#डाक_तार
पता नही कि खुद के पते पर आई अन्तिम डाक की अन्तिम तिथि क्या थी..??
अब तो अपनी खाकी गणवेश में सायकल से डाक लाने बाले छुट्टे चाचा का चेहरा भी ढंग से याद नही है।याद तो बस रह गया है,कि मेरी उन तमाम जी गयी जिंदगियों की अक्स सिहाईयों के माध्यम से भरी डायरियों में सबके डाक व्यवहार की एक छोटी-छोटी स्मर्णीका!प्रथम भेंट,प्रथम सन्देश की एक छोटी सी पुर्जी को मैने अपनी जीवन की उन अमूल्य थातियों के रूप में संजों रखा है ।
आज उन सबके पत्राचार का सूत्र मैंने अपने पास संजो रखा है,जिनका मुझसे तनिक सा भी सम्पर्क कभी रहा हो..!पता नही क्यों आज भी उन पत्र व्यवहारी पतों को क्यों सतत फेहरिस्त में जोड़े जाता हूँ?
जबकि मुझे पता है कि कभी किसी को पत्र व्यवहार के माध्यम से वह अमूल्य भाव भेंट नही कर पाऊंगा।जिस भाव से डायरी के पेजों को नीलवर्णों से सजा लेता हूँ।
अब न शब्दों की सारंगी दुनिया में , "थोड़ा लिखो अधिक समझों...आप अधिक समझदार हो!"
समझने बाले लोग बचे हैं,और ना ही खतों-खतूत की दुनिया के वह प्रतिक्षिक लोग ...!!
बचा है बस...चंद अल्फाजों में सिकुड़ती दुनिया का खत्म हुआ बजूद!जो कभी खतों को भी सिकोड़कर-सहेजकर रख लिया करती थी..!
पता नही...! किस पते पर...?
किस नायक-नायिका,पिता-पुत्र,बहिन-भाई,पूत-माई,सखा-सम्बन्धी,देवर-भौजाई का आखिरी खत तन्मयता के साथ नयनो में नमी लेकर बाँचा अथवा पढ़कर सुनाया गया होगा ...!!
जगजीत सिंह जी के 'चिट्ठी न कोई सन्देश' से लेकर सोनू निगम-रूपकुमार राठौर के " संदेशे आते हैं .." और पंकज उदास की "चिट्ठी आई है,आई है..!"
एक नम आंखों की दास्तान है,जो एकात्म हुए भावों के भंवर में बरवस पाशवित कर ही लेती है ।
आज कुछ खतों पर समय की मार के कारण तह की हुई यादों का रंग हल्का पीला सा पड़कर भी कितना सजीव सा है..!
इस दुनिया को भले ही हम असीमित भावों को लेकर अपनो आप को 'पोस्टकार्ड' की तरह पेश करें.....किन्तु चहुँ ओर से बन्द 'अन्तर्देशीय' से चित्त हो ही जाते हैं ।
खैर चलो...!
खतों-खतूत की दुनिया की तरह ही इस दुनिया का भी पराभव होना सुनिश्चित है।पोस्टकार्ड हो या अन्तर्देशीय एक दिन सबके लिखे हर्फ सनै-सनै समझ आ जाते हैं ।
हाँ याद आया ... !!!!!
डाक आती तो है.. ..! बहिना की राखी लेकर किन्तु उसमे भी वह शब्दों का संजोये जाना बाला 'इंद्रजाल' नही पढ़ने को मिलता .....!!!
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विश्व डाक दिवस है आज....♥️
"क़ासिद तेरी हड़ताल पे, कुर्बान जाइये;
वो आ गये हैं खुद, मेंरे खत के जबाब में।"
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जितेंद्र सिंह तौमर '५२से'
चम्बल मुरैना मप्र.