एक यौवना तरुणी की धधक शांत करने के लिए तुझसे एक कच्चे सूत की डोर तो लांघी नही जा सकी।बड़ा आया युद्ध जीतने-पराक्रम दिखाने की बाते बनाने बाला।"
"जा. !ओझल हो जा,जो एक स्त्री के मन की बात और बाह्य दिखावे को नही समझ सकता।उससे सौर्य की बातें शोभा नही देती!!"
मेने,तुझे...
आश्रय किसी पथिक को आतिथ्य सत्कार के लिए ही नही,वरन स्वयं की आवश्यकता के लिए दिया था।एक डोर तो टूटी नही,किसी की सैया क्या तोड़ पायेगा..पौरुष हीन।
सैनिक ..किंकर्तव्य विमूढ़ होकर सिर धुनने लगा कि,आखिर उससे चूक अपना धर्म निर्वहन करके हुई अथवा अधर्म न करके...!!
वह पहली बार जीवन मे धर्म निर्वहन करके सात्विक रहकर,शौष्ठव शरीर होकर भी स्वयं को पौरुषहीन अनुभूत करता हुआ।धराशायी पगों से अपनी पगडंडी को चलता बना ।
आखिर चूक कहाँ हुई.. ??
सोमवार, 27 नवंबर 2023
चार वर्ष ♥️🥰
सोमवार, 9 अक्टूबर 2023
डाक दिवस
बुधवार, 4 अक्टूबर 2023
यादों का इडियट बॉक्स 2
राजा भलभद्र सिंह 'चहलारी'
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